कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वर्किंग कमेटी के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग (ECI) पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि आयोग “संदेश को समझने के बजाय संदेशवाहक पर निशाना साध रहा है।” उन्होंने कहा कि एक संवैधानिक संस्था के रूप में आयोग को विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा चुनावी धांधली पर दिए गए विस्तृत प्रतिवेदन को गंभीरता और खुलेपन के साथ लेना चाहिए था, न कि उन्हें शपथ लेकर बयान देने की चुनौती देनी चाहिए थी।
सिंघवी ने आरोप लगाया कि बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision) में कई गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा, “राहुल गांधी ने जो तथ्य रखे हैं, वे केवल आरोप नहीं हैं, बल्कि ठोस प्रमाण हैं। आयोग को चाहिए कि वह इन पर कार्रवाई करे, न कि राजनीतिक दबाव में आकर विपक्ष की आवाज को दबाए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में चुनावी पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “यदि चुनाव आयोग का एकमात्र दायित्व सत्ता पक्ष की सेवा करना है, तो यह लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।” सिंघवी ने आगाह किया कि अगर आयोग अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहता है, तो विपक्ष इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़क तक जोर-शोर से उठाएगा। उन्होंने यह भी दोहराया कि राहुल गांधी का प्रतिवेदन न केवल कानूनी रूप से मजबूत है, बल्कि राजनीतिक और नैतिक दृष्टि से भी इसे नजरअंदाज करना असंभव है।
सिंघवी का यह बयान उस समय आया है जब बिहार में उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के दो अलग-अलग EPIC नंबर होने और उम्र में अंतर जैसी गंभीर शिकायतें आरजेडी नेता तेजस्वी यादव द्वारा सामने लाई गई हैं। इन आरोपों ने विपक्ष को चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाने का नया आधार दे दिया है।
इस पूरे विवाद ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है और अब नजरें चुनाव आयोग की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता बनी रहेगी या नहीं।