भोपाल, जो कभी ‘झीलों का शहर’ कहलाता था, अब जल संकट की चपेट में है। अपर और लोअर लेक समेत शहर की 14 में से 9 झीलें या तो सूख चुकी हैं या बुरी तरह प्रदूषित हो गई हैं। इसका असर सिर्फ जल आपूर्ति पर नहीं, बल्कि पूरे शहर के माइक्रो-क्लाइमेट पर पड़ रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि झीलें एक तरह से ‘शहरी एयर कंडीशनर’ का काम करती थीं, लेकिन अब उनके सूखने से तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की औसत बढ़ोतरी दर्ज की गई है। शहर का मानसून भी असमय और असमान हो गया है।
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार की नीतियाँ झीलों के संरक्षण में विफल रही हैं। अतिक्रमण, कचरा और सीवेज के बहाव ने झीलों को नाले में बदल दिया है। अब नए नागरिक प्रयासों से ‘झील पुनर्जीवन अभियान’ शुरू किया गया है, लेकिन इसके लिए दीर्घकालिक सरकारी सहयोग की आवश्यकता है।