नई दिल्ली। 3 अगस्त 2025
दिल्ली के अभिभावकों को राहत देते हुए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बड़ा ऐलान किया है। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर अब दिल्ली सरकार सख्ती से निपटने जा रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने घोषणा की है कि आगामी मानसून सत्र में उनकी सरकार एक विशेष विधेयक पेश करेगी, जिससे राजधानी के निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले कड़े नियमों का पालन करना अनिवार्य हो जाएगा। यह विधेयक, यदि पारित हो गया, तो यह दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में अभिभावकों के हित में एक ऐतिहासिक बदलाव लाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा सेवा है, न कि मुनाफे का साधन, और उनकी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि अभिभावकों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित न किया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि फीस वृद्धि के नाम पर हो रहे शोषण को रोकने के लिए एक पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता है, जिसमें स्कूलों को अपनी फीस बढ़ाने से पहले एक नियामक समिति की स्वीकृति लेनी होगी। यह समिति स्कूल के खर्च, वेतन संरचना, बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं और अभिभावकों की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए फैसले लेगी।
सूत्रों के अनुसार, प्रस्तावित विधेयक में यह प्रावधान होगा कि कोई भी निजी स्कूल सरकार की पूर्व अनुमति के बिना फीस नहीं बढ़ा सकेगा। यदि कोई स्कूल नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें मान्यता रद्द करना, आर्थिक दंड लगाना और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई तक का विकल्प खुला रहेगा। इसके अलावा, स्कूलों को अपनी पूरी फीस संरचना वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से अपलोड करनी होगी ताकि अभिभावकों को पहले से जानकारी हो सके और वे किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी से बच सकें।
दिल्ली सरकार के इस कदम को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कांग्रेस नेता और विधायक अरविंद सिंह ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह देरी से लिया गया, लेकिन बिल्कुल सही निर्णय है। उन्होंने कहा कि वर्षों से निजी स्कूलों की फीस वृद्धि को लेकर अभिभावकों की शिकायतें सामने आती रही हैं, लेकिन अब उनके दर्द को समझते हुए सरकार ने सही दिशा में कदम उठाया है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विधेयक में ऐसे प्रावधान शामिल किए जाएं जिससे स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित न हो, लेकिन आम नागरिक की जेब पर भी अनावश्यक भार न पड़े।
गौरतलब है कि बीते कुछ महीनों में दिल्ली के कई नामी स्कूलों ने 15% से 40% तक की फीस वृद्धि की है, जिससे मध्यम वर्गीय और निम्न आय वर्ग के परिवारों में भारी रोष है। कई जगहों पर अभिभावकों ने विरोध प्रदर्शन किए, याचिकाएं दायर कीं और सरकार से हस्तक्षेप की मांग की। इन्हीं जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अब कानूनी दायरे में रहकर स्कूलों पर नियंत्रण रखने की ठानी है।
इस विधेयक के तहत सरकार एक “स्कूल फीस विनियामक बोर्ड” (School Fee Regulatory Board) के गठन पर भी विचार कर रही है, जो हर शैक्षणिक सत्र की शुरुआत से पहले स्कूलों की फीस प्रस्तावों की समीक्षा करेगा और आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करेगा। यह बोर्ड शिक्षा, विधि, वित्त और नागरिक प्रतिनिधियों की भागीदारी से संचालित होगा ताकि निर्णय संतुलित और पारदर्शी हों।
मानसून सत्र में यह विधेयक दिल्ली विधानसभा में पेश किया जाएगा। इसे पारित कराने के लिए सरकार पूरी तरह तैयार है और संभावना है कि विधेयक को आम सहमति भी मिल सकती है क्योंकि शिक्षा को लेकर सभी राजनीतिक दलों में संवेदनशीलता है। अगर यह विधेयक कानून का रूप लेता है, तो दिल्ली भारत का पहला ऐसा राज्य बन जाएगा जहां निजी स्कूलों की फीस पर नियमित, कानूनी और पारदर्शी नियंत्रण स्थापित होगा।
यह कदम न केवल दिल्ली के शिक्षा तंत्र में विश्वास बहाल करेगा, बल्कि शिक्षा को एक न्यायसंगत, समावेशी और सामाजिक दृष्टि से जिम्मेदार क्षेत्र बनाएगा। ऐसे समय में जब शिक्षा निजीकरण की दौड़ में लगातार महंगी होती जा रही है, दिल्ली सरकार का यह प्रयास सामाजिक संतुलन की दिशा में एक मजबूत पहल मानी जा रही है।