नई दिल्ली | राजनीतिक ब्यूरो रिपोर्ट 14 अक्टूबर 2025
लोकनीति विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने चुनाव आयोग पर एक और गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि आयोग ने पिछले तीन महीनों से “इंटेंसिव रिवीजन” (SIR) से जुड़ी अहम गाइडलाइन को जानबूझकर छिपाकर रखा था। उन्होंने कहा कि अब जो दस्तावेज़ सामने आए हैं, वे आयोग के हर दावे को झूठा साबित करते हैं।
योगेन्द्र यादव ने कहा, “जिस गाइडलाइन को चुनाव आयोग तीन महीने से दबाकर बैठा था — वह आज सामने है। यानी 2003 में बिहार में हुए ‘इंटेंसिव रिवीजन’ की आधिकारिक गाइडलाइन, जो चुनाव आयोग के एक-एक दावे का खंडन करती हैं। साफ़ है — चुनाव आयोग का यह दावा कि SIR के ज़रिए 2003 की प्रक्रिया दोहराई जा रही है, पूरी तरह झूठ है।”
इस खुलासे ने चुनाव आयोग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यादव ने बताया कि चुनाव आयोग ने 2003 की गाइडलाइन को सार्वजनिक नहीं किया, बल्कि जानबूझकर इसे “फायरवॉल” के पीछे छिपा दिया ताकि कोई भी नागरिक या संगठन इसे डाउनलोड या RTI के ज़रिए हासिल न कर सके।
जब एक यूज़र ने यादव से पूछा कि “क्या आप इस दस्तावेज़ को सार्वजनिक कर सकते हैं या बता सकते हैं कि इसे कहां से डाउनलोड किया जा सकता है?”
इस पर योगेन्द्र यादव ने जवाब दिया, “कोई लिंक नहीं है, क्योंकि आयोग ने इस दस्तावेज़ को फायरवॉल के पीछे डाल दिया है और RTI के तहत देने से भी इनकार कर दिया। लेकिन ADR (Association for Democratic Reforms) ने अपने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के साथ पूरा 62 पन्नों का दस्तावेज़ संलग्न किया है।”
यानी, चुनाव आयोग ने न केवल जनता से सच्चाई छिपाने की कोशिश की, बल्कि RTI कानून की भावना का भी उल्लंघन किया। अब यह मामला न सिर्फ तकनीकी या प्रशासनिक