नई दिल्ली 22 अक्टूबर 2025
मोदी सरकार के भीतर एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा अपनी छवि बचाने के लिए जनता के धन के दुरुपयोग का गंभीर आरोप लगाया है। एक तरफ जहाँ देश की आम जनता महंगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अपनी “इमेज बचाओ मुहिम” पर कथित तौर पर करोड़ों रुपये लुटा रहे हैं। सूत्रों के हवाले से यह बड़ा खुलासा किया गया है कि गडकरी ने एक विवादित पीआर एजेंसी को इस काम के लिए हायर किया है, जिसका मुख्य काम सोशल मीडिया पर “पेड ट्वीट्स” और प्रायोजित सामग्री के ज़रिए उनकी तारीफ़ करवाने का है।
राजनीतिक विश्लेषक इस घटनाक्रम को वर्ष 2004 में चले “इंडिया शाइनिंग” प्रचार अभियान के असफल पुनरावृत्ति के रूप में देख रहे हैं, जब सरकार ने विज्ञापनों पर जनता का पैसा बहाया था, जिसका जवाब जनता ने चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर करके दिया था। यह गंभीर आरोप लगाया जा रहा है कि भ्रष्टाचार की पोल खुलने के बाद, गडकरी ने “विक्टिम कार्ड” खेलने के बजाय, टैक्सपेयर्स के पैसे का इस्तेमाल अपनी “इमेज वॉशिंग” में करना शुरू कर दिया है, जो एक घोर नैतिक और वित्तीय अनियमितता का मामला है।
करोड़ों का ‘पेड कैंपेन’: ‘I Support Gadkari’ के पीछे का काला सच
इस सनसनीखेज खुलासे के केंद्र में “पेड ट्वीट्स” का एक विस्तृत नेटवर्क है, जिसके तहत कथित तौर पर करोड़ों रुपये खर्च करके गडकरी की छवि सुधारने का अभियान चलाया जा रहा है। विवादित पीआर एजेंसी के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर “I Support Gadkari” जैसा एक केंद्रीकृत कैंपेन संचालित किया जा रहा है। इस पूरी कवायद पर खर्च किए गए करोड़ों रुपये के स्रोत पर गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या एक केंद्रीय मंत्री के पास अपनी व्यक्तिगत छवि को चमकाने के लिए सरकारी फंड या टैक्सपेयर्स के पैसे का इस्तेमाल करने का कोई अधिकार है? यह प्रचार अभियान उस पुरानी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसकी जड़ें 2004 के “इंडिया शाइनिंग” प्रचार में हैं, जहाँ जनता का पैसा विज्ञापनों में बहाया गया था। इसके अलावा, 2012 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 35 पीआर कंपनियों को करोड़ों देकर “गुजरात मॉडल” को बेचा था।
आज, गडकरी भी उसी विवादास्पद रास्ते पर चलते दिख रहे हैं, जहाँ ‘#NitinGadkariForIndia’, ‘#VoiceOfDevelopment’, और ‘#GadkariVision’ जैसे हैशटैग्स जनसमर्थन के कारण नहीं, बल्कि भुगतान किए गए प्रचार (Paid Campaign) के कारण ट्रेंड कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विकास का चेहरा अब विज्ञापन में बदल गया है।
विपक्ष का तीखा हमला और जनता के तीखे सवाल: क्या मंत्री कुर्सी बचाने के लिए कर रहे हैं प्रचार?
इस तथाकथित “PR स्कैम” के उजागर होने के बाद कांग्रेस और विपक्षी दलों ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। विपक्षी दलों ने सीधे सवाल किए हैं कि “क्या अब बीजेपी नेताओं की इमेज जनता नहीं, पैसे से बनती है?” और “क्या मंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए जनता के टैक्स से प्रचार कर रहे हैं?” ये सवाल केवल राजनीतिक बयानबाजी नहीं हैं, बल्कि यह देश की लोकतांत्रिक शुचिता और सरकारी धन के सदुपयोग पर गंभीर चिंताएं व्यक्त करते हैं।
जनता की ओर से भी इस पूरे घटनाक्रम पर तीन बुनियादी और तीखे सवाल खड़े होते हैं:
- क्या केंद्रीय मंत्री के पास अपनी छवि सुधारने के लिए सरकारी फंड का इस्तेमाल करने का अधिकार है?
- क्या देश में “विकास” का चेहरा अब वास्तविक कार्यों से हटकर “विज्ञापन” में बदल गया है?
- क्या भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को जनता की नज़रों से ओझल करने के लिए अब पेड नैरेटिव और फर्जी जनसमर्थन का जाल चलाया जा रहा है?
यह घटनाक्रम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जनता बेवकूफ नहीं है और वह अब मंत्रियों की ‘Paid Politics’ को भली-भांति समझने लगी है, जो देश के लोकतंत्र में पारदर्शिता की मांग को और भी प्रबल करती है।