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लूव्र से लूटा इतिहास: फ्रांस की शान पर चोरों का वार

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पेरिस 19 अक्टूबर 2025

दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले संग्रहालय लूव्र म्यूज़ियम में रविवार की सुबह एक ऐसी चोरी हुई जिसने न केवल फ्रांस को बल्कि पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। यह घटना किसी फिल्मी पटकथा जैसी लगती है — तेज़ी, योजना, तकनीक और हिम्मत — सब कुछ किसी अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट की झलक देता है। सुबह लगभग 9:30 बजे जब संग्रहालय पर्यटकों के लिए खुला ही था, तभी कुछ नकाबपोश लोग अत्याधुनिक उपकरणों से सुरक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर अंदर घुसे। महज सात मिनट में उन्होंने “गैलरी द’अपोलोन” (Galerie d’Apollon) में रखे शाही आभूषणों और ऐतिहासिक रत्नों को अपने कब्ज़े में लिया और मोटरसाइकिलों पर सवार होकर फरार हो गए।

फ्रांसीसी गृह मंत्री लॉरेंट नुनेज़ और संस्कृति मंत्री रशीदा दाती ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की पुष्टि की कि चोरी गए रत्नों का “कोई बाजार मूल्य नहीं” बल्कि वे “फ्रांस की आत्मा और इतिहास के प्रतीक” हैं। यह वही गैलरी है जहाँ कभी फ्रांसीसी राजघराने के मुकुट, महारानियों के हार और नायाब रत्न रखे जाते थे। माना जा रहा है कि चोरी हुई वस्तुएँ Marie Antoinette, Napoleon III और Louis XIV के युग से संबंधित हैं — जिनमें हीरे, माणिक, नीलम और स्वर्ण-मढ़ित मुकुट शामिल थे।

इस पूरी कार्रवाई को इतनी सफ़ाई से अंजाम दिया गया कि सुरक्षा बलों को इसका पता तब चला जब अलार्म बजने के बाद चोर पहले ही संग्रहालय की सीमा से बाहर निकल चुके थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार, चोरों ने संग्रहालय के पिछले हिस्से में स्थित मालवाहक प्रवेशद्वार का इस्तेमाल किया था और सीसीटीवी कैमरों को हैक करने के लिए जैमर डिवाइस का प्रयोग किया गया। फ्रांसीसी अधिकारियों ने इसे “मास्टरमाइंड ऑपरेशन” करार दिया है, जो किसी साधारण गैंग का काम नहीं बल्कि “बहु-राष्ट्रीय अपराध नेटवर्क” की पहचान दर्शाता है।

लूव्र प्रशासन ने तत्काल पूरे परिसर को खाली कराया और सुरक्षा बलों ने चारों ओर नाकेबंदी कर दी। संग्रहालय को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है ताकि फॉरेंसिक विशेषज्ञ, पुलिस और सांस्कृतिक मंत्रालय की टीमें जांच कर सकें। फ्रांस की संस्कृति मंत्री ने इसे “राष्ट्रीय धरोहर पर हमला” बताते हुए कहा, “यह सिर्फ एक चोरी नहीं, बल्कि फ्रांसीसी आत्मा पर एक वार है। उन आभूषणों की कीमत नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि वे हमारी सभ्यता के साक्षी थे।”

लूव्र प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार, इन आभूषणों का बीमा मूल्य अरबों यूरो में है, परंतु उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कीमत असीम है। Galerie d’Apollon वह जगह है जिसे खुद लुई XIV ने डिजाइन कराया था और जहाँ शाही परिवार की विरासत प्रदर्शित होती थी। अब वहाँ सिर्फ टूटी हुई डिस्प्ले केसें और पुलिस की लाइटें हैं।

घटना के बाद फ्रांसीसी खुफिया एजेंसियों ने सभी हवाई अड्डों, बंदरगाहों और सीमा चौकियों को अलर्ट कर दिया है। माना जा रहा है कि चोर पेरिस से उत्तर या पश्चिम दिशा में भागे हैं। पुलिस ने 200 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज कब्जे में ली है, और करीब एक टास्क फोर्स (Task Force Artéfact) गठित की गई है, जो कला चोरी से संबंधित अपराधों पर केंद्रित है। इस जांच में इंटरपोल (Interpol) को भी शामिल किया गया है क्योंकि यूरोप में पिछले कुछ वर्षों में कला-चोरी का नेटवर्क फिर से सक्रिय हुआ है।

घटना ने फ्रांस की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। लूव्र म्यूज़ियम में प्रतिवर्ष लगभग 80 लाख आगंतुक आते हैं, जो इसे विश्व का सबसे लोकप्रिय संग्रहालय बनाते हैं। यहाँ पर मोनालिसा, वीनस डी मिलो, और असंख्य अनमोल कलाकृतियाँ रखी हैं। इस तरह की चोरी का अर्थ है कि अगर इतना सुरक्षित संस्थान भी असुरक्षित है, तो बाकी जगहों की हालत क्या होगी? हाल के वर्षों में फ्रांस के कई ऐतिहासिक स्थलों पर सुरक्षा बजट में कटौती हुई थी। विशेषज्ञ अब यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह चोरी उसी ढीलापन और पुरानी सुरक्षा प्रणाली का परिणाम है?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना ने कला जगत को झकझोर दिया है। यूनेस्को ने इसे “विश्व धरोहर की क्षति” बताया है और यूरोपीय संग्रहालय संघ ने सभी सदस्य देशों को सुरक्षा पुनर्मूल्यांकन का निर्देश दिया है। कला समीक्षक यह मान रहे हैं कि चोरी हुए रत्न संभवतः किसी “प्राइवेट कलेक्टर” या “ब्लैक मार्केट डीलर” के लिए चुराए गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इन रत्नों को खुले बाजार में बेचना लगभग असंभव है क्योंकि उनकी पहचान दर्ज है, लेकिन कला-तस्करी का अंडरवर्ल्ड इन्हें गुप्त सौदों में वर्षों तक छिपाकर रख सकता है।

यह पहली बार नहीं जब लूव्र सुरक्षा संकट में आया है। 1911 में यहीं से मोनालिसा पेंटिंग चोरी हुई थी, जिसने पूरे यूरोप को हिला दिया था। वह पेंटिंग दो साल बाद बरामद हुई थी, लेकिन इस बार का मामला कहीं ज़्यादा संगठित और खतरनाक है। उस समय एक व्यक्ति ने चुराई थी, इस बार पूरा गिरोह काम कर गया। अब फ्रांस को एक बार फिर अपने गौरव की खोज करनी है — पर इस बार दीवारों पर नहीं, अपराध की अंधेरी गलियों में।

लूव्र की दीवारें आज ख़ामोश हैं, लेकिन फ्रांसीसी जनता की आवाज़ गूंज रही है — “ये रत्न हमारे नहीं थे, ये हमारी रूह का हिस्सा थे।” यह चोरी केवल संग्रहालय की नहीं, बल्कि उस गौरवशाली इतिहास की है जो लूव्र की सुनहरी गैलरियों में चमकता था। अब वहाँ केवल टूटी काँच की परछाइयाँ हैं — और एक सवाल जो हर फ्रांसीसी के मन में गूंज रहा है —

क्या हमारी सभ्यता की धरोहर सच में सुरक्षित है, या वो भी बस एक और कहानी बनकर रह जाएगी?

 

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