भारत की जीत के जश्न के पीछे छिपी इस कहानी में एक साधारण-सा घर है, एक छोटे से गांव की धूल भरी गलियाँ हैं और एक पिता है — जिसकी हथेलियों पर मेहनत की झुर्रियाँ और सपनों की चमक साथ-साथ पलती हैं। अमनजोत कौर की विश्वविजेता बनने की यह गाथा सिर्फ एक क्रिकेट जीत नहीं, बल्कि उस सोच पर गहरी चोट है जो आज भी बेटियों के सपनों पर ताले लगाने की कोशिश करती है। यह वही कहानी है जहाँ लोग कहते थे — “लड़की है, खेलकर क्या कर लेगी?” और एक पिता जवाब देता रहा — “मेरी बेटी आसमान छूएगी।”
इस पिता ने हाथों से लकड़ी तराशी, लेकिन दिमाग में बेटी का भविष्य तराशता रहा। रोज़ मरने-जीने की जद्दोजहद में भी उसने इतना तोहफा दिया — सपने देखने की आज़ादी। खेल-कूद में जब बेटियाँ आगे बढ़ने की चाह रखती हैं, तो समाज तुरंत उंगली उठाता है, लेकिन अमनजोत के पिता उस उंगली को कभी मायने नहीं देते। उन्होंने बेटी के हाथ में बल्ला थमाया और कहा — “जहाँ चाह, वहीं राह नहीं… वहाँ मंज़िल होती है।”
विश्व कप की शुरुआत होते ही अमनजोत का दमखम मैदान पर गर्जना करने लगा। पहला मैच ही उसका परिचय नहीं, उसका ऐलान था — कि वह यहाँ बस खेलने नहीं, इतिहास रचने आई है। जहां भारत का स्कोर लड़खड़ाया, वहीं उसने बल्ले से हिम्मत दिखाई। गेंदबाज़ी में भी उसके हर ओवर ने उम्मीदें जगाईं। सेमीफ़ाइनल में जब भारत को तेज़ गति की आवश्यकता थी, तो उसके शॉट्स ने जीत की राह आसान की। और फाइनल में — वह निर्णायक कैच! वह कैच सिर्फ गेंद नहीं था, वह हर उन शक़ करने वाली नज़रों का अंत था, जिन्होंने कभी इस लड़की के सपनों पर हंसी उड़ाई थी।
गाँव के चौक में लगे बड़े पर्दे पर जब पिता ने यह दृश्य देखा — तो वर्षों का संघर्ष, रातों के पसीने, कठिन दिनों की जलन, और न खत्म होने वाली उम्मीद — सब उसके आँसुओं के साथ बह निकली। वह रोया… पर पहली बार बेबस होकर नहीं, बल्कि गर्व में डूबकर। उसके घर में मातम नहीं, खुशी का सैलाब था। हर दीवार गूँज रही थी — “हमारी बेटी विश्व चैंपियन है!”
और विडंबना देखिए — वही पड़ोसी और रिश्तेदार जो कभी कहते थे “लड़की की पढ़ाई-लिखाई में इतना खर्च क्यों?” — वही आज उसकी फोटो के साथ सेल्फी लेने को बेचैन थे। गांव के बच्चे अपनी हीरोइन की तरह बैट पकड़कर मैदान की ओर भाग रहे थे। बुजुर्ग गर्व से कह रहे थे — “देखो, हमारी बेटी ने दुनिया हिला दी!”
हरियाणा तक इस जीत की धूम सुनाई दी —
वही हरियाणा, जिसने कभी अपनी ही बेटियों को जन्म लेने का हक़ नहीं दिया। वक्त बदल रहा है — और आज क्रिकेट ने उस बदलाव को हँसते-गाते रंगों में ढाल दिया। हर विकेट गिरने पर पटाखे, हर बॉल पर शोर, और अंतिम गेंद पर मानो — पुरा देश दीपावली बन गया हो।
अमनजोत कौर आज सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं — वह सपनों का झंडा है, आत्मविश्वास की परिभाषा है, और करोड़ों बेटियों की आवाज़ है। उसके बल्ले से निकली हर रन… उस सोच की हार है, जो लड़कियों को कम समझती है।
आज उसका परिवार आंसुओं से नहाया — क्योंकि उन आँसुओं में संघर्ष की कहानी है, और जीत की मिठास।
आज उसका नाम सिर्फ सिक्के पर नहीं — लाखों दिलों पर उकेरा जा चुका है।
अमनजोत ने यह साबित कर दिया — “बेटियाँ बोझ नहीं, इस देश की सबसे गर्वीली जीत हैं।” भारत की इस विश्व विजेता बेटी को सलाम — जिसने दुनिया को दिखा दिया कि सपनों की उड़ान, कभी किसी लिंग की मोहताज़ नहीं होती… बस एक पिता की हिम्मत चाहिए।





