नई दिल्ली
24 जुलाई 2023
धर्म क्या है? एक सार्वभौमिक चेतना का नाम
‘धर्म’ शब्द का अर्थ अक्सर लोग केवल पूजा-पाठ, मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या गुरुद्वारे से जोड़कर समझते हैं। लेकिन धर्म इन सबसे कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। संस्कृत में ‘धर्म’ का मूल अर्थ है – ‘धारण करने योग्य’, अर्थात वह तत्व या नियम जो व्यक्ति, समाज और सृष्टि को संतुलित रखे। यही कारण है कि भारत में धर्म को केवल कोई मत या पंथ नहीं माना जाता, बल्कि यह जीवन जीने की नैतिक पद्धति और आत्मिक अनुशासन है। चाहे वह सत्य हो, अहिंसा हो, करुणा हो या सेवा—ये सभी धर्म के स्तंभ हैं।
धार्मिकता: केवल कर्मकांड नहीं, एक आंतरिक जागरूकता
‘धार्मिक’ होना केवल किसी विशेष परंपरा का पालन करना नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति है। एक धार्मिक व्यक्ति हर कार्य में संयम, श्रद्धा, और करुणा को स्थान देता है। वह ईश्वर के प्रति निष्ठा के साथ-साथ, मानवता की सेवा को भी धर्म समझता है। धार्मिकता का मतलब है – अपने भीतर के ईश्वर को पहचानना और दूसरों में उसी चेतना का सम्मान करना। मंदिर जाना, नमाज पढ़ना, प्रार्थना करना—ये धार्मिकता के साधन हैं, लेकिन लक्ष्य है – आत्मिक शुद्धि और सामाजिक समरसता।
धर्म का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
भारतीय संस्कृति की नींव धर्म पर टिकी है। रामायण, महाभारत, गीता, वेद, कुरान, बाइबिल, गुरु ग्रंथ साहिब—ये सभी ग्रंथ धर्म को एक जीवन-दर्शन की तरह प्रस्तुत करते हैं। ये केवल उपासना पद्धति नहीं बताते, बल्कि सामाजिक आचरण, कर्तव्य, और जीवन के हर पहलू में संतुलन का मार्ग सुझाते हैं। धर्म ही वह शक्ति है जिसने भारत को हजारों वर्षों से विविधताओं के बावजूद एकजुट रखा है।
धर्म और विज्ञान: एक-दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं
आमतौर पर यह धारणा है कि धर्म और विज्ञान दो विरोधी ध्रुव हैं। लेकिन भारत में इन दोनों को हमेशा पूरक माना गया है। हमारे ऋषियों ने ध्यान, योग, पंचतत्व, आयुर्वेद, वास्तु, ग्रह-नक्षत्र आदि के ज़रिए विज्ञान को धर्म के साथ जोड़ा। विज्ञान ‘कैसे’ जानता है, धर्म ‘क्यों’ बताता है। दोनों मिलकर जीवन को दिशा और उद्देश्य प्रदान करते हैं। धार्मिकता अगर दिल की बात है, तो विज्ञान बुद्धि की। जब दोनों साथ चलते हैं, तब जीवन पूर्ण होता है।
आज के समय में धर्म का पुनर्पाठ क्यों ज़रूरी है?
वर्तमान समय में धर्म को अक्सर राजनीति, कट्टरता या उन्माद से जोड़ दिया गया है। लेकिन यह धर्म का विकृति है, धर्म का नहीं। सच्चा धर्म विभाजन नहीं करता, वह जोड़ता है। आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि धर्म किसी वस्त्र, भाषा या रीति-रिवाज में नहीं, बल्कि व्यवहार, दृष्टिकोण और विवेक में होता है। धर्म वह आचरण है जिससे कोई दूसरे को दुःख न पहुंचे, समाज में संतुलन बना रहे और आत्मा प्रसन्न हो।
धार्मिक जीवन का व्यक्ति पर प्रभाव
एक धार्मिक जीवन व्यक्ति को आंतरिक स्थिरता, मानसिक शांति, और उद्देश्यपूर्ण जीवन देता है। ध्यान, प्रार्थना, सत्संग, उपवास, या तीर्थयात्रा जैसे धार्मिक अभ्यास आत्मा को निर्मल करते हैं। जब व्यक्ति भीतर से शांत होता है, तो वह समाज में भी शांति और प्रेम फैलाता है। धार्मिक जीवन व्यक्ति को लोभ, अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विकारों से बचाता है और उसे विनम्र, क्षमाशील और दयालु बनाता है।
धर्म – भारत की आत्मा, मानवता की राह
धर्म न कोई बंधन है, न कोई दिखावा। धर्म वह प्रकाश है जो अज्ञानता को दूर करता है, वह पुल है जो व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ता है, वह दर्पण है जिसमें हम अपने कर्म, विचार और चरित्र को पहचानते हैं। धार्मिकता वही है जिसमें आत्मा, समाज और संसार – तीनों का भला हो।भारत की आत्मा धर्म है। और जब तक धर्म रहेगा – भारत जीवंत रहेगा। धर्म न छोड़े, न बांटे – उसे समझें, अपनाएं और जीएं। यही सच्ची धार्मिकता है।