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गाज़ा शांति सम्मेलन: पीएम मोदी को आमंत्रण, भारत की ओर से कीर्ति वर्धन सिंह होंगे प्रतिनिधि — शर्म-अल-शेख में विश्व नेता जुटे शांति मिशन पर

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नई दिल्ली/काहिरा/वॉशिंगटन | अंतरराष्ट्रीय डेस्क 

मध्य पूर्व में लंबे समय से जारी हिंसा और मानवीय संकट के बीच दुनिया की नज़र अब मिस्र के शर्म-अल-शेख शहर की ओर टिक गई है, जहाँ रविवार से ‘गाज़ा शांति सम्मेलन 2025’ (Gaza Peace Summit 2025) शुरू हो रहा है। यह सम्मेलन एक ऐसे दौर में आयोजित हो रहा है जब वैश्विक समुदाय गाज़ा में बढ़ते विनाश, नागरिक हत्याओं और मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए ठोस समाधान चाहता है। इस शांति प्रयास में भारत को भी प्रमुख भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया गया है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत रूप से इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था। हालाँकि, प्रधानमंत्री के व्यस्त कार्यक्रम और अन्य राजनयिक प्रतिबद्धताओं के चलते भारत का प्रतिनिधित्व अब विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह करेंगे। विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि मोदी के निर्देश पर सिंह भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेंगे और शांति, स्थिरता और मानवीय सहयोग पर भारत का दृष्टिकोण रखेंगे।

भारत की भूमिका: संवाद के माध्यम से स्थायी शांति की पहल

विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है, “भारत सदैव हिंसा का विरोधी और संवाद का समर्थक रहा है। विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह इस सम्मेलन में मानवीय सहायता, पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता पर भारत का दृष्टिकोण रखेंगे।”

भारत का रुख साफ़ है — युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं, बल्कि संवाद, संवेदना और सहयोग ही आगे का रास्ता है। गाज़ा संकट पर भारत लगातार “दो-राज्य समाधान” (Two-State Solution) का समर्थन करता रहा है, जिसमें इसराइल और फिलिस्तीन दोनों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात कही जाती है। भारत पहले भी गाज़ा में नागरिकों के लिए मानवीय सहायता और दवाइयाँ भेज चुका है, और संयुक्त राष्ट्र में संयम बरतने की अपील करता रहा है।

मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत इस सम्मेलन में तीन प्रमुख मुद्दों पर ज़ोर देगा —

  1. तत्काल युद्धविराम और मानवीय राहत की पहुंच सुनिश्चित करना।
  1. फिलिस्तीन के पुनर्निर्माण के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य संरचना को मज़बूत करने का प्रस्ताव।
  1. स्थायी शांति के लिए सभी पक्षों के बीच समावेशी और सतत वार्ता की आवश्यकता।

ट्रंप और सीसी की पहल: शांति का नया खाका

यह सम्मेलन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी की संयुक्त पहल पर आयोजित किया जा रहा है। दोनों नेताओं ने पिछले महीने न्यूयॉर्क में एक बैठक के दौरान गाज़ा में बढ़ती हिंसा पर चिंता व्यक्त की थी और एक “Comprehensive Peace Framework” (व्यापक शांति खाका) तैयार करने का निर्णय लिया था।

ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए भेजे अपने संदेश में कहा था “भारत आज वैश्विक स्थिरता का स्तंभ है। प्रधानमंत्री मोदी जैसे नेता गाज़ा शांति प्रक्रिया में नैतिक दृष्टिकोण और विश्वसनीयता ला सकते हैं।”

सीसी ने भी भारत की भूमिका पर भरोसा जताते हुए कहा “भारत जैसे राष्ट्रों की भागीदारी ही इस सम्मेलन को विश्वसनीय बनाती है। नई दिल्ली का संतुलित दृष्टिकोण शांति की दिशा में निर्णायक साबित हो सकता है।”

गाज़ा में गहराता मानव संकट

गाज़ा पट्टी इस समय एक मानवीय आपदा का केंद्र बन चुकी है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा की लगभग 80 प्रतिशत आबादी राहत और बाहरी सहायता पर निर्भर है। लगातार बमबारी, बिजली और पानी की कमी, और चिकित्सा सेवाओं के ध्वस्त होने से हालात बदतर हो गए हैं।

अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि गाज़ा अब “मानवता के लिए जीवित कब्र (Living Grave)” बन चुका है। इस भयावह स्थिति ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है और यही वजह है कि शर्म-अल-शेख सम्मेलन को “शांति की आख़िरी उम्मीद” के रूप में देखा जा रहा है।

भारत की कूटनीतिक सक्रियता का नया चरण

भारत की यह भागीदारी उसकी बढ़ती वैश्विक भूमिका और कूटनीतिक संतुलन की गवाही देती है। प्रधानमंत्री मोदी ने बीते वर्षों में बार-बार कहा है — “भारत न युद्ध का पक्षधर है, न हिंसा का; भारत मानवता के साथ है।” यही नीति अब भारत की विदेश नीति की आधारशिला बन चुकी है।

भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी मानवीय मध्यस्थता की भूमिका निभाई थी, और अब गाज़ा शांति प्रक्रिया में उसकी भागीदारी यह संकेत देती है कि नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय शांति वार्ताओं में एक संतुलित, विश्वसनीय और रचनात्मक शक्ति के रूप में उभर रही है।

कूटनीतिक दृष्टि से अहम अवसर

कूटनीतिक हलकों में यह भी माना जा रहा है कि यह सम्मेलन भारत के लिए एक सॉफ्ट डिप्लोमैटिक पॉवर मूव साबित हो सकता है। भारत इस मंच पर न केवल मानवीय शांति की बात करेगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि वह अब वैश्विक संकटों पर सिर्फ़ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भागीदार है।

विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह की यह यात्रा भारतीय विदेश नीति की निरंतरता और संतुलन की मिसाल है। यह संदेश स्पष्ट है — भारत संघर्ष से नहीं, संवाद और समाधान से इतिहास लिखने में विश्वास रखता है।

निष्कर्ष: शांति की ओर भारत की आस्था

गाज़ा शांति सम्मेलन 2025 केवल एक कूटनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा की पुकार है। भारत द्वारा विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह को भेजने का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि नई दिल्ली शांति, स्थिरता और मानवीय मूल्यों की वैश्विक धुरी बनने के लिए प्रतिबद्ध है।

यह सम्मेलन न केवल गाज़ा के भविष्य के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, बल्कि यह भी तय करेगा कि आने वाले वर्षों में भारत वैश्विक शांति राजनीति का नैतिक केंद्र कैसे बनेगा।

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