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बासमती से बिरयानी तक: खाड़ी के दिल में धड़कता हिंदुस्तान

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अमृतसर/ चंडीगढ़/ नई दिल्ली 21 अक्टूबर 2025

भारतीय चावल, विशेष रूप से बासमती, न केवल भारत की कृषि-शक्ति का प्रतीक है बल्कि उसकी सांस्कृतिक कूटनीति का भी एक अनमोल हथियार बन चुका है। चावल — वह भी बासमती — भारत की मिट्टी, मौसम और मेहनत का ऐसा संगम है जिसने सीमाओं को लांघकर पूरी दुनिया में अपनी सुगंध फैलाई है। और जब इस चावल का मिलन गल्फ देशों के मसालों, मांस और अरबी स्वाद से हुआ, तब पैदा हुई — “गल्फ बिरयानी” — जो आज न केवल भोजन है बल्कि एक वैश्विक भावनात्मक अनुभव बन गई है। मध्य पूर्व के स्वाद को समृद्ध करने में हरियाणा की 40% हिस्सेदारी है, सऊदी अरब और ईरान प्रमुख आयातक रहेंगे—आर्थिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों का गहन विश्लेषण इस रिपोर्ट में आप पाएंगे। 

बासमती: भारत की सुगंध जो दुनिया को जोड़ती है

बासमती चावल का इतिहास लगभग 2500 वर्ष पुराना बताया जाता है। इसका उल्लेख आयुर्वेदिक ग्रंथों से लेकर मुगल दरबारों तक मिलता है। उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाने वाला बासमती दुनिया का सबसे सुगंधित और लंबा चावल माना जाता है। “बासमती” शब्द का अर्थ ही है — बास (सुगंध) और मति (भरपूर)।

भारतीय बासमती चावल का अनूठा स्वाद, लम्बाई और सुगंध उसकी भौगोलिक विशेषता से जुड़ा है — हिमालय की तराई की मिट्टी, मानसून का संतुलित जल और पारंपरिक सिंचाई के तरीके। यही वजह है कि भारत ने 2016 में बासमती को Geographical Indication (GI Tag) दिलाया, जिससे इसका वैश्विक ब्रांड मूल्य और बढ़ा।

भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है। APEDA (Agricultural & Processed Food Products Export Development Authority) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023-24 में भारत ने लगभग 45 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया, जिसकी कुल कीमत 5.5 अरब डॉलर (करीब ₹45,000 करोड़) रही। इन निर्यातों का 70% हिस्सा गल्फ देशों — सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, कतर, कुवैत, ओमान और बहरीन — को गया।

गल्फ बिरयानी: भारत की देन, अरब की पहचान

जब भारतीय मजदूर, व्यापारी और रसोइये गल्फ देशों में काम करने गए, तो उन्होंने अपने साथ भारत का स्वाद भी वहाँ पहुंचाया। भारत की देसी बिरयानी — जो लखनऊ, हैदराबाद और केरल की गलियों से होकर गुज़री थी — गल्फ की धरती पर जाकर नई पहचान बनाने लगी। स्थानीय मसालों, अरब के देसी घी, बकरे या ऊंट के मांस और सूखे मेवों के साथ जब हिंदुस्तानी बासमती मिला, तो एक नई बिरयानी संस्कृति जन्मी — खलीजी बिरयानी।

दुबई, अबू धाबी, रियाद और मस्कट में आज भारतीय बिरयानी सिर्फ भारतीयों की नहीं रही — वह अरबों के दिल का हिस्सा बन चुकी है। सऊदी अरब में “दम बासमती बिरयानी” को शाही व्यंजनों में गिना जाता है, जबकि यूएई में “एमिराती बिरयानी” के लिए बासमती के बिना रसोई अधूरी मानी जाती है। कई गल्फ होटलों में “Royal Biryani with Indian Basmati” अब एक स्टेटस सिंबल बन गया है।

अरब की मेज़ पर हिंदुस्तान की खुशबू

अरब देशों के शाही खानसामे कहते हैं — “बिना हिंदुस्तानी बासमती, बिरयानी अधूरी।” इसका कारण सिर्फ उसका स्वाद नहीं बल्कि उसकी ‘कहानी’ है। एक दाने का उबालने के बाद दुगना लंबा हो जाना, उसकी नर्म बनावट और बेमिसाल खुशबू — यह सब बासमती को बाकी दुनिया के चावलों से अलग करता है।

सऊदी के रेस्टोरेंट “अल-बैक” से लेकर अबू धाबी के “गोल्ड बिरयानी पैलेस” तक, हर जगह लिखा दिखता है — Made with Indian Basmati Rice. 

गल्फ में भारत के हर राज्य की अपनी अलग पहचान वाली बिरयानी मौजूद है —

  1. हैदराबादी बिरयानी अपने तेज मसालों और गाढ़े स्वाद के लिए
  1. लखनऊ की बिरयानी अपने सूक्ष्म सुगंध और केसर के लिए
  1. केरल की मलाबारी बिरयानी नारियल तेल और इलायची के लिए इन सभी को गल्फ की रसोई ने अपनाया और अपने स्थानीय स्वाद के साथ गूंथ दिया।
  1. हरियाणा की बासमती: खाड़ी देशों की बिरयानी का दिल और जायके का आधार

भारत की सॉफ्ट पावर और कूटनीति में बासमती की भूमिका

बासमती अब सिर्फ व्यापारिक वस्तु नहीं रही, बल्कि भारत की “कूटनीतिक पहचान” बन गई है। गल्फ देशों में भारतीय राजदूतावासों द्वारा आयोजित सांस्कृतिक आयोजनों में बिरयानी और बासमती चावल भारत की मेज़ का ‘स्टार डिश’ होती है।

भारत और सऊदी अरब के बीच “Rice Diplomacy” ने व्यापारिक संबंधों को भी नई दिशा दी है। कई अरब देशों ने भारतीय बासमती पर निर्भरता इतनी बढ़ा दी है कि वे स्थानीय उत्पादन के बावजूद आयात जारी रखते हैं।

भारत की कई बासमती ब्रांड्स जैसे India Gate, Daawat, Lal Qilla, Kohinoor, Tilda गल्फ देशों में ‘घर के नाम’ बन चुके हैं। दुबई और अबू धाबी के सुपरमार्केट में इनकी मांग इतनी अधिक है कि कई बार भारत से विशेष चार्टर्ड शिप भेजे जाते हैं।

भविष्य की ओर: खेत से शाही थाल तक

भारत अब “सस्टेनेबल बासमती फार्मिंग” की दिशा में काम कर रहा है ताकि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित उत्पादन को संतुलित किया जा सके। नई तकनीक से खेती, ड्रोन आधारित सिंचाई और ऑर्गेनिक उत्पादन ने बासमती को और अधिक विश्वसनीय बनाया है। भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक बासमती निर्यात को 10 अरब डॉलर तक पहुँचाया जाए।

एक दाना, दो सभ्यताएं

भारतीय बासमती सिर्फ एक अनाज नहीं — वह एक कहानी है। एक ऐसी कहानी जो भारत की धरती से शुरू होकर अरब के दिल में जाकर खत्म नहीं होती, बल्कि वहीं से नया जन्म लेती है। जहाँ भारतीय किसान का परिश्रम और गल्फ के शेख की पसंद एक कटोरे में मिलकर एक साझा संस्कृति बनाते हैं। यह वही कटोरा है जिसमें हिंदुस्तान की मिट्टी और अरब की महक एक साथ पकती है — और दुनिया को दिखाती है कि स्वाद, खुशबू और साझेदारी भी कूटनीति की भाषा हो सकती है।

हरियाणा: भारतीय बासमती निर्यात का केंद्रीय और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण गढ़

हरियाणा राज्य भारतीय बासमती चावल के वैश्विक उत्पादन और निर्यात में एक केंद्रीय, अपरिहार्य और प्रमुख भूमिका निभाता है, जिसकी जड़ें इसकी उपजाऊ मिट्टी और सदियों पुरानी कृषि परंपराओं में निहित हैं। यह क्षेत्र, विशेष रूप से करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र और पानीपत की कृषि बेल्ट जिसे लोकप्रिय रूप से “जी.टी. रोड बेल्ट” कहा जाता है, विश्व-स्तरीय और प्रीमियम गुणवत्ता वाले बासमती चावल की खेती के लिए विश्वभर में विख्यात है। इसका सीधा प्रमाण राज्य के निर्यात आँकड़ों में झलकता है, जहाँ भारत के कुल बासमती चावल निर्यात में हरियाणा की हिस्सेदारी एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो लगभग 30% से 40% के बीच रहती है। यह भारी योगदान हरियाणा को देश के सबसे बड़े बासमती निर्यातकों में से एक बनाता है, और इसकी फसलें न केवल भारत की मांग पूरी करती हैं, बल्कि इसकी सुगंध को वैश्विक रसोई तक पहुँचाती हैं। 

आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो, हरियाणा के चावल निर्यातक प्रति वर्ष ₹18,000 करोड़ से ₹20,000 करोड़ तक की विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं, जो न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और कृषि निर्यात क्षेत्र के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस निरंतर बढ़ते व्यापार को बनाए रखने और खाड़ी देशों की गुणवत्ता संबंधी सख्त मांगों को पूरा करने के लिए, हरियाणा सरकार करनाल जैसे प्रमुख चावल व्यापार केंद्रों पर आधुनिक टेस्टिंग लैब स्थापित करने की योजना पर गंभीरता से काम कर रही है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि निर्यातित चावल उच्चतम अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा उतरे।

खाड़ी देश: हरियाणा की बासमती के सबसे बड़े और ऐतिहासिक शौकीन बाजार

खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के देश और व्यापक मध्य पूर्व के राष्ट्र, एक लंबे और अटूट व्यापारिक इतिहास के कारण, हमेशा से ही भारतीय बासमती चावल के सबसे बड़े, सबसे महत्त्वपूर्ण और पुराने शौकीन रहे हैं। ये देश हरियाणा की प्रीमियम बासमती के लिए एक स्थिर और मजबूत मांग बनाए रखते हैं। हाल के वर्षों में, सऊदी अरब (Saudi Arabia) भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा खरीदार बनकर उभरा है, जो इस बात का प्रमाण है कि हरियाणा के चावल की गुणवत्ता उसकी शाही पाक-परंपराओं के अनुकूल है। सऊदी अरब में, बासमती चावल का आयात बड़े पैमाने पर किया जाता है, जहाँ इसका उपयोग न केवल दैनिक उपभोग में होता है, बल्कि यह उत्सवों, भव्य शाही दावतों और उनके सबसे प्रसिद्ध व्यंजन बिरयानी या कब्सा (Kabsa) बनाने में भी एक अनिवार्य घटक होता है। इसी तरह, ईरान (Iran), जो ऐतिहासिक रूप से भारत से बासमती आयात करने वाला सबसे प्रमुख देश रहा है, अभी भी लाखों टन चावल का आयात करता है। 

हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण इसकी आयातक रैंकिंग में बदलाव आता रहता है, फिर भी हर साल लगभग 1 मिलियन टन बासमती चावल ईरान को निर्यात किया जाता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा हरियाणा के चावल उत्पादकों और मिलों द्वारा भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त, इराक (Iraq) और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भी शीर्ष बासमती आयातक देशों की सूची में प्रमुखता से शामिल हैं, क्योंकि ये देश अपने स्थानीय व्यंजनों, विशेषकर बिरयानी और मजबूत (Majboos), की प्रामाणिकता और सुगंध को हरियाणा की प्रीमियम बासमती के बिना अधूरा मानते हैं। खाड़ी देशों में, बासमती का उपयोग केवल ‘भोजन’ तक सीमित नहीं है; यह उनकी संस्कृति में मेहमाननवाज़ी, सामाजिक प्रतिष्ठा, विलासिता और सम्मान का एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक बन चुका है।

स्वाद और संस्कृति का द्विपक्षीय व्यापार: हरियाणा की बासमती का सांस्कृतिक सेतु

खाड़ी देशों में हरियाणा की प्रीमियम बासमती की अभूतपूर्व और दीर्घकालिक लोकप्रियता का मुख्य कारण इसका अद्वितीय स्वाद, इसकी असाधारण लंबी दाने वाली बनावट (जो पकने के बाद भी नहीं टूटती) और इसकी मनमोहक, मखमली सुगंध है। यह विशिष्ट विशेषताएँ ही इसे वहाँ की बिरयानी, कब्सा और मज़बूस जैसे व्यंजनों के लिए सबसे आदर्श और वांछनीय बनाती हैं। यह दिलचस्प है कि खाड़ी देशों की बिरयानी (जिसे अक्सर मध्य-पूर्वी बिरयानी कहा जाता है) भले ही भारतीय शैली से अलग हो (जैसे कम मसाले और अधिक सौम्य/मीठा स्वाद), लेकिन उसका मूल आधार और सुगंध की आत्मा भारतीय बासमती, विशेष रूप से हरियाणा की बासमती, ही है। 

हरियाणा का प्रीमियम चावल इन व्यंजनों को वह शाही, समृद्ध और विशिष्ट सुगंध प्रदान करता है जिसकी खाड़ी के उपभोक्ता और शाही खान-पान के जानकार अपेक्षा रखते हैं। यह व्यापारिक संबंध केवल हालिया विकास नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी सामुद्रिक व्यापार परंपराओं का एक आधुनिक विस्तार है, जो भारत और खाड़ी देशों के बीच केवल वस्तुओं के आदान-प्रदान से कहीं अधिक गहरा है। यह एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान है जहाँ स्वाद, रसोई की तकनीकों और पाक-कला के दर्शन का भी परस्पर लेन-देन हुआ है। इस प्रकार, हरियाणा का बासमती चावल अब सिर्फ एक कृषि उत्पाद नहीं रह गया है; यह खाड़ी देशों और भारत के बीच एक अटूट सांस्कृतिक, व्यापारिक और आर्थिक पुल बन चुका है, जिसने दो सभ्यताओं को स्वाद और सुगंध के धागे से हमेशा के लिए जोड़ दिया है।

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