पटना 5 सितम्बर
बिहार की सियासत एक बार फिर उस मोड़ पर पहुँच चुकी है जहाँ जनता का दर्द, महंगाई, बेरोज़गारी और बाढ़ जैसी वास्तविक समस्याएँ हाशिये पर धकेल दी जाती हैं और नेताओं की सत्ता-लालसा मंच पर सजाई जाती है। 4 सितंबर 2025 को बीजेपी और एनडीए द्वारा बुलाया गया बिहार बंद इसी राजनीतिक अवसरवाद का ताज़ा उदाहरण है। नरेंद्र मोदी सरकार और उनकी पार्टी ने इस बंद को “नारी सम्मान” और “मां का अपमान” से जोड़ा, लेकिन सच्चाई यह है कि यह बंद महिलाओं के सम्मान की रक्षा नहीं बल्कि महिलाओं के नाम पर जनता को बंधक बनाने का एक और हथकंडा था। यह बंद जनता की तकलीफ़ को बढ़ाने वाला, गुंडागर्दी को बढ़ावा देने वाला और बिहार की सियासत के गिरते स्तर का प्रतीक बनकर सामने आया।
नारी सम्मान की आड़ में नारी अपमान
बीजेपी ने दावा किया कि बंद महिला मोर्चा के नेतृत्व में हुआ और इसका मकसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां का अपमान करने वालों को जवाब देना था। लेकिन इस बंद के दौरान जो घटनाएँ सामने आईं, वे किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक हैं। भागलपुर में एक दंपति के साथ बदतमीजी, सिवान में मुस्लिम महिला की दुकान पर हमला, एक शिक्षिका के साथ मारपीट, गर्भवती महिला को अस्पताल जाने से रोकना और एक छात्रा को रेलवे परीक्षा में शामिल होने से रोकना—क्या यही है नारी सम्मान? यह बीजेपी की असलियत उजागर करता है कि उसके लिए नारी सम्मान सिर्फ एक राजनीतिक नारा है, कोई नैतिक प्रतिबद्धता नहीं। जिस पार्टी ने खुद महिलाओं को परेशान करने और डराने का वातावरण खड़ा किया, वह दूसरों को “महिला विरोधी” कहकर कैसे बरी हो सकती है?
जनता के मुद्दों से ध्यान भटकाने की साजिश
यह बंद बीजेपी की असली रणनीति को सामने लाता है—जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाना। बिहार आज भी बाढ़, महंगाई और बेरोज़गारी की मार झेल रहा है। लाखों युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही, किसान खेत में बर्बाद हो रहे हैं, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी महंगी होती जा रही है। लेकिन इन सब पर बात करने की बजाय बीजेपी ने मां और बहन के नाम पर एक भावनात्मक नौटंकी खड़ी की। लालू प्रसाद यादव और विपक्ष ने ठीक ही कहा कि यह बंद जनता को सताने और मीडिया का ध्यान असली मुद्दों से हटाने का हथकंडा था। यहां तक कि प्रशांत किशोर जैसे तटस्थ माने जाने वाले नेता ने भी साफ कहा कि जनता इस बंद के साथ नहीं थी और इसका कोई असर नहीं हुआ। जब जनता आपके बंद को स्वीकार ही नहीं करती, तो यह साफ है कि यह आंदोलन जनता का नहीं, बल्कि नेताओं के अहंकार का बंद था।
गुंडागर्दी और नौटंकी का मंच
बीजेपी और एनडीए ने दावा किया कि बंद शांतिपूर्ण रहा, लेकिन सोशल मीडिया पर फैले वीडियो और जनता की शिकायतें इसका सच उजागर कर देती हैं। आम लोगों को रास्ते में रोकना, दहशत फैलाना, चक्का जाम करना और यहां तक कि अस्पताल व परीक्षा जैसे ज़रूरी कामों में बाधा डालना—यह सब बताता है कि बंद के नाम पर असल में गुंडागर्दी हुई। सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि इस गुंडागर्दी को “नारी सम्मान” का नाम दिया गया। वास्तव में यह बंद दिखाता है कि बीजेपी जनता को सताने और डराने से ज़रा भी परहेज़ नहीं करती, चाहे उसके लिए किसी भी पवित्र भाव को ढाल क्यों न बनाना पड़े।
राजनीति का पाखंड और गिरता स्तर
बीजेपी नेताओं ने कहा कि पीएम मोदी की मां का अपमान हर मां का अपमान है। लेकिन सवाल यह है कि जब उन्हीं के कार्यकर्ता सड़क पर दूसरी माताओं को अपमानित कर रहे थे, तब यह संवेदनशीलता कहाँ चली गई? जब गर्भवती महिला को अस्पताल से रोका गया, तब किसने नारी सम्मान की रक्षा की? जब छात्रा को परीक्षा देने से रोका गया, तब बीजेपी नेताओं की महिला गरिमा कहाँ थी? यह साफ हो गया कि बीजेपी “मां” और “महिला” शब्दों का इस्तेमाल सिर्फ चुनावी हथियार की तरह करती है। यह राजनीति का वह पाखंड है जिसमें महिला सम्मान एक नारा है, वास्तविकता में महिला अपमान एक सच्चाई है।
बिहार की जनता का साफ संदेश
बिहार बंद की असलियत जनता ने देख ली है। सड़क पर हुई गुंडागर्दी, आम लोगों की पीड़ा और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश ने यह साफ कर दिया है कि बीजेपी की राजनीति अब नैतिक आधार खो चुकी है। जनता अब इन भावनात्मक नौटंकियों से ऊब चुकी है। बिहार की मिट्टी ने हमेशा जनआंदोलन को जन्म दिया है और जनता ने बार-बार दिखाया है कि वह किसी भी राजनीतिक दल की नौटंकी में नहीं फँसती। इस बंद ने बीजेपी के लिए यह चेतावनी लिख दी है कि सत्ता की भूख को नारी सम्मान की ढाल बनाकर पेश करना अब नहीं चलेगा।
असली नारी सम्मान तब होगा जब महिलाएँ बिना डर के अस्पताल जा सकें, बिना बाधा के शिक्षा और परीक्षा दे सकें, और बिना भय के अपनी रोज़ी-रोटी कमा सकें। लेकिन बीजेपी का बंद यह साबित करता है कि उसके लिए महिलाओं का सम्मान सिर्फ एक चुनावी पोस्टर है, जनता का दर्द कभी उसकी प्राथमिकता नहीं।