देश के लोकतंत्र की रीढ़ माने जाने वाले चुनाव आयोग (ECI) पर तृणमूल कांग्रेस सांसद साकेत गोखले ने ऐसा आरोप लगाया है जिसने पूरे सियासी गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। गोखले ने कहा है कि “चुनाव आयोग ने बीजेपी से जुड़े लोगों की कंपनियों और कंसल्टेंट्स को ठेके दिए हैं” और अब इस जानकारी को जानबूझकर छिपाया जा रहा है।
साकेत गोखले ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा “चुनाव आयोग के अंदर कुछ बहुत सड़ा हुआ चल रहा है। मैंने RTI में पिछले चार वर्षों में आयोग द्वारा नियुक्त सभी वेंडर्स, एजेंसियों और कंसल्टेंट्स की जानकारी मांगी थी, लेकिन आयोग ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ‘जानकारी संकलित रूप में उपलब्ध नहीं है और उसे इकट्ठा करना संसाधनों का दुरुपयोग होगा।’”
उन्होंने इसे ‘बहाना नहीं, सबूत छिपाने की कोशिश’ करार दिया और सवाल दागा, “अगर सब कुछ पारदर्शी है, तो आयोग यह बताने से क्यों डर रहा है कि उसने किन कंपनियों को चुनाव जैसे संवेदनशील कामों के ठेके दिए?”
गोखले ने आगे खुलासा किया कि जुलाई 2020 में उन्होंने सबूत जारी किए थे कि चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में बीजेपी आईटी सेल से जुड़े एक व्यक्ति की कंपनी को हायर किया था।
उन्होंने कहा, “ECI बाहरी वेंडर्स को जिन कामों के लिए नियुक्त करता है, वे अत्यंत संवेदनशील हैं — जैसे मतदाता पहचान पत्र बनवाना, वोटर लिस्ट का डिजिटाइजेशन, चुनावी डेटा एंट्री, और वोटर डेटाबेस सॉफ्टवेयर बनाना। अगर इन कामों में राजनीतिक रूप से पक्षपाती लोग शामिल हैं, तो चुनाव की निष्पक्षता खतरे में है।”
साकेत गोखले का आरोप है कि “इन वेंडर्स को गोपनीय डेटा तक पहुंच होती है, जिसे राजनीतिक दल मतदाताओं को टार्गेट करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।”
उन्होंने सवाल उठाया, “क्या चुनाव आयोग बीजेपी की आईटी सेल को चुनावी सिस्टम में घुसाने की अनुमति दे रहा है? क्या यही वजह है कि आयोग लगातार जानकारी देने से बच रहा है?”
गोखले ने कहा कि यह सिर्फ एक RTI का मामला नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता और भरोसे का सवाल है। “जब आयोग खुद जवाबदेही से भागेगा, तो आम मतदाता को किस पर भरोसा रहेगा? अगर चुनाव आयोग भी ‘आईटी सेल संस्कृति’ से संक्रमित हो गया, तो लोकतंत्र का अंत दूर नहीं।”
उन्होंने कहा, “यह बेहद संदिग्ध, चिंताजनक और खतरनाक स्थिति है। चुनाव आयोग को तुरंत सामने आकर बताना चाहिए कि उसने किन एजेंसियों को हायर किया है — वरना यह पूरा चुनावी सिस्टम संदिग्ध हो जाएगा।”
विपक्ष की ओर से यह अब तक का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है, जिसमें सीधे-सीधे यह इशारा किया गया है कि “चुनाव आयोग की निष्पक्षता अब सवालों के घेरे में है।”