मुंबई/ पटना/ नई दिल्ली 22 अक्टूबर 2025
देश में बीजेपी की ‘विकास योजनाएं अब ‘वोट खरीद अभियान’ बन चुकी हैं
देशभर में बीजेपी शासित राज्यों में कथित तौर पर कल्याणकारी योजनाओं की आड़ में “वोट खरीद अभियान” चलाने का एक बड़ा और सनसनीखेज खुलासा हुआ है। महाराष्ट्र की विवादास्पद “लाडकी बहन योजना” के बाद अब बिहार में भी चुनाव से ठीक पहले जनता के पैसों से रिश्वत बांटने का गंभीर आरोप लगा है। महाराष्ट्र में, जहाँ “लाडकी बहन” योजना के तहत 12,431 पुरुषों और 77,980 अपात्र महिलाओं को जोड़कर सार्वजनिक खजाने से ₹165 करोड़ की भारी-भरकम राशि उड़ाई गई, वहीं बिहार में स्थिति और भी गंभीर बताई जा रही है। वहाँ नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की “डबल इंजन सरकार” ने लगभग 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में ₹10,000-₹10,000 ट्रांसफर कर सीधे ₹7,500 करोड़ रुपए चुनाव से कुछ ही हफ्ते पहले बांट दिए हैं। विपक्षी दलों का दावा है कि यह कोई सामान्य कल्याणकारी सहायता नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित ‘रिश्वत नीति’ है, जिसके तहत दोनों राज्यों में एक ही भ्रष्ट पैटर्न का इस्तेमाल किया गया: चुनाव से पहले ‘भ्रष्ट कल्याण योजना’ का बूस्टर डोज़, ताकि वोट सीधे लाभार्थियों के खाते से खरीदे जा सकें।
वोट खरीदने का नया एजेंडा: ‘भ्रष्ट कल्याण योजना’ का बूस्टर डोज़
यह चौंकाने वाली घटना केवल एक प्रशासनिक अनियमितता नहीं है, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह बीजेपी की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिसे ‘वोट खरीदने का नया एजेंडा’ कहा जा रहा है। इस रणनीति के तहत, जहाँ चुनाव आते ही योजनाओं के नाम पर “कैश ट्रांसफर” की शुरुआत कर दी जाती है, ताकि हर घर को एक स्थायी वोट बैंक में बदला जा सके। महाराष्ट्र में “लाडकी बहन” योजना के नाम पर फर्जी लाभार्थियों को पैसे बांटना और बिहार में “महिला सशक्तिकरण” के नाम पर चुनाव से कुछ ही हफ्ते पहले लाखों महिलाओं के खाते में सीधे ₹7,500 करोड़ का ट्रांसफर करना, इस पैटर्न को स्पष्ट रूप से उजागर करता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि “यह योजनाएँ विकास नहीं, बल्कि चुनावी निवेश हैं—जिनका ब्याज वोट के रूप में वसूला जाता है।” बिहार में “मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना” और “जीविका समूह सहायता” के नाम पर 75 लाख महिलाओं के खातों में ₹10,000 जमा कराए जाने को विपक्ष खुलेआम दी गई इलेक्शन रिश्वत करार दे रहा है।
डबल इंजन का डबल स्कैम: महाराष्ट्र में फर्जी लाभार्थी, बिहार में ₹7,500 करोड़ की ‘रिश्वत’
यह गंभीर खुलासा महाराष्ट्र से बिहार तक बीजेपी शासित राज्यों में चल रहे एक समान “स्कीम के नाम पर स्कैम” की ओर इशारा करता है। डेटा के अनुसार, महाराष्ट्र में लाडकी बहन योजना के तहत 12,431 पुरुषों और 77,980 अपात्र महिलाओं को लाभार्थी बनाकर लगभग ₹165 करोड़ खर्च किए गए, जिससे इस योजना की प्रशासनिक ईमानदारी पर गंभीर सवाल उठे हैं। वहीं, बिहार में तो मामला और भी बड़े पैमाने पर हुआ है, जहाँ 75 लाख महिलाओं को टार्गेट करते हुए चुनाव से पहले ₹7,500 करोड़ का भारी-भरकम फंड ट्रांसफर किया गया। विपक्षी दलों का दावा है कि इस पैसे का स्रोत केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से आया, जिससे यह साबित होता है कि केंद्र की सहमति से यह “इलेक्शन ब्रीबरी” की कार्रवाई हुई, जिसे वे सीधा-सीधा “वोट खरीदने का राष्ट्रीय एजेंडा” कह रहे हैं। कांग्रेस, शिवसेना (UBT), राजद और आप नेताओं ने एक स्वर में कहा है कि “बीजेपी का विकास मॉडल अब रिश्वत मॉडल बन चुका है” और “यह लोकतंत्र नहीं, कैशतंत्र है!”
जनता के सवाल और सोशल मीडिया पर बवाल: ‘स्कीम के नाम पर स्कैम’
इस बड़े खुलासे ने न केवल विपक्षी दलों को हमलावर होने का मौका दिया है, बल्कि जनता के विवेक को भी झकझोर कर रख दिया है। अब सबसे बड़े सवाल चुनाव आयोग और सरकारी पारदर्शिता को लेकर उठ रहे हैं। पहला गंभीर सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग इन फंड ट्रांसफर की समयावधि और उद्देश्य की गहन जांच करेगा? दूसरा सवाल यह है कि सार्वजनिक खजाने से पैसे निकालकर वोट खरीदना क्या वाकई में “कल्याण” कहलाएगा? और तीसरा, क्या बीजेपी अब हर राज्य में इसी “स्कीम के नाम पर स्कैम” को एक मानक राजनीतिक हथियार बनाएगी? सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी इस मुद्दे पर जबरदस्त बवाल मचा हुआ है, जहाँ #LadkiBehenScam, #BiharBribery, #VoteBuyingModel, और #DoubleEngineCorruption जैसे हैशटैग्स ट्रेंड कर रहे हैं। यूज़र्स तीखी टिप्पणियाँ कर रहे हैं जैसे कि “लाडकी बहन नहीं, लूट की बहन!” और “डबल इंजन नहीं, डबल स्कैम सरकार!” निष्कर्ष स्पष्ट है: महाराष्ट्र से बिहार तक बीजेपी का एक ही फॉर्मूला है— “पहले रिश्वत दो, फिर वोट लो।” यह कार्रवाई कल्याण की नहीं, बल्कि भ्रष्ट चुनावी राजनीति की एक खुली यंत्रणा है, जिसे जनता अब अच्छी तरह से समझ चुकी है।