लखनऊ 22 सितंबर 2025
कानपुर से शुरू हुआ ‘आई लव मोहम्मद’ का नारा अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। कई शहरों में मुस्लिम समुदाय द्वारा शांतिपूर्ण जुलूस निकाले जा रहे हैं, जिनमें लोग अपने पैग़म्बर मोहम्मद के प्रति प्रेम और आस्था जाहिर कर रहे हैं। लेकिन कुछ जगहों पर इसे लेकर आपत्तियां सामने आ रही हैं, जिससे नया विवाद खड़ा हो गया है।
सवाल यह उठ रहा है कि जब देश में लोग खुलेआम ‘जय श्रीराम’, ‘जय श्रीकृष्ण’ या गणेश चतुर्थी के पर्व पर नारे लगाते और जुलूस निकालते हैं, तब किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। सिख समुदाय अपने गुरुपर्व पर विशाल नगर कीर्तन करते हैं, जिन्हें समाज पूरे आदर और सम्मान के साथ स्वीकार करता है। फिर आखिर ऐसा क्या है कि जब मुस्लिम समुदाय ‘आई लव मोहम्मद’ कहता है तो उसे विवाद का विषय बना दिया जाता है?
भारत की ताक़त उसकी धार्मिक विविधता और एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान है। किसी भी धर्म के लोग अगर शांतिपूर्ण ढंग से जुलूस या कार्यक्रम आयोजित करते हैं, तो उसमें समस्या देखने के बजाय इसे एकता और भाईचारे का प्रतीक समझना चाहिए।
मुस्लिम संगठनों का कहना है कि उनका उद्देश्य किसी धर्म की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है, बल्कि अपने पैग़म्बर के प्रति प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करना है। जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण और अनुशासित होते हैं। वहीं, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस पर आपत्ति जताना न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट है, बल्कि समाज को बांटने की साज़िश भी है।
असल सवाल यही है—जब देश के अन्य धर्मों की आस्थाओं को सम्मान और जगह मिलती है, तो फिर ‘आई लव मोहम्मद’ पर इतनी आपत्ति क्यों? क्या समय आ गया है कि हम सभी धर्मों के शांतिपूर्ण आयोजनों को बराबरी का सम्मान दें और भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को मज़बूत बनाएं?