लेखक : अरिंदम बनर्जी | कोलकाता 2 अक्टूबर 2025
शक्ति का पर्व, आत्मा का उत्सव
दुर्गा पूजा केवल पूजा का अवसर नहीं है, यह भारतीय संस्कृति का वह पर्व है जो हर वर्ष हमें यह याद दिलाता है कि जब भी बुराई अपनी सीमा पार करती है, तब शक्ति का जागरण होता है। मां दुर्गा का नौ रूपों में आगमन हमें यह सिखाता है कि जीवन में संकट चाहे कितना भी बड़ा हो, यदि हम साहस और आत्मबल से लड़ें तो विजय निश्चित है। आज जब देशभर में दुर्गा पूजा की धूम है, तो यह केवल पंडालों, मूर्तियों और भव्य आयोजनों की सजावट नहीं है, बल्कि यह भीतर छिपी उस शक्ति को जगाने का समय है जो हमें अपने जीवन के रावणों से लड़ने की प्रेरणा देती है।
सांस्कृतिक संगम और जन-जन का उत्सव
कोलकाता की भव्य पंडाल संस्कृति से लेकर असम, झारखंड, ओडिशा और बिहार के पारंपरिक आयोजनों तक, उत्तर भारत के रामलीला मंचन से लेकर दक्षिण भारत की नौ देवी आराधना तक—दुर्गा पूजा पूरे देश में अलग-अलग रूपों में मनाई जाती है। यह केवल बंगाल की धड़कन नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का उत्सव है। दुर्गा पूजा पंडालों में कला, शिल्प और समाज का संगम दिखता है। कलाकार महीनों की मेहनत से ऐसी प्रतिमाएँ गढ़ते हैं जिनमें देवी के साथ-साथ हमारी सामाजिक चेतना भी जीवित हो उठती है। यह पर्व हमें जोड़ता है, बाँधता है और बताता है कि भारत की असली ताक़त उसकी विविधता में एकता है।
दुर्गा पूजा का संदेश: रावण बाहर नहीं, भीतर है
रामायण में रावण का वध और महिषासुर पर दुर्गा की विजय केवल ऐतिहासिक या पौराणिक कथाएँ नहीं हैं। वे आज भी जीवंत हैं क्योंकि असली रावण हमारे भीतर है—अहंकार का, लोभ का, लालच का, अन्याय का और हिंसा का। माँ दुर्गा की प्रतिमा को देखकर हमें यह सवाल खुद से पूछना चाहिए कि क्या हम अपने भीतर के रावण को जला पा रहे हैं? क्या हम अपने भीतर की बुराइयों को खत्म कर पा रहे हैं? असली विजय वही है जब हम अपनी आत्मा को बुराई से मुक्त करें।
महिला शक्ति और दुर्गा का आदर्श
दुर्गा पूजा हमें यह भी याद दिलाती है कि नारी केवल करुणा और ममता का प्रतीक नहीं, बल्कि शक्ति और सामर्थ्य का भी प्रतीक है। जब देवता भी असहाय हो गए, तब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। यह संदेश है कि स्त्री को कमज़ोर समझना सबसे बड़ी भूल है। आज जब समाज में महिला सुरक्षा, समानता और सम्मान के मुद्दे उठते हैं, तब दुर्गा पूजा हमें प्रेरित करती है कि हर घर, हर समाज और हर संस्था में महिला शक्ति का आदर और संरक्षण होना चाहिए।
आधुनिक संदर्भ: सामाजिक रावणों का नाश
आज का समाज भ्रष्टाचार, हिंसा, अन्याय, भेदभाव और नफ़रत जैसे रावणों से जूझ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण, बेरोज़गारी, गरीबी और असमानता भी आधुनिक महिषासुर हैं। दुर्गा पूजा का पर्व हमें केवल देवी की आराधना तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ खड़े होंगे। पूजा तभी सार्थक होगी जब हम यह प्रण लें कि अपने कर्म और विचार से समाज को बेहतर बनाएँगे।
असली विजय आत्मशक्ति की विजय है
दुर्गा पूजा की धूम-धाम, पंडालों की रोशनी और देवी के जयकारों के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि असली विजय हमारे भीतर की जागरूकता और आत्मशक्ति की है। अपने अंदर छिपे रावण का वध करना ही असली दुर्गा पूजा है। जब हम लोभ पर संयम, अहंकार पर विनम्रता, हिंसा पर अहिंसा और नफ़रत पर प्रेम की जीत हासिल करेंगे, तभी हम सच्चे अर्थों में माँ दुर्गा के भक्त कहलाएँगे। दुर्गा पूजा का यह पर्व हमें हर साल याद दिलाता है कि शक्ति बाहर नहीं, हमारे भीतर है। बस हमें अपने भीतर के रावण को पहचानना और खत्म करना होगा।