नई दिल्ली 24 सितंबर 2025
भारत का लोकतंत्र बार-बार इस सवाल से टकरा रहा है कि आखिर चुनाव आयोग (ECI) निष्पक्ष संस्था है या सत्ता के दबाव में चलने वाला कठपुतली तंत्र? यह सवाल हवा में नहीं है। हाल की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि चुनाव आयोग ने न केवल गड़बड़ियों को नज़रअंदाज़ किया, बल्कि उन गड़बड़ियों पर पर्दा डालने का भी काम किया।
राहुल गांधी का खुलासा और आयोग की ‘घबराहट’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक के आलंद विधानसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम हटाने की साजिश का पर्दाफाश किया। उन्होंने सबूतों के साथ बताया कि कैसे फर्जी मोबाइल नंबर और फर्जी पहचान के सहारे करीब छह हजार वोटरों को डिलीट करने की कोशिश की गई। यह कोई मामूली आरोप नहीं था। यह लोकतंत्र की जड़ पर वार था।
राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल उठाया — “किसी ने हजारों वोटरों का नाम हटाने की कोशिश की, आखिर किसके संरक्षण में?”। यह सवाल जितना सीधा था, उतना ही असहज करने वाला भी। और ठीक इसी सवाल के बाद चुनाव आयोग ने अचानक अपने नियम बदल दिए।
चोरी पकड़ी गई तो नियम बदले
अगर चुनाव आयोग पूरी तरह पाक-साफ था, तो फिर इतनी हड़बड़ी क्यों? अब अचानक Aadhaar-linked मोबाइल OTP और e-sign फीचर क्यों अनिवार्य कर दिया गया?
क्या यह साफ सबूत नहीं कि अब तक सिस्टम खुला छोड़ा गया था ताकि सत्ता के इशारे पर “वोटर डिलीट गैंग” मनमानी कर सके? सच्चाई यह है कि चोरी तभी ताले की मांग करती है जब चोर पकड़ा जाता है। राहुल गांधी ने जब यह खेल उजागर किया, तभी आयोग को “ईमानदारी का चोला” पहनना याद आया।
18 सितम्बर को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने खुलासा किया कि किस तरह जनता के वोट डिलीट किए जा रहे थे, जिसके बाद चुनाव आयोग हिल गया और सिर्फ़ एक हफ़्ते में नियम बदलते हुए वोटर डिलीट करने के लिए ई-वेरीफिकेशन अनिवार्य कर दिया गया। यह साबित करता है कि राहुल गांधी जी के वोट चोरी पर दिए गए सबूत 100% पुख्ता हैं और अचानक नियम बदलना बड़े पैमाने पर हुई धांधली को ढकने की कोशिश थी। असलियत यह है कि चुनाव आयोग नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर संगठित वोट चोरी में शामिल है, लेकिन अब देश की जनता इस खेल को समझ चुकी है और लोकतंत्र के ख़िलाफ़ कोई भी साज़िश सफल नहीं होगी — यही वजह है कि जनमानस का संदेश साफ़ है: “वोट चोर, गद्दी छोड़।”
चोरों का संरक्षण करने वाले कौन?
यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन चोरियों के पीछे कौन लोग हैं? चुनाव आयोग का यह रवैया साफ बताता है कि वह न केवल वोट चोरों की रक्षा कर रहा था, बल्कि उनके लिए आसान रास्ते भी मुहैया करा रहा था। आज अगर राहुल गांधी ने यह मुद्दा नहीं उठाया होता, तो शायद लाखों असली मतदाताओं का नाम हमेशा के लिए सूचियों से मिटा दिया जाता। इसका सीधा फायदा सत्ता पक्ष को मिलता और लोकतंत्र फिर एक और गहरी चोट झेलता।
जनता बनाम चुनाव आयोग
चुनाव आयोग बार-बार दावा कर रहा है कि ई-साइन फीचर से अब पारदर्शिता बढ़ेगी। सवाल यह है कि क्या पहले तक पारदर्शिता की कोई परवाह नहीं थी? क्या आयोग को इस खतरे का अंदाज़ा नहीं था कि बिना आधार और OTP वेरिफिकेशन के प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा? असल में, आयोग तभी हरकत में आया जब राहुल गांधी ने उसकी लापरवाही को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। यह दिखाता है कि आयोग जनता के लिए नहीं, बल्कि अपनी साख बचाने के लिए मजबूरन नियम बदल रहा है।
लोकतंत्र की असली लड़ाई
यह विवाद हमें एक गहरी सच्चाई बताता है —भारत का लोकतंत्र सिर्फ जनता के वोट से नहीं, बल्कि उस वोट की रक्षा करने वाली संस्थाओं की ईमानदारी पर भी टिका है। और जब संस्थाएँ ही सत्ता की दलाली करने लगें, तब लोकतंत्र की जड़ें खोखली हो जाती हैं। राहुल गांधी ने यह साबित कर दिया है कि चुनाव आयोग वोट चोरी की मशीनरी को बचा रहा था। और वे नेता, जो चुनाव आयोग की ढाल बनकर खड़े हैं, वे दरअसल असली चोरों के संरक्षक हैं।
राहुल गांधी की लड़ाई सिर्फ कांग्रेस की नहीं है, यह हर उस मतदाता की लड़ाई है जो अपने वोट को लोकतंत्र की ताकत मानता है। आज सवाल सिर्फ यह नहीं कि चुनाव आयोग नियम क्यों बदल रहा है। असली सवाल यह है कि जब तक राहुल गांधी ने आवाज़ नहीं उठाई, तब तक आयोग चुप क्यों बैठा था? और इसका जवाब साफ है, क्योंकि चुनाव आयोग चोरों के साथ था, जनता के साथ नहीं।