मुंबई, महाराष्ट्र
30 जुलाई 2025
आज जहां दुनिया भर में फैशन का अर्थ तेज़ी से बदलते ट्रेंड और ग्लोबल ब्रांड्स तक सिमटा हुआ लगता है, वहीं भारत में युवा पीढ़ी — विशेषकर Gen Z (1997 से 2012 के बीच जन्मे युवा) — अब देसी और पारंपरिक फैशन की ओर तेज़ी से आकर्षित हो रही है।
मुंबई, कोलकाता, जयपुर, और चेन्नई जैसे शहरों में हैंडलूम हाट, खादी भंडार और लोकल डिजाइनरों की दुकानों पर अब पहले से अधिक युवाओं की भीड़ देखी जा रही है। खादी कुर्ते, हैंडलूम साड़ी, अजरख प्रिंट, चंदेरी और इकत फैब्रिक को अब युवाओं ने ‘स्टाइल स्टेटमेंट’ मान लिया है।
फैशन डिजाइनर अनीता डोंगरे और संजय गर्ग जैसे डिज़ाइनरों ने पारंपरिक टेक्सटाइल को इंटरनैशनल रैम्प पर पहुंचाया है, जिससे युवाओं के बीच में लोकल से ग्लोबल का ट्रेंड मज़बूती से उभरा है। सोशल मीडिया पर भी #SustainableFashion और #VocalForLocal जैसे हैशटैग लोकप्रिय हो रहे हैं।
यह चलन न सिर्फ एक सौंदर्य चयन है, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता और भारतीय शिल्पियों को सम्मान देने की भावना का भी हिस्सा बन चुका है। छात्र और युवा प्रोफेशनल्स अब त्योहारों के मौकों पर या ऑफिस पार्टियों में भी खादी जैकेट, सिल्क साड़ियां या लहंगे-चोली पहनने लगे हैं — वो भी गर्व के साथ।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव भारतीय फैशन इंडस्ट्री के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जो न केवल स्थायित्व की ओर इशारा करता है, बल्कि शिल्प और संस्कृति के पुनर्जागरण का भी प्रतीक बन रहा है।