नई दिल्ली
23 जुलाई 2025
एक सरकारी ऑडिट ने भारत की उस भयावह सच्चाई को उजागर किया है, जिसे दशकों से नजरअंदाज किया जाता रहा है—देश में सीवर की सफाई करते हुए मारे जाने वाले 90% से अधिक श्रमिकों के पास कोई सुरक्षा उपकरण नहीं था। यह तथ्य सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि उस बुनियादी गरिमा पर करारा तमाचा है, जो हर जीवन को सुरक्षित रखने की बात करता है।
2018 से 2023 तक देशभर में हुई 339 सीवर मौतों की गहन समीक्षा में सामने आया कि इनमें से 302 मामलों में श्रमिकों को कोई भी सुरक्षात्मक गियर नहीं दिया गया था—न मास्क, न ऑक्सीजन सिलेंडर, न ही कोई वेंटिलेशन सुविधा।
मानवाधिकारों की सीधी अवहेलना: इन मौतों का ज़िम्मेदार कौन है? सरकार, ठेकेदार, या हम सब जो इस अमानवीय प्रथा पर चुप रहते हैं? देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से मैला उठाना और गटर में बिना मशीन के उतरना) 2013 के कानून के तहत प्रतिबंधित है, लेकिन आज भी हर साल औसतन 50 से अधिक श्रमिक सीवर में दम तोड़ते हैं।
कई राज्यों की लापरवाही: रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में सबसे अधिक मौतें दर्ज की गईं। दुखद यह है कि कई मामलों में मृतकों के परिजनों को मुआवजा तक नहीं मिला।
सरकारी घोषणाओं और जमीनी हकीकत में फर्क: केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में ‘NAMASTE’ जैसी योजनाएं शुरू की हैं, जो सीवर सफाई को मशीनों के जरिए करने और श्रमिकों को ट्रेनिंग देने की बात करती हैं। लेकिन ऑडिट बताता है कि इन योजनाओं का ज़मीन पर प्रभाव ना के बराबर है।
“एक इंसान का काम नहीं होता सीवर में उतरना”—यह बात सिर्फ नारे में नहीं, व्यवस्था में दिखनी चाहिए। जब तक मशीनें हर गटर की जगह नहीं लेतीं, जब तक हर सफाईकर्मी को ‘वर्कर’ नहीं ‘मानव’ समझा जाएगा, तब तक ये आंकड़े सिर्फ बढ़ते रहेंगे।
जरूरत है जवाबदेही की: सरकार को चाहिए कि वह न सिर्फ मुआवज़ा सुनिश्चित करे, बल्कि हर नगर निगम, पंचायत और ठेकेदार को यह अनिवार्य बनाए कि किसी भी सीवर कार्य से पहले सुरक्षा किट, ऑक्सीजन सपोर्ट, और प्रशिक्षण सुनिश्चित हो।
यह खबर एक चेतावनी है—हमारे शहरों की सफाई कुछ लोगों की मौत से नहीं होनी चाहिए। गटर से उठती दुर्गंध से ज़्यादा भयानक है उस श्रमिक की खामोश चीख, जो जिंदा नीचे गया और लाश बनकर लौटा।