हैदराबाद, 3 नवंबर
सुबह के शांत माहौल को चीरती हुई एक दिल दहला देने वाली चीख और लोहे के मरोड़ते हुए टुकड़ों की भयावह आवाज़… कुछ ही पलों में खुशियों से भरी एक सरकारी बस में सवार लोगों की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई। हैदराबाद के पास एक सरकारी बस और बजरी से लदे ट्रक के बीच हुई आमने-सामने की टक्कर ने ऐसा खौफनाक मंजर पैदा किया कि घटनास्थल को देखकर किसी की भी रूह कांप जाए। इस दर्दनाक हादसे में अब तक 20 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई गंभीर रूप से घायल यात्रियों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जहां डॉक्टर मौत से जंग लड़ रही ज़िंदगियों को बचाने की कोशिश में जुटे हैं।
हादसे के प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि बस का आगे का हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और कई यात्री अंदर ही फंस गए। चीख-पुकार, रोते-बिलखते परिवारजन और खून से सनी सड़कों का वह दृश्य हर किसी की आंखें नम कर देने के लिए काफी था। राहत और बचाव दल ने मौके पर पहुंचकर गैस कटर की मदद से बस में फंसे यात्रियों को बाहर निकाला। कुछ घायल लोग दर्द से कराहते हुए सिर्फ इतना दोहराते रहे — “क्या हम बच जाएंगे?”
जानकारी के मुताबिक बस में सवार अधिकांश लोग अपने परिवारों से मिलने या रोज़गार के काम से सफर कर रहे थे। कई घरों के चिराग बुझ गए, कई माताओं की गोद सूनी हो गई और न जाने कितनी आंखों से आंसू कभी न रुकने वाली धारा बनकर बह निकले। हादसे की खबर मिलते ही गांव और कस्बों में कोहराम मच गया। जिनके प्रियजन बस में थे, वे अस्पतालों और पुलिस स्टेशनों में बेतहाशा दौड़ते दिखाई दिए — उम्मीद और भय के बीच झूलती हुई उनकी बेचैनी किसी भी संवेदनशील दिल को तोड़ देने के लिए काफी थी।
प्रशासन ने प्रांरभिक जांच में माना है कि हादसा तेज रफ्तार और सड़क पर गलत ओवरटेकिंग की वजह से हुआ। सरकार ने मृतकों के परिजनों को सांत्वना राशि देने की घोषणा की है, लेकिन जिन घरों में यह अंधेरा छा गया है, वहां कोई भी मुआवज़ा उन मासूम जानों को वापस नहीं ला सकता। यह हादसा एक बार फिर यह कठोर सवाल खड़ा करता है कि देश में सड़क सुरक्षा के दावे आखिर कितने सुरक्षित हैं? क्यों हर दिन इतनी जिंदगियां खराब सड़कों, तेज रफ्तार और लापरवाही की भेंट चढ़ जाती हैं?
आज कई परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। सुबह घर से मुस्कुराकर निकले लोग अब कभी लौटकर नहीं आएंगे। यह त्रासदी केवल एक हादसा नहीं — यह उन नीतिगत चूकों और लापरवाहियों का परिणाम है जिनकी कीमत आम जनता अपनी जान देकर चुकाती है। ऐसी हर मौत हम सबकी जिम्मेदारी है, और हर दुर्घटना यह पुकार है कि सड़कों पर सुरक्षित जीवन अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।





