Home » International » गाज़ा जलता रहा, नेतन्याहू मुस्कुराता रहा — सत्ता के लिए इंसानियत की कुर्बानी

गाज़ा जलता रहा, नेतन्याहू मुस्कुराता रहा — सत्ता के लिए इंसानियत की कुर्बानी

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

गाज़ा 19 अक्टूबर 2025

मध्य पूर्व की धरती पर फिर बारूद की बू आ रही है — और उस गंध का स्रोत वही है, जो दशकों से शांति की हर कोशिश को धूल में मिला देता है। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक बार फिर अपने पागलपन की पराकाष्ठा दिखाते हुए कहा है कि “युद्ध तब तक खत्म नहीं होगा जब तक हमास पूरी तरह से खत्म नहीं कर दिया जाएगा।” यह बयान ऐसे समय आया है जब गाज़ा के अस्पतालों में बच्चे दम तोड़ रहे हैं, खंडहरों में माताएँ अपने बेटों की लाशें पहचानने की कोशिश कर रही हैं, और संयुक्त राष्ट्र से लेकर वेटिकन तक इंसानियत की दुहाई दी जा रही है। लेकिन नेतन्याहू के लिए यह सब सिर्फ “कोलैटरल डैमेज” है — यानी एक तानाशाह की नज़र में मानव जीवन बस आँकड़ों की तरह घटता-बढ़ता है।

गाज़ा में इस्राइली बमबारी ने अब तक हजारों बेगुनाहों की जान ली है, और लाखों लोग घर छोड़ने पर मजबूर हो चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार सीज़फायर की अपील कर रहा है, लेकिन नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में खड़े होकर वही पुराना ज़हरीला बयान दोहराया — “इज़राइल पीछे नहीं हटेगा, यह लड़ाई खत्म नहीं होगी जब तक हमास मिट नहीं जाता।” यानी एक बार फिर उन्होंने “रक्षा” के नाम पर “विनाश” को वैधता दे दी। यह वही नेतन्याहू हैं जिन्होंने 2023 में भी गाज़ा को जला डाला था, और आज फिर उसी राख में “सुरक्षा” की कहानी लिख रहे हैं।

दुनिया भर के विश्लेषक अब साफ कह रहे हैं — नेतन्याहू ने लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही का चोला पहन लिया है। वह न तो मानवीय कानून की परवाह करते हैं, न अंतरराष्ट्रीय आलोचना की। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव, यूरोपीय संघ, और यहां तक कि अमेरिका के सहयोगी भी इज़राइल से संयम की अपील कर रहे हैं, लेकिन नेतन्याहू का सत्ता-भ्रम अब पागलपन की हद तक पहुँच चुका है। वह मान चुके हैं कि जितनी तबाही होगी, उतनी “राजनीतिक मजबूती” उन्हें देश के अंदर मिलेगी। यानी गाज़ा के हर मलबे के नीचे नेतन्याहू अपनी सत्ता की एक नई ईंट रख रहे हैं।

गाज़ा के हालात अब किसी युद्ध के नहीं, बल्कि एक जनसंहार (genocide) के हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ गाज़ा के 70% बुनियादी ढाँचे नष्ट हो चुके हैं, सैकड़ों स्कूल और अस्पताल मलबे में तब्दील हैं। लेकिन नेतन्याहू को कोई शर्म नहीं, बल्कि गर्व है कि “हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं।” यह वही भाषा है जो हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ इस्तेमाल की थी — और विडंबना देखिए, आज वही भाषा एक यहूदी राष्ट्र का प्रधानमंत्री मुसलमानों के खिलाफ बोल रहा है।

नेतन्याहू के इस पागलपन के पीछे केवल धार्मिक या सुरक्षा कारण नहीं हैं — यह सत्ता की भूख का नंगा खेल है। अपने देश में भ्रष्टाचार, न्यायिक संकट और विरोध प्रदर्शनों से घिरे नेतन्याहू जानते हैं कि युद्ध उन्हें फिर “राष्ट्र रक्षक” बना सकता है। इसलिए हर रॉकेट, हर मलबा, हर मौत उनके लिए एक राजनीतिक मौका है। वह यह भूल चुके हैं कि इतिहास कभी झूठ नहीं बोलता — जो नेता अपनी जनता को भय में और दूसरों की जनता को मौत में डुबोता है, उसका अंत हमेशा “एकांत और कलंक” में होता है।

नेतन्याहू का यह बयान — “हम आसान या कठिन रास्ते से जीतेंगे” — दरअसल एक क्रूर चेतावनी है। यह बताता है कि अब कोई मानवता नहीं बची, केवल मशीनें हैं जो बम बरसा रही हैं। यह वह क्षण है जब विश्व राजनीति की आत्मा पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है — क्या सच में कोई ऐसा देश है जो नेतन्याहू को रोकने की हिम्मत रखता है?

दुनिया की चुप्पी, अरब देशों की निष्क्रियता और पश्चिमी ताकतों का दोहरा मापदंड इस्राइल के लिए लाइसेंस बन चुका है — लाइसेंस टू किल। और नेतन्याहू उस लाइसेंस को दिन-रात, बिना अपराध-बोध के इस्तेमाल कर रहे हैं।

लेकिन इतिहास का न्याय देर से आता है, ठहर कर आता है, मगर आता ज़रूर है। नेतन्याहू को यह याद रखना चाहिए — सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति जब मनुष्य की संवेदनाओं को कुचलता है, तो उसका पतन शुरू हो जाता है, भले ही उसे खुद एहसास न हो। गाज़ा आज खामोश है, पर हर खामोश ईंट एक दिन बोलेगी, “यह युद्ध नहीं था, यह पागलपन था। और पागलपन का नाम था — बेंजामिन नेतन्याहू।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *