नई दिल्ली, 7 सितंबर 2025
देश के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में से एक माने जा रहे सहारा इंडिया ग्रुप निवेश घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बड़ा कदम उठाते हुए कोलकाता की पीएमएलए कोर्ट में 1.74 लाख करोड़ रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग केस की चार्जशीट दायर कर दी है। इस चार्जशीट ने सहारा के संस्थापक स्वर्गीय सुब्रतो रॉय की विरासत पर गहरी चोट की है क्योंकि इसमें सीधे तौर पर उनकी पत्नी सपना रॉय और बेटा सुशांतो रॉय को मुख्य आरोपी बनाया गया है। यह कार्रवाई न केवल सहारा समूह के कारोबारी मॉडल की साख पर सवाल खड़े करती है बल्कि उन लाखों निवेशकों की उम्मीदों को भी नया मोड़ देती है, जिन्होंने दशकों पहले अपनी गाढ़ी कमाई सहारा में लगाई थी और आज तक अपने पैसे की वापसी का इंतजार कर रहे हैं।
ईडी ने चार्जशीट में आरोप लगाया है कि सहारा ने निवेशकों को ऊंचे और सुरक्षित रिटर्न का सपना दिखाकर करोड़ों लोगों से भारी-भरकम रकम जुटाई, लेकिन निर्धारित समय पर उन्हें पैसा लौटाने के बजाय उस धन का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग, अचल संपत्तियों की खरीद और बेनामी सौदों में किया गया। चार्जशीट में यह भी दर्ज है कि सहारा समूह ने निवेशकों के पैसे को कई परतों में छिपाया और उसे अलग-अलग कंपनियों और खातों में घुमाकर सफेद धन के रूप में दिखाने की कोशिश की। इस प्रक्रिया में न केवल भारतीय कानूनों का उल्लंघन हुआ बल्कि करोड़ों छोटे निवेशक बर्बादी के कगार पर पहुंच गए।
चार्जशीट में सबसे बड़ा नाम सुशांतो रॉय का सामने आया है। ईडी ने उसे भगोड़ा घोषित किया है क्योंकि वह बार-बार समन भेजे जाने के बावजूद पूछताछ में शामिल नहीं हुआ। अब ईडी ने उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सपना रॉय पर भी गंभीर आरोप हैं कि उन्होंने निवेशकों से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल विदेशों में संपत्ति और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के लिए किया। इस मामले की गहराई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ईडी ने सहारा समूह के 20 से अधिक ठिकानों पर छापे मारे और करोड़ों रुपये मूल्य की अचल संपत्तियां और बैंक खातों को जब्त किया।
यह मामला केवल एक कारोबारी घराने की गड़बड़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर उन लाखों लोगों पर पड़ा है जिन्होंने सहारा की योजनाओं में अपनी जिंदगी की कमाई लगा दी थी। गांव-गांव और कस्बों तक पहुंच रखने वाली सहारा इंडिया ने उस समय गरीब और मध्यमवर्गीय निवेशकों को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। लेकिन जब समय आया तो इन निवेशकों को न तो उनका मूलधन वापस मिला और न ही वादा किया गया ब्याज। आज भी हजारों लोग अदालतों और रेगुलेटरी संस्थाओं के चक्कर लगा रहे हैं, ताकि उन्हें उनका हक मिल सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कार्रवाई भारत की वित्तीय व्यवस्था में पारदर्शिता लाने की दिशा में अहम कदम है। ईडी की इस चार्जशीट से साफ है कि सरकार अब बड़े कॉर्पोरेट घरानों और वित्तीय घोटालों में शामिल ताकतवर लोगों को भी बख्शने के मूड में नहीं है। सहारा प्रकरण केवल एक घोटाले का मामला नहीं बल्कि वित्तीय सुधारों की दिशा में चेतावनी है कि कोई भी कंपनी या समूह निवेशकों को धोखा देकर बेनामी संपत्ति और मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए नहीं बच सकता।
अब इस मामले की अगली सुनवाई में यह देखना होगा कि अदालत सपना रॉय और सुशांतो रॉय के खिलाफ क्या रुख अपनाती है और लाखों निवेशकों के अटके पैसे की वापसी की दिशा में कौन-से ठोस कदम उठाए जाते हैं। इस चार्जशीट ने निश्चित तौर पर सहारा समूह के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है और निवेशकों की नजर अब पूरी तरह से न्यायपालिका और ईडी की अगली कार्रवाई पर टिक गई है।