मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बदहाली एक बार फिर सुर्खियों में है। पहले जहरीले कफ सिरप से बच्चों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया था, और अब बच्चों के एंटीबायोटिक सिरप में कीड़े मिलने का मामला सामने आया है। माता-पिता का आक्रोश और जनता का गुस्सा इस बात का प्रतीक है कि राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली पूरी तरह चरमराई हुई है।
जानकारी के मुताबिक, यह सिरप कई सरकारी अस्पतालों में बच्चों को दिया जा रहा था। शिकायत के बाद जब बोतलों की जांच की गई, तो उनमें कीड़े और सड़े हुए अवशेष पाए गए। ये वही दवाएं हैं जो राज्य सरकार की स्वास्थ्य आपूर्ति योजना के तहत वितरित की जा रही थीं। जांच अब ड्रग कंट्रोल विभाग और खाद्य एवं औषधि प्रशासन के पास है, लेकिन कार्रवाई का नामोनिशान नहीं दिख रहा।
मुख्यमंत्री की चुप्पी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा का मौन सवालों को और गहरा बना रहा है। विपक्ष का कहना है कि जब बच्चों की जान दांव पर हो, तब सरकार का “मौन व्रत” असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है। जनता पूछ रही है — क्या अब मौत भी “गवर्नेंस” का हिस्सा बन चुकी है?
विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला केवल स्वास्थ्य लापरवाही का नहीं, बल्कि सिस्टम की सड़ांध का प्रतीक है। जहरीले सिरप की मौतों के बाद भी अगर प्रशासन ने सबक नहीं लिया, तो यह सिर्फ ग़लती नहीं बल्कि अपराध है। बीजेपी शासित मध्य प्रदेश और केंद्र, दोनों पर अब यह सवाल मंडरा रहा है — जब बच्चों की जान भी सुरक्षित नहीं, तो विकास और संवेदनशील शासन की बात करना क्या सिर्फ एक नारा रह गया है? साफ है, जनता के दिलों में अब यह भावना घर कर चुकी है कि “दवा भी ज़हर बन गई है, और सरकार मौन साधे बैठी है।”