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वोट गिने बिना बढ़त बता दी — दूरदर्शन जन नहीं, जनार्दन की चापलूसी में लीन

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कभी यह वही दूरदर्शन था, जिसे देश ने सत्य और निष्पक्षता की पहचान के रूप में देखा था। लेकिन आज वही DD News, जो संविधान की कसमें खाकर जनता का प्रतिनिधि कहलाता है, पूरी तरह सत्ता का भोंपू बन चुका है। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के बीच ही डीडी न्यूज ने ट्वीट कर दिया — “NDA’s Lead in the First Phase, the Wave Continues in the Second Phase Too.” यह बयान सिर्फ एक लाइन नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। जब वोटों की गिनती शुरू भी नहीं हुई, किसी अधिकृत आंकड़े का अस्तित्व ही नहीं, तो फिर यह “बढ़त” कहां से आई? क्या DD News अब चुनाव आयोग से पहले चुनाव परिणाम जानने लगा है? या फिर यह आदेश सीधे ऊपर से आया है — “लहर बताओ, माहौल बनाओ, जनता को भ्रमित करो”?

जो संस्थान जनता के टैक्स के पैसे से चलता है, उसका काम सत्ता की चापलूसी नहीं, सत्ता की जवाबदेही तय करना होता है। लेकिन आज DD News वही कर रहा है जो किसी पार्टी के आईटी सेल का ट्रोल करता है — ट्वीट पर चापलूसी, स्क्रीन पर महिमामंडन, और एंकरिंग में अहंकार। यह अब सरकारी चैनल नहीं, बीजेपी का मीडिया प्रकोष्ठ बन चुका है। सवाल पूछने की जगह अब वहां “सवालों का दमन” होता है। जो एंकर कभी जनता के लिए बोलते थे, अब सत्ता के लिए भौंकते हैं। जो चेहरे कभी सरकार की नीतियों पर तथ्य रखते थे, आज वही चेहरे “प्रधानमंत्री जी ने कहा तो सही ही कहा” जैसी मानसिक गुलामी का प्रदर्शन करते हैं।

विनोद दुआ जैसे पत्रकारों ने जब दूरदर्शन पर “जनवाणी” जैसे कार्यक्रम किए थे, तब सरकारें पसीना-पसीना हो जाती थीं। सत्ता के गलियारों में डर था कि अगर दुआ साहब ने सवाल पूछा तो जवाब देना पड़ेगा। लेकिन आज की स्थिति देखिए — अब तो DD News सरकार के प्रवक्ता से आगे बढ़कर प्रचारक बन चुका है। जो मंच कभी “जनता का” था, आज वो “जनता जनार्दन” की जगह “जनता जुमले” सुनाने में व्यस्त है।

ये वही देश है जहां कभी अमिताभ बच्चन जब सांसद बने थे, तो दूरदर्शन ने पांच साल तक उनकी कोई फिल्म नहीं दिखाई, क्योंकि Office of Profit और Code of Conduct का सम्मान था। उस वक्त संस्थान का चरित्र जीवित था। लेकिन आज दूरदर्शन की रीढ़ ही निकाल दी गई है। अब नैतिकता की जगह नरेन्द्रभक्ति, तटस्थता की जगह तालीवाद, और पत्रकारिता की जगह प्रचारवाद ने ले ली है।

क्या कोई बताएगा कि DD News को यह “NDA की बढ़त” किसने बताई? चुनाव आयोग? नहीं। कोई सर्वे? नहीं। कोई डेटा? नहीं। तो फिर यह खबर नहीं, झूठ की इंजीनियरिंग है। चुनाव के बीच ऐसा बयान जनता की राय को प्रभावित करने की सुनियोजित साजिश है — इसे चुनावी अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। आचार संहिता के दौरान यह न सिर्फ गैर-जिम्मेदाराना बल्कि गैरकानूनी कृत्य है। लेकिन यहां सब चलता है, क्योंकि सत्ता और संस्थान दोनों एक ही थाली के चट्टे-बट्टे बन चुके हैं।

सच तो यह है कि आज दूरदर्शन वो नहीं रहा जो जनता की आवाज़ था। आज यह सिर्फ एक ‘सरकारी गायक मंडली’ है, जो रोज़ सत्ता की धुन गुनगुनाती है। जो पत्रकार पहले सत्ता की आंखों में आंखें डालकर बात करते थे, अब वही पत्रकार प्रधानमंत्री की आंखों में झांककर तारीफ ढूंढते हैं। वो माइक जो कभी जनता के हाथ में था, आज मंत्रालयों के पिंजरे में बंद तोता बन चुका है।

चुनाव आयोग की भूमिका भी उतनी ही संदिग्ध है — जब चुनाव के बीच इस तरह की प्रचारात्मक खबरें चल रही हैं तो वो मौन क्यों है? क्या उसे भी “लहर” दिखाई दे रही है या उसने अपनी आंखों पर “संघ का चश्मा” चढ़ा लिया है?

यह समय इतिहास में दर्ज होगा — जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सत्ता के चरणों में गिर पड़ा, और दूरदर्शन, जो कभी पत्रकारिता की पहचान था, आज पार्टी की प्रोपेगैंडा मशीन बन गया। जनता को यह याद रखना होगा — अगर मीडिया सत्ता का भोंपू बन जाए, तो लोकतंत्र कब्रिस्तान में बदल जाता है। दूरदर्शन अब जनता का नहीं रहा — यह अब “दिल्ली दरबार का दूरदर्शन” है। और जो मीडिया सत्ता से सवाल नहीं पूछता, वह जनता का दुश्मन होता है।

 

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