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‘मैं तुम्हारा सारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट निकलवा दूंगा’ — सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस अधिकारी को लगाई फटकार

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नई दिल्ली, 1 नवंबर 2025 

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के विवादास्पद वाक्यों और पुलिस की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालयों के निर्देशों का खुलकर उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा। मामले के अनुसार, जिस थाना प्रभारी/एसएचओ (नामित अधिकारी) ने स्थानीय भाषा में कहा था, “मैं तुम्हारा सारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आज निकलवा दूंगा” — उस वक्त की बातचीत और उसके स्वरुप ने सुप्रीम कोर्ट की धैर्य की सीमा को पार कर दिया। अदालत ने न केवल उस अभद्र अभिव्यक्ति की निंदा की, बल्कि यह भी कहा कि पुलिस बल का व्यवहार और भाषा नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और कानून के शासन के लिए चिंताजनक संकेत दे रही है। इस कड़े रुख की पृष्ठभूमि और घटना के तथ्यों का जिक्र स्थानीय खबरों और कोर्ट रिकॉर्ड में किया गया है। 

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर पुलिस के अधिकारी ही न्यायपालिका और उसके निर्देशों को चुनौती देने लगें तो राज्य में कानून का शासन खतरे में पड़ जाएगा। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या अधिकारी अपनी अधिकार-सीमाओं और संवैधानिक दायित्वों से अनभिज्ञ हैं या जान-बूझकर सक्षम संस्थाओं को कमजोर करने की प्रवृत्ति दिखा रहे हैं। अदालत ने मामले की गंभीरता देखते हुए उत्तर प्रदेश के डीजीपी और संबंधित अधिकारी से स्पष्ट जवाब तलब किया और कहा कि ऐसे वाक्यों और व्यवहार के पीछे की मानसिकता को न तो प्रशासनिक तौर पर अनदेखा किया जा सकता है और न ही कानूनी तौर पर बर्दाश्त। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि यदि आवश्यक हुआ तो वह सख्त निर्देश और अनुशासनात्मक कदम भी जारी कर सकती है ताकि भविष्य में न्यायालय की अवमानना जैसी घटनाएँ न हों। 

घटना की पृष्ठभूमि में कोर्ट ने यूपी पुलिस के उन रुझानों पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिनमें दीवानी मामलों को अनावश्यक रूप से आपराधिक प्रकृति दे दिया जाता है — यानी नागरिक विवादों को अपराध के दायरों में तब्दील कर दिया जाना। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी यूपी पुलिस की इसी प्रवृत्ति पर कड़ी टिप्पणी कर चुकी है और इस मामले में भी उसने कहा कि अगर प्रशासन ऐसे कामों को नहीं रोकेगा तो न्यायप्रक्रिया की स्वच्छता और नागरिकों के हक़ की रक्षा दुविधा में आ सकती है। कोर्ट ने मामले में दाखिल दलीलों और घटनास्थल के तथ्यों की बारीकी से पड़ताल करने के निर्देश दिए और कहा कि संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ यह भी देखा जाएगा कि क्या प्राथमिकी/एफआईआर या अन्य रिपोर्ट्स में कोई त्रुटि या मनमानी शामिल थी। 

विधि विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार केवल एक व्यक्तिगत घटना तक सीमित नहीं रहनी चाहिए — यह पूरे प्रदेश में पुलिस-प्रशासन के आचरण, शिकायत निवारण प्रक्रिया और पुलिस प्रशिक्षण पर गंभीर संकेत देती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि पुलिस उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करने में लापरवाह बनी रहती है, तो इससे जनहित याचिकाओं और साधारण नागरिकों की न्याय पहुँच पर असर पड़ेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि फिर चाहे वह डीजीपी स्तर पर निर्देश हों या जिलास्तरीय सतर्कता, पुलिस वर्ककल्चर में बदलाव और जवाबदेही तय करना अनिवार्य है, ताकि किसी भी सरकारी अधिकारी के ओर से न्यायालयों की साख पर प्रश्न न उठें। 

स्थानीय स्तर पर इस घटना ने नागरिकों के बीच भी सवाल खड़े कर दिए हैं — खासकर उन लोगों में जो अक्सर पुलिस से सीधे वंचित, प्रताड़ित या न्याय के लिए संघर्षरत रहे हैं। नरमी और संवेदनशीलता की कमी के आरोपों के बीच, कई कानूनविद् और सिविल सोसाइटी समूह अब मांग कर रहे हैं कि पुलिस अधिकारियों के सार्वजनिक बयानों और व्यवहार पर सख्त गोपनीयता/सशक्त निगरानी हो और यदि कोई अधिकारी न्यायालयों का अपमान या आदेशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ तेज़ और पारदर्शी कार्रवाई हो। वहीं सरकार और पुलिस विभाग ने फिलहाल मामले की जांच का आश्वासन दिया है, परन्तु सुप्रीम कोर्ट के सवालों के जवाब और संभावित अनुशासनात्मक कार्रवाइयों का इंतजार बाकी है। 

यह मामला एक बड़े संदर्भ में भी देखा जा रहा है — जहां पुलिस-न्यायपालिका-नागरिक के संबंधों की पारदर्शिता और संतुलन पर बहस चल रही है। सुप्रीम कोर्ट की हस्तक्षेप वाली टिप्पणियाँ अब प्रशासन के लिए एक चेतावनी हैं कि संवैधानिक संस्थाओं के बीच सम्मान और आदेशों का पालन लोकतंत्र के मूल पक्ष हैं। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को न्यायिक आदेशों और संवैधानिक मर्यादाओं के अनुरूप कार्य करना होगा, अन्यथा न्यायपालिका द्वारा कड़े निर्देश और दण्डात्मक कदम उठाने से इंकार नहीं किया जाएगा। फिलहाल इस मामले की अगली सुनवाई में अदालत द्वारा मांगे गए जवाब और यूपी पुलिस की आधिकारिक प्रतिक्रिया मुख्य बिंदु होंगे, जिनके आधार पर आगे कार्रवाई तय होगी। 

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