मदरसे की पढ़ाई अब रुकावट नहीं, नींव बन रही है – नई सोच, नया रास्ता
मदरसे को अब तक केवल मज़हबी तालीम तक सीमित मान लिया गया था – कुरान, हदीस, तजवीद और अरबी तक। लेकिन अब एक नया सिलसिला शुरू हुआ है, जहाँ मदरसे की बुनियाद पर बनी सोच को मैनेजमेंट, लॉ, पब्लिक पॉलिसी, और इंटरनेशनल रिलेशन जैसे आधुनिक विषयों से जोड़ा जा रहा है। यह बदलाव केवल सिलेबस का नहीं, सोच का है। अब मदरसों के होनहार छात्र दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों – IIM, JNU, AMU, Jamia, Ashoka University, और यहां तक कि Oxford और Harvard – तक पहुँच बना रहे हैं।
कहानी कुछ ऐसे युवाओं की, जिन्होंने दीनी तालीम से शुरू किया और दुनिया में कमाल किया
लखनऊ के मौलाना अरशद नदवी, जिन्होंने नदवतुल उलमा से अरबी की शिक्षा ली, अब IIM अहमदाबाद से MBA कर रहे हैं, और स्टार्टअप वर्ल्ड में Ethical Finance पर काम कर रहे हैं। भोपाल के तौफीक जमाल, जो मदरसे से फाज़िल की डिग्री लेकर निकले थे, अब JNU में पब्लिक पॉलिसी पर शोध कर रहे हैं और Waqf Management Reform पर राष्ट्रीय रिपोर्ट का हिस्सा हैं। वहीं हैदराबाद की रुकैया बानो, जिन्होंने आलिमा कोर्स के बाद BA किया, अब Jamia Millia Islamia में Development Studies में टॉपर रही हैं।
इन सबकी पृष्ठभूमि मज़हबी रही है, लेकिन मंज़िल – समाज को समझना और सँवारना – पूरी तरह आधुनिक और प्रगतिशील है।
सिलेबस से सोच तक – बदलाव मदरसों के भीतर से भी शुरू हुआ है
कई प्रमुख मदरसों ने अब NCERT किताबें, कम्प्यूटर एजुकेशन, इंग्लिश लैब्स और करियर काउंसलिंग को अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। Darul Uloom Deoband, Jamiat-ul-Falah, और Jamia Arifia जैसे संस्थानों में अब हाफिज बनने के साथ-साथ UPSC की तैयारी और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम भी चल रहे हैं। यह वो क्रांतिकारी बदलाव है जिसमें अब “दीनी इल्म” और “दुनियावी कामयाबी” साथ-साथ चल रही है।
Ethical Entrepreneurship की नई मिसाल – मुस्लिम युवाओं की अलग सोच
इन मदरसा पृष्ठभूमि वाले युवाओं की एक और खासियत है – व्यवसाय में नैतिकता (ethics)। दिल्ली के मोहसिन काज़ी ने Islamic Finance पर रिसर्च करने के बाद एक ऐसा फिनटेक स्टार्टअप शुरू किया जो interest-free micro loans देता है, और अब तक 10,000 से ज्यादा जरूरतमंदों की मदद कर चुका है। देवबंद के अब्दुल रहमान ने Halal-certified eCommerce प्लेटफॉर्म शुरू किया है, जो MSME को digital market से जोड़ता है।
नया आत्मविश्वास: अब दीन और दुनिया की जंग नहीं, संतुलन है
इन युवाओं की सबसे बड़ी ताक़त यह है कि वे अपनी धार्मिक पहचान से समझौता किए बिना आधुनिक व्यवस्था में दक्ष हो रहे हैं। नमाज़ पढ़ते हैं, अरबी बोलते हैं, लेकिन साथ ही डेटा एनालिटिक्स, मार्केट रिसर्च और सॉफ्ट स्किल्स में भी माहिर हैं। यह संतुलन ही आज मुस्लिम समाज को नई दिशा दे रहा है – जहाँ अब दीन और दुनिया को दो ध्रुव नहीं, एक ज़ंजीर समझा जा रहा है।
आँकड़े गवाही दे रहे हैं – यह बदलाव स्थायी है, सतही नहीं
1. 2024-25 में AMU और Jamia में मदरसा बैकग्राउंड से आने वाले छात्रों की संख्या 60% बढ़ी
2. Muslim Reform & Leadership Council के आंकड़ों के अनुसार, मदरसे से निकले 120 से अधिक छात्र UPSC, PCS, UGC-NET जैसी परीक्षाओं में सफल हुए
3. 2025 की शुरुआत में 10 से अधिक मदरसों ने स्किल, भाषा और करियर मार्गदर्शन केंद्र खोले हैं
दीन की जड़ों से जुड़ा हुआ नौजवान, जो दुनिया की ऊँचाइयों तक पहुँच रहा है। आज मदरसे से निकले युवा सिर्फ मोलवी नहीं बन रहे – वे समाजशास्त्री, वकील, अफसर, इनोवेटर और लीडर बन रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ मुस्लिम समाज का नहीं, पूरा भारत इसे महसूस कर रहा है। अब मदरसा मतलब सिर्फ इबादतगाह नहीं, आशाओं का अड्डा बन चुका है।