इस्लामाबाद/दोहा 18 अक्टूबर 2025
बमबारी का भूकंप: पाकिस्तान की हवाई कार्रवाई और तालिबान का ‘राष्ट्रीय अपमान’
अफगानिस्तान की सरज़मीन पर पाकिस्तान द्वारा की गई हवाई बमबारी ने क्षेत्रीय कूटनीति और सैन्य मोर्चे पर एक गहन भूकंप ला दिया है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पड़ोसी देशों के संबंध युद्ध की दहलीज़ पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। इस दुस्साहसी हमले ने न केवल सीमाई तनाव को चरम पर पहुँचाया, बल्कि सूत्रों के मुताबिक, इसमें तीन अफगान क्रिकेटरों की मौत हो गई, जिसके बाद काबुल और अन्य शहरों में पाकिस्तान-विरोधी प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके हैं। अफगान तालिबान ने इस कार्रवाई को “राष्ट्रीय संप्रभुता पर सीधा अपमान” करार देते हुए पाकिस्तान को “मुंहतोड़ जवाब” देने की खुली चेतावनी दी है। इस अप्रत्याशित संकट से घबराकर, पाकिस्तान ने तत्काल प्रभाव से अपने रक्षा मंत्री, गुप्तचर प्रमुख (ISI चीफ), और विदेश मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल को कतर के दोहा भेजा है, जहाँ अफगान तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ “आपात शांति वार्ता” शुरू की गई है। इस घटनाक्रम ने पाकिस्तान की आंतरिक और बाहरी दोनों नीतियों को गहन संकट में डाल दिया है।
तनाव की जड़: ‘स्पोर्ट्स टेररिज़्म’ का आरोप और राष्ट्रीय ग़ुस्से की आग
इस विस्फोटक तनाव की तात्कालिक जड़ वह घटना बनी जब अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान के साथ चल रही टी20 सीरीज़ से अचानक हटने का निर्णय लिया। यह बहिष्कार तब हुआ जब सीमा पार से हुई पाकिस्तानी बमबारी में उनके तीन साथी खिलाड़ी मारे गए और कई अन्य घायल हुए। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने इस हमले को सीधे तौर पर “स्पोर्ट्स टेररिज़्म” बताते हुए अंतर्राष्ट्रीय खेल बिरादरी को चौंका दिया, जबकि काबुल की तालिबान सरकार ने इस अतिक्रमण के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। अफगान विदेश मंत्रालय ने कड़े शब्दों में बयान जारी किया: “यह हमारी सीमा पर हमला नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता और सम्मान पर किया गया सीधा हमला है। क्रिकेटर हमारे राष्ट्रीय हीरो थे, और उनके खून का हिसाब लिया जाएगा।” यह बयान सिर्फ कूटनीतिक धमकी नहीं है, बल्कि इसने पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में भी गर्मजोशी ला दी है, जहाँ विपक्षी दलों ने शहबाज़ शरीफ़ सरकार पर आरोप लगाया है कि वे “अपने पड़ोसियों के साथ भी आतंक और युद्ध की भाषा में बात कर रहे हैं।”
पाकिस्तान की बैकफ़ुट डिप्लोमेसी: दोहा में सम्मान की भीख
इस सैन्य और कूटनीतिक झटके ने पाकिस्तान की विदेश नीति को गहन सदमा पहुँचाया है। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, इस्लामाबाद ने अपने सबसे वरिष्ठ अधिकारियों को कतर भेजा, जिसमें रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, आईएसआई प्रमुख नादिर अनीस और विदेश सचिव सिराज दर शामिल थे। इस आपात वार्ता का उद्देश्य स्पष्ट है: तालिबान सरकार से “शांति की पुनर्स्थापना” की भीख मांगना और इस गंभीर सीमा विवाद को केवल एक “सीमित और अपरिहार्य घटना” बताकर दबाने की कोशिश करना। हालाँकि, तालिबान नेतृत्व इस बार नरम पड़ने को तैयार नहीं है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान को चेताया है कि “अफगानिस्तान किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा, चाहे वह पाकिस्तान ही क्यों न हो। यदि हमारे नागरिकों पर हमले दोहराए गए, तो जवाबी कार्रवाई सीमा के इस पार भी होगी।” पाकिस्तान की यह बैकफ़ुट डिप्लोमेसी दर्शाती है कि वह दो मोर्चों पर संकट झेल रहा है—एक तरफ ईरान के साथ सीमा तनाव और दूसरी तरफ अफगानिस्तान के संभावित जवाबी हमले का ख़तरा।
खेल से क़यामत तक—पाकिस्तान फँसा अपने ही जाल में
यह एक असाधारण अंतर्राष्ट्रीय घटना है जहाँ एक खेल विवाद ने दोनों देशों को युद्ध की आहट तक पहुँचा दिया है। पाकिस्तान, जिसने दशकों तक सीमा पार अस्थिरता को अपनी कूटनीति का एक अंग बनाया, आज उसी जाल में बुरी तरह फँस चुका है। तालिबान सरकार, जिसे इस्लामाबाद कभी “अपना दोस्त” और “रणनीतिक गहराई” मानता था, आज वही “दोस्त की बंदूक की नली” के सामने खड़ा है। काबुल, जलालाबाद और कंधार में पाकिस्तान-विरोधी ग़ुस्सा उबल रहा है, जहाँ लोग पाकिस्तानी झंडे जलाकर और “शहीद क्रिकेटरों का बदला लेंगे” के नारे लगाकर राष्ट्रीय भावना को चरम पर ले जा रहे हैं। तालिबान ने औपचारिक माफी और हानि के मुआवज़े की मांग करके पाकिस्तान को कठिन राजनयिक स्थिति में डाल दिया है। यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान अब सिर्फ क्रिकेट नहीं खेलेगा; वह राष्ट्रीय सम्मान के नाम पर पाकिस्तान के साथ हिसाब बराबर करने की गंभीर तैयारी में है, और दोहा वार्ता ही इस समय दोनों देशों के बीच टूटते रिश्ते को बचाने की आखिरी पतली डोर साबित हो रही है।