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लोकतंत्र पर खतरा !! Clause-16 ने बनाया चुनाव आयुक्तों को अलौकिक

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नई दिल्ली 20 सितंबर 2025

सवाल जो हर भारतीय के मन में: राहुल गांधी क्यों चुप?

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को बचाने की बात करने वाले राहुल गांधी और विपक्ष के अन्य नेता बार-बार चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं। लोग अक्सर पूछते हैं कि जब मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और उनकी टीम पर इतने गंभीर आरोप लग रहे हैं, तो राहुल गांधी या कांग्रेस उन पर कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करते? जवाब सुनकर आप चौंक जाएंगे! बीजेपी ने एक ऐसा कानून बनाया है, जिसने चुनाव आयुक्तों को लगभग ‘अलौकिक’ शक्तियों से लैस कर दिया है। यह कानून न केवल विवादास्पद है, बल्कि लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक मिसाल भी बन गया है। आइए, इसकी गहराई में उतरते हैं।

Clause-16, CEC & EC Bill 2023: बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक

2023 में बीजेपी सरकार ने एक ऐसा विधेयक पेश किया, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया—Clause-16, Chief Election Commissioner and Other Election Commissioners (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Bill, 2023। इस बिल ने चुनाव आयुक्तों को ऐसी कानूनी छूट दी कि न तो सुप्रीम कोर्ट, न हाईकोर्ट, न सिविल कोर्ट, और न ही क्रिमिनल कोर्ट में उनके खिलाफ कोई केस चलाया जा सकता। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति, जो देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर हैं, उन्हें भी ऐसी व्यापक छूट नहीं दी गई है। इस बिल ने चुनाव आयुक्तों को ‘भगवान’ से भी ऊपर का दर्जा दे दिया, जिसके चलते कोई भी उनके फैसलों को कानूनी रूप से चुनौती नहीं दे सकता। यह कानून लोकतंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा सवाल उठाता है।

संसद में हंगामा: 141 सांसदों का निलंबन और बिल का पास होना

इस बिल को पास कराने का तरीका भी कम विवादास्पद नहीं था। बीजेपी ने संसद में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 141 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया। विपक्ष की आवाज को दबाकर, संसद में हंगामे के बीच इस बिल को जबरन पास किया गया। यह घटना न केवल संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि बीजेपी सरकार इस बिल को पास करने के लिए कितनी बेताब थी। सवाल यह उठता है कि आखिर सरकार को ऐसी जल्दबाजी क्यों थी? क्या यह बिल चुनाव आयोग को पूरी तरह अपने नियंत्रण में लेने की साजिश थी?

चुनाव आयोग का ‘ठेका’: बीजेपी की जीत सुनिश्चित?

इस बिल के पास होने के बाद से ही चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गए। कई विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग अब निष्पक्ष संस्था न होकर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने का ‘ठेका’ ले चुका है। मतदाता सूची में गड़बड़ी, EVM पर सवाल, और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी जैसे मुद्दों ने इन आरोपों को और हवा दी है। जब चुनाव आयुक्तों को कानूनी जवाबदेही से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है, तो क्या वे वाकई निष्पक्ष और स्वतंत्र रह सकते हैं? यह सवाल हर भारतीय के मन में कौंध रहा है।

लोकतंत्र खतरे में: क्या है रास्ता?

इस पूरी स्थिति ने भारत के लोकतंत्र को एक कठिन मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। जब देश की सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था को कानूनी जवाबदेही से परे कर दिया जाता है, तो यह न केवल लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि आम नागरिकों के विश्वास को भी ठेस पहुँचाता है। विपक्षी दल और सामाजिक संगठन इस बिल के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? जनता को भी इस मुद्दे पर जागरूक होने और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की जरूरत है।

राहुल गांधी का आह्वान: Gen Z बने संविधान और देश के रक्षक

कल अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने भारत के युवाओं, खासकर Gen Z को एक जोरदार संदेश दिया। उन्होंने कहा कि देश का संविधान और लोकतंत्र खतरे में है, और अब समय आ गया है कि नई पीढ़ी आगे बढ़कर इसकी रक्षा करे। Clause-16, CEC & EC Bill 2023 जैसे कानूनों के जरिए चुनाव आयोग को जवाबदेही से मुक्त करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कथित कब्जे के खिलाफ राहुल ने युवाओं से एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि Gen Z की ऊर्जा, जागरूकता और तकनीकी समझ ही देश को इस संकट से निकाल सकती है। यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि युवाओं के लिए एक युद्धघोष था कि वे संविधान और देश को बचाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाएं। 

 

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