गुवाहाटी/नई दिल्ली, 1 नवंबर 2025
असम के मुख्यमंत्री और बीजेपी के फायरब्रांड नेता हेमंता बिस्वा सरमा एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई को “पाकिस्तानी एजेंट” बताते हुए दावा किया है कि वे इसे साबित करके दिखाएंगे। सरमा के इस बयान ने न सिर्फ राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है, बल्कि इसे बिहार चुनावों से पहले एक सुनियोजित “नफरत की राजनीति” का हिस्सा बताया जा रहा है। कांग्रेस ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि बीजेपी नेताओं की भाषा लोकतांत्रिक शालीनता की सारी सीमाएं पार कर चुकी है।
गौरतलब है कि हेमंता बिस्वा सरमा पहले कांग्रेस में ही हुआ करते थे और उन्हें राहुल गांधी ने एक समय “पार्टी का उभरता चेहरा” बताया था। लेकिन 2015 में कांग्रेस छोड़ने के पीछे की कहानी खुद हेमंता ने कई बार बताई — जब वे असम के हालात और पार्टी संगठन की कमजोरियों पर चर्चा करने राहुल गांधी से मिलने गए थे, तो राहुल ने उनकी बातें सुनने के बजाय अपने पालतू कुत्ते को बिस्किट खिलाना ज्यादा जरूरी समझा। उसी दिन, हेमंता ने फैसला कर लिया कि उन्हें कांग्रेस से बाहर निकलना है। यह प्रसंग उस समय से ही चर्चित रहा है और आज उनके हर बयान के साथ फिर उभर आता है।
बीजेपी में आने के बाद से हेमंता बिस्वा सरमा ने लगातार धर्म, पाकिस्तान और राष्ट्रवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों को अपनी राजनीतिक शैली का केंद्र बना लिया है। आलोचकों का कहना है कि उन्होंने असम की विकास नीतियों से ज्यादा ध्यान धार्मिक ध्रुवीकरण पर दिया। उनके कार्यकाल में कई भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे — चाहे वह सरकारी ठेकों में अनियमितताएं हों, भूमि आवंटन में कथित पक्षपात, या सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के चयन में भेदभाव। बावजूद इसके, बीजेपी नेतृत्व ने हमेशा हेमंता को “कट्टर राष्ट्रवादी” चेहरे के रूप में आगे बढ़ाया है।
गौरव गोगोई, जो दिवंगत मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के पुत्र हैं, असम कांग्रेस के सबसे युवा और सक्रिय नेताओं में गिने जाते हैं। उन्होंने सरमा के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बीजेपी नेताओं को जनता के मुद्दों — बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की परेशानी — से ध्यान भटकाने के लिए “पाकिस्तान” जैसे पुराने हथकंडों की जरूरत पड़ती है। उन्होंने कहा, “अगर मैं पाकिस्तानी एजेंट हूं तो सरकार सबूत पेश करे, नहीं तो मुख्यमंत्री पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले सरमा को माफी मांगनी चाहिए।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरमा का यह बयान सिर्फ असम की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि बिहार और अन्य राज्यों के आगामी चुनावों में बीजेपी की रणनीति को दर्शाता है — जिसमें विपक्ष को ‘देशविरोधी’, ‘विदेशी एजेंट’ या ‘हिंदू विरोधी’ ठहराकर मतदाताओं की भावनाओं को भड़काया जाता है। यह वही तरीका है जिससे बीजेपी पहले भी चुनावी लाभ उठाती रही है, चाहे वह दिल्ली, बंगाल या कर्नाटक का संदर्भ हो।
कांग्रेस नेताओं ने इस पूरे प्रकरण को बीजेपी की “घबराहट” बताया है। पार्टी का कहना है कि जब भी चुनाव पास आते हैं और जनता वास्तविक मुद्दों पर सवाल पूछती है, बीजेपी नेता ‘मुस्लिम’, ‘पाकिस्तान’ या ‘राष्ट्रविरोधी’ का कार्ड खेलकर माहौल को सांप्रदायिक बना देते हैं। असम कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक नफरत की पराकाष्ठा” बताते हुए कहा कि सरमा का यह बयान न केवल गैरजिम्मेदाराना है, बल्कि उनके पद की गरिमा के खिलाफ भी है।
दूसरी ओर, बीजेपी प्रवक्ताओं ने सरमा का बचाव करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के पास “कई ठोस इनपुट्स” हैं और जल्द ही वे इसे सार्वजनिक करेंगे। हालांकि, उन्होंने इस पर कोई ठोस सबूत या दस्तावेज पेश नहीं किए। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि सरमा के इस बयान का असली मकसद गौरव गोगोई जैसे लोकप्रिय युवा नेताओं की बढ़ती स्वीकृति को कमजोर करना और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की एकता पर प्रहार करना है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या भारतीय राजनीति अब इतनी गिर चुकी है कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री बिना किसी प्रमाण के अपने प्रतिद्वंद्वी को “पाकिस्तानी एजेंट” कह सकता है? लोकतंत्र में असहमति का अर्थ विरोध नहीं होता — लेकिन दुर्भाग्यवश, वर्तमान राजनीति में असहमति को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जा रहा है। हेमंता बिस्वा सरमा का यह बयान इसी प्रवृत्ति का ताजा उदाहरण है, जो बताता है कि नफरत की राजनीति अब बीजेपी की चुनावी रणनीति का स्थायी हिस्सा बन चुकी है।
राजनीतिक इतिहास के इस मोड़ पर यह बहस और तेज हो गई है कि क्या भारत की लोकतांत्रिक राजनीति अब विचारधारा के बजाय नफरत, अपमान और झूठे राष्ट्रवाद के सहारे चलने लगी है — और यदि ऐसा है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान उसी जनता को होगा, जिसके नाम पर यह खेल खेला जा रहा है।




