नई दिल्ली
1 अप्रैल 2025
मनुष्य क्यों विचलित होता है?
ग्रहण — यह शब्द सुनते ही भारतीय जनमानस में एक विशिष्ट हलचल शुरू हो जाती है। मंदिरों के कपाट बंद हो जाते हैं, गर्भवती महिलाएं चिंता में आ जाती हैं, और लोग स्नान-दान की तैयारियों में लग जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता, जबकि विज्ञान इसे खगोलीय घटना भर कहता है। यह लेख एक गहरी दृष्टि डालता है — सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के समय बनते ज्योतिषीय योगों पर, उनके कुंडली पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों पर, और विज्ञान की ठोस समझ पर। आखिर जानिए — क्या ग्रहण वास्तव में आपकी कुंडली को प्रभावित करते हैं, या यह एक सांस्कृतिक परंपरा मात्र है?
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण
वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा आत्मा और मन के प्रतिनिधि माने जाते हैं। जब इन दोनों पर राहु और केतु की छाया पड़ती है, तो इसे ग्रहण कहा जाता है।
ज्योतिषीय रूप से, सूर्यग्रहण को पिता, आत्मबल, नेतृत्व और पहचान से जोड़कर देखा जाता है, जबकि चंद्रग्रहण का संबंध मन, भावना, माता और मानसिक स्थिति से होता है। ग्रहण उस समय और स्थान पर विशेष असर डालते हैं, जहाँ वे दिखाई दे रहे होते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य या चंद्रमा पर पहले से राहु-केतु की दृष्टि या युति है, और उसी दौरान ग्रहण होता है, तो उस समय विशेष मानसिक, शारीरिक या सामाजिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
संभावित प्रभाव
ग्रहण का प्रभाव स्थायी नहीं होता, लेकिन वह व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुछ समय के लिए भावनात्मक अस्थिरता, निर्णय में भ्रम, रिश्तों में खटास या स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। यदि ग्रहण काल में सूर्य/चंद्रमा आपके लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो उसका प्रभाव थोड़ा अधिक महसूस किया जा सकता है। विशेषकर यदि किसी व्यक्ति का जन्म ठीक ग्रहण के समय हुआ हो, तो ज्योतिष के अनुसार उसका जीवन कुछ असाधारण या संघर्षपूर्ण प्रवृत्ति वाला हो सकता है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि वह नकारात्मक हो — ग्रहण में जन्मे कई व्यक्ति गहराई से सोचने वाले, मौलिक, रहस्यमयी या आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध होते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान की दृष्टि से सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण पूरी तरह खगोलीय घटनाएं हैं, जिनका मानव शरीर या मन पर सीधा कोई जैविक प्रभाव नहीं पड़ता। सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है, जिससे सूर्य का कुछ हिस्सा या पूरा भाग ढक जाता है। वहीं चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर चंद्रमा पर अपनी छाया डालती है। विज्ञान यह नहीं मानता कि इन घटनाओं के समय कोई ‘नकारात्मक ऊर्जा’ उत्पन्न होती है। परंतु यह स्वीकार करता है कि मानसिक प्रभाव यानी मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है — जैसे डर, तनाव, भ्रांतियाँ या सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन — विशेष रूप से उन लोगों में जो ग्रहण को लेकर बचपन से विशेष मान्यताएं लेकर बड़े हुए हों।
धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं
भारत में ग्रहण को लेकर अनेक धार्मिक परंपराएं हैं — जैसे ग्रहण काल में भोजन न करना, मंत्र जाप करना, स्नान-दान करना, गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर न निकलने की सलाह देना आदि। हालाँकि इन सबका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, परंतु ग्रहण के समय ध्यान करना, आत्ममंथन करना, मौन रहना और गंगा जैसे पवित्र नदियों में स्नान करना मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से शांतिप्रद अनुभव दे सकता है। योगशास्त्र और तंत्र शास्त्र के अनुसार भी यह समय सूक्ष्म ऊर्जा के जागरण का काल होता है — जब ध्यान और मंत्र प्रभावशाली हो सकते हैं। अतः इसे डरने का नहीं, अपने भीतर झांकने का समय माना जाना चाहिए।
ग्रहण में जन्मे कुछ ऐतिहासिक व्यक्तित्व
इतिहास में कई महान व्यक्ति ऐसे भी हुए हैं जिनका जन्म या जीवन किसी ग्रहण के आसपास हुआ — और वे आम लोगों से कहीं अधिक संवेदनशील, रहस्यपूर्ण और प्रभावशाली रहे। ज्योतिष में यह माना जाता है कि ग्रहण जन्मा व्यक्ति सामान्य से हटकर सोचता है, दुनिया को एक अलग दृष्टिकोण से देखता है, और उसमें कुछ अद्भुत करने की क्षमता होती है — बशर्ते वह अपनी आंतरिक शक्तियों को समझ सके। “ग्रहण केवल प्रकाश की छाया नहीं, बल्कि चेतना का अवसर हैं। आपकी कुंडली पर उनका प्रभाव उतना ही है, जितना आप उन्हें स्वीकार करते हैं। डरिए मत, समझिए। भागिए मत, झांकिए — अपने भीतर।”