Home » Opinion » चुनाव आयोग का ‘वोट चोरी’ विवाद: भरोसे की लड़खड़ाहट

चुनाव आयोग का ‘वोट चोरी’ विवाद: भरोसे की लड़खड़ाहट

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

जनता का भरोसा और संवैधानिक संस्था का संकट

भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ है चुनाव आयोग। यह संस्था अब तक अपने निष्पक्ष चरित्र और सख़्त निर्णयों की वजह से जनता का विश्वास अर्जित करती रही है। लेकिन हालिया ‘वोट चोरी’ विवाद पर आयोग की प्रतिक्रिया ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस तरह से आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गांधी के आरोपों का प्रतिवाद किया, वह उसकी तटस्थता और गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।

आरोप और आयोग की प्रतिक्रिया: आत्मघाती कदम?

राहुल गांधी और विपक्ष ने ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाकर सीधे तौर पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर हमला बोला था। आयोग को उम्मीद थी कि उसकी सफाई से हालात संभल जाएंगे, लेकिन हुआ उल्टा। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त की बातें न केवल उलझी हुई रहीं बल्कि इसने आयोग की कार्यप्रणाली की खामियों को और उजागर कर दिया। डेटा और तकनीकी बिंदुओं पर साफ़ जवाब देने के बजाय टालमटोल से आयोग ने खुद अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।

संविधानिक गरिमा बनाम राजनीतिक जंग

चुनाव आयोग का दायित्व है कि वह किसी भी राजनीतिक दल के आरोपों पर संतुलित और तथ्यों पर आधारित प्रतिक्रिया दे। लेकिन यहाँ यह धारणा मज़बूत हुई कि आयोग विपक्ष को खंडित करने की कोशिश में सत्ता पक्ष के पक्षधर जैसा दिखा। इससे आयोग की गरिमा पर गहरी चोट पहुँची। संवैधानिक संस्थाओं को राजनीति की खींचतान से ऊपर रहना चाहिए, लेकिन आयोग के ताज़ा कदम ने उसकी तटस्थता की छवि को नुकसान पहुँचाया है।

जनता के बीच संशय और लोकतंत्र पर असर

जब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था सवालों के घेरे में आ जाती है, तो लोकतंत्र की जड़ों में अविश्वास पनपता है। जनता यह सोचने पर मजबूर हो जाती है कि क्या चुनाव वास्तव में निष्पक्ष हैं। ‘वोट चोरी’ के आरोपों की जांच और पारदर्शिता से समाधान किया जा सकता था, लेकिन भावनात्मक प्रतिक्रिया ने इसे और जटिल बना दिया। चुनाव आयोग को याद रखना होगा कि जनता का विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है।

 पारदर्शिता और आत्ममंथन की ज़रूरत

वोट चोरी विवाद में चुनाव आयोग की भूमिका आत्ममंथन की मांग करती है। एक सशक्त लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है कि चुनाव आयोग पूरी तरह पारदर्शी और तथ्याधारित तरीके से अपनी बात रखे। भावनाओं और दबाव में दिए गए बयान उसकी निष्पक्षता को संदेहास्पद बनाते हैं। अगर आयोग ने अपनी गरिमा और जनता के भरोसे को मज़बूत करना है तो उसे आत्मविश्वास के साथ खुला संवाद और ठोस कार्रवाई करनी होगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *