नई दिल्ली 13 अक्टूबर 2025
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप, चंडीगढ़ में मामला दर्ज
देश के सबसे बड़े मीडिया नेटवर्कों में से एक इंडिया टुडे समूह एक बड़े विवाद में घिर गया है। चंडीगढ़ पुलिस ने आजतक की वरिष्ठ एंकर अंजना ओम कश्यप और ग्रुप चेयरमैन अरुण पुरी के खिलाफ़ वाल्मीकि समाज की धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है। यह मामला तेजी से राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बन गया है। शिकायत में कहा गया है कि अंजना ओम कश्यप ने अपने एक टीवी कार्यक्रम के दौरान भगवान वाल्मीकि के संदर्भ में “अपमानजनक और असंवेदनशील टिप्पणी” की, जिससे समाज के करोड़ों अनुयायियों की आस्था को ठेस पहुँची। पुलिस ने आईपीसी की धारा 295A (धार्मिक भावनाएं भड़काना), 500 (मानहानि) और 34 (साझा साजिश) के तहत केस दर्ज किया है।
वाल्मीकि समाज का आक्रोश: “हमारे आराध्य का अपमान बर्दाश्त नहीं”
वाल्मीकि समाज के संगठनों ने इस टिप्पणी को सीधे-सीधे “धार्मिक असम्मान” और “जातिगत अपमान” बताया है। उनके अनुसार, यह केवल एक शब्द की गलती नहीं, बल्कि एक मानसिकता की झलक है जो दलित समाज के प्रति मीडिया में व्याप्त भेदभाव को उजागर करती है।
देशभर में वाल्मीकि समाज से जुड़े संगठनों ने अंजना ओम कश्यप से माफ़ी की मांग की है और आजतक चैनल के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में वाल्मीकि समाज के लोगों ने पोस्टर जलाए, चैनल का बहिष्कार करने की घोषणा की और चेतावनी दी कि अगर चैनल ने सार्वजनिक माफी नहीं मांगी तो “देशव्यापी आंदोलन” किया जाएगा।
सोशल मीडिया पर फूटा गुस्सा: #BoycottAajTak ट्रेंड में
जैसे ही खबर फैली, ट्विटर (X), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #BoycottAajTak, #ArrestAnjanaOmKashyap और #JusticeForValmikiCommunity हैशटैग्स ट्रेंड करने लगे। यूज़र्स ने अंजना पर दलित समुदाय का अपमान करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मीडिया को समाज की संवेदनशीलता और विविधता का सम्मान करना चाहिए। कई लोगों ने वीडियो क्लिप्स और स्क्रीनशॉट साझा करते हुए लिखा — “जो मीडिया समाज को जोड़ने का दावा करती है, वही अब उसे तोड़ने में लगी है।” कुछ उपयोगकर्ताओं ने यह भी लिखा कि “जब तक दलित आस्था का मज़ाक उड़ाया जाता रहेगा, तब तक यह देश समानता की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकता।”
एफआईआर में दर्ज गंभीर धाराएं, पुलिस ने शुरू की जांच
चंडीगढ़ पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच शुरू कर दी है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक़, शिकायतकर्ता ने उस कार्यक्रम का वीडियो सबूत के रूप में जमा किया है जिसमें विवादित टिप्पणी की गई थी। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि “प्रारंभिक जांच में मामला संवेदनशील पाया गया है और संबंधित एंकर एवं चैनल प्रबंधन से जवाब तलब किया जाएगा।” अब तक अंजना ओम कश्यप या इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया है। मीडिया हाउस ने विवाद पर चुप्पी साध रखी है, जो समाज में और गुस्सा पैदा कर रहा है।
पत्रकारिता की मर्यादा पर सवाल: क्या टीआरपी के लिए आस्था का मज़ाक जरूरी है?
यह घटना भारतीय टीवी पत्रकारिता की गिरती नैतिकता पर एक और करारा तमाचा है। कभी “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ” कहे जाने वाला मीडिया अब अक्सर सत्ता का प्रवक्ता बनता दिखाई देता है। टीआरपी और प्रोपेगेंडा की होड़ में कई बार धार्मिक प्रतीकों, दलित चिंतन और समाज के वंचित वर्गों की गरिमा के साथ खिलवाड़ हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि “आज पत्रकारिता का संकट सत्य का नहीं, संवेदना का है।” हर समुदाय को अपनी आस्था और पहचान पर गर्व करने का अधिकार है। लेकिन जब कैमरे की रौशनी में बैठे एंकरों को अपनी जुबान की मर्यादा का एहसास नहीं रहता, तो मीडिया का भरोसा डगमगाने लगता है।
वाल्मीकि समाज की चेतावनी: “48 घंटे में माफ़ी दो, नहीं तो देशभर में आंदोलन”
वाल्मीकि समाज के राष्ट्रीय संगठनों ने सख्त चेतावनी दी है कि अगर 48 घंटे के भीतर अंजना ओम कश्यप और इंडिया टुडे ग्रुप ने सार्वजनिक माफी नहीं मांगी, तो पूरे देश में आंदोलन छेड़ा जाएगा। अखिल भारतीय वाल्मीकि महासभा, दलित शक्ति मंच, और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एकता मंच जैसे संगठनों ने बयान जारी कर कहा — “हम भगवान वाल्मीकि के अपमान को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। जो मीडिया हमारे आराध्य का मज़ाक उड़ाएगी, उसका हर मंच पर विरोध होगा।” कई राज्यों में प्रदर्शन की तैयारियाँ चल रही हैं। दिल्ली और अंबाला में विरोध मार्च की अनुमति मांगी गई है, वहीं पंजाब में वाल्मीकि मंदिरों के बाहर धरना शुरू हो चुका है।
राजनीतिक भूचाल: मीडिया स्वतंत्रता बनाम दलित अस्मिता की जंग
यह विवाद अब राजनीति के गलियारों तक पहुँच चुका है।
बीएसपी सुप्रीमो मायावती, कांग्रेस के दलित नेता उदित राज, और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अंजना की टिप्पणी की निंदा की है और तुरंत कार्रवाई की मांग की है। मायावती ने कहा — “दलितों के भगवान का अपमान कोई छोटी बात नहीं। मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी बनना चाहिए, न कि जातीय अपमान का मंच।” कुछ भाजपा समर्थकों ने इसे “मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला” बताया है। उनका कहना है कि “पत्रकारों पर धार्मिक मामलों में मुकदमे दर्ज करने से अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में पड़ जाएगी।” लेकिन दलित संगठनों का जवाब स्पष्ट है — “यह अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं, अपमान की आज़ादी है।”
मीडिया की गिरती साख और जनता की नाराज़ी
इस घटना ने यह सवाल और तेज कर दिया है कि भारतीय मीडिया आखिर किस दिशा में जा रहा है। पहले पत्रकार समाज की आवाज़ माने जाते थे, वहीं अब उन्हें सत्ता और पूंजी की भाषा बोलने वाला वर्ग कहा जाने लगा है।आजतक जैसे प्रतिष्ठित चैनल पर जब ऐसी भाषा का प्रयोग होता है, तो यह केवल एक एंकर की गलती नहीं — बल्कि उस पूरे मीडिया तंत्र की विफलता है जिसने संवेदना, मर्यादा और जिम्मेदारी को भुला दिया है। समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों के लिए मीडिया कभी उम्मीद था, अब भय का प्रतीक बनता जा रहा है।
जब सत्ता और मीडिया एक मंच पर हों, तो आस्था ठोकर खाती है
यह मामला सिर्फ़ एक FIR नहीं, बल्कि मीडिया की विश्वसनीयता पर मुकदमा है। वाल्मीकि समाज का गुस्सा किसी राजनीति से प्रेरित नहीं, बल्कि उस अपमान की प्रतिक्रिया है जो वर्षों से दलित पहचान को झेलनी पड़ी है। आजतक और अंजना ओम कश्यप को यह समझना होगा कि पत्रकारिता का मतलब जनता की आवाज़ होना है, न कि जनभावना का मज़ाक उड़ाना। अगर इस बार भी “माफी और भूल” के बहाने काम चल गया, तो यह भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की एक और ईंट गिरने जैसा होगा। देश को सच्ची पत्रकारिता चाहिए — वह जो सच्चाई बोले, न कि सत्ता की भाषा।