छत्तीसगढ़ के जंगल सफारी से इलाज के नाम पर गुजरात स्थित मुकेश अंबानी के पुत्र अनंत अंबानी के निजी चिड़ियाघर “वनतारा” भेजी गई बाघिन “बिजली” की मौत ने वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरणविदों को झकझोर दिया है। यह मामला न केवल एक वन्य जीव की मृत्यु का है, बल्कि इसने सरकारी तंत्र, वन विभाग और निजी चिड़ियाघरों के बीच के रिश्तों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
वैटनरी विशेषज्ञों का कहना है कि बाघिन बिजली पहले से बीमार थी, लेकिन उसे जिस तरह से ट्रेन में एक छोटे से पिंजरे में बंद कर लंबी दूरी तय करने के लिए भेजा गया, वही उसकी मौत की सबसे बड़ी वजह बनी। सफर का तनाव, बढ़ती गर्मी और प्रतिकूल माहौल उसकी पहले से कमजोर हालत पर भारी पड़ गए। इलाज के नाम पर की गई यह यात्रा उसके लिए मौत का सफर साबित हुई।
अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या छत्तीसगढ़ जैसे राज्य, जहां बाघों और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, वहां इलाज की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं? अगर नहीं हैं, तो यह सरकार और वन विभाग दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। और अगर सुविधाएं हैं, तो फिर एक बीमार बाघिन को निजी चिड़ियाघर में भेजने की क्या मजबूरी थी?
मौत के बाद भी कई अनुत्तरित सवाल बाकी हैं। क्या बाघिन बिजली का अंतिम संस्कार छत्तीसगढ़ के वन विभाग की देखरेख में कानूनन तरीके से किया गया? या फिर उसकी मौत के बाद उसके अंगों और खाल को किसी अवैध वन्यजीव व्यापार नेटवर्क में बेच दिया गया? वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत किसी भी संरक्षित प्राणी के अंगों की बिक्री या उपयोग एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।
सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है। #JusticeForBijli ट्रेंड कर रहा है और लोग मांग कर रहे हैं कि पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच हो। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इलाज के नाम पर निजी चिड़ियाघरों को वन्यजीव सौंपना एक खतरनाक चलन बन गया है, जिससे सरकारी वन्यजीव संरक्षण प्रणाली पर आम जनता का भरोसा डगमगा रहा है।
“बिजली” की मौत केवल एक बाघिन की मृत्यु नहीं, बल्कि यह उस सिस्टम की नाकामी का प्रतीक है जो वन्यजीवों की रक्षा का दावा करता है। अब आवश्यकता इस बात की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और यह स्पष्ट किया जाए कि यह केवल लापरवाही का मामला था या फिर किसी बड़े स्वार्थ की परतें इसके पीछे छिपी हैं। वन्यजीव संरक्षण केवल दस्तावेजों तक सीमित नहीं रह सकता — उसे जमीनी स्तर पर ईमानदारी से लागू करना ही “बिजली” जैसी बाघिनों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।