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दार्जिलिंग: चाय, ट्रेन और बादलों की गोद में बसी एक फिल्मी हकीकत

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पूर्वोत्तर भारत की गोद में बसा दार्जिलिंग ऐसा नहीं है कि बस एक बार जाकर लौट आया जाए यह एक बार जाकर बार-बार याद आने वाली जगह है। पर्वतीय हिल स्टेशनों की रानी, दार्जिलिंग उन यात्रियों के लिए है जो रोमांच में भी सुकून ढूँढते हैं, और सुकून में भी कहानी। यह जगह सिर्फ अपनी ऊँचाई या चाय के बागानों के लिए नहीं, बल्कि अपने फिल्मी, सांस्कृतिक और दृश्यात्मक जादू के लिए जानी जाती है। यहाँ हर मोड़ पर लगता है कि कोई दृश्य कैमरे में कैद कर लेना चाहिए और शायद इसीलिए यहाँ कई मशहूर फिल्मों की शूटिंग भी हुई है।

दार्जिलिंग की सुबह किसी कविता के पहले मिसरे जैसी होती है हल्का धुंधलका, धीरे-धीरे ऊपर चढ़ता सूरज, और टाइगर हिल से दिखती कंचनजंघा की बर्फीली चोटियाँ। जब बादलों की परतें पहाड़ियों के चारों ओर लिपटी होती हैं, तब यह स्थान किसी स्वप्नलोक जैसा प्रतीत होता है। दार्जिलिंग में आकर सबसे पहले जो अनुभव दिल को छूता है, वह है दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे यानी वो खिलौना ट्रेन जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है। इसकी सीटी, इसकी धीमी चाल और इसकी खिड़कियों से दिखता जीवन सब कुछ इतना आत्मीय है कि जैसे समय ठहर गया हो।

और बात अगर फिल्मों की हो, तो भला कौन भूल सकता है राज कपूर की फिल्म आराधना‘ (1969) का वो मशहूर गीत: “मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू…” 

जिसमें शम्मी कपूर जीप चलाते हैं और शर्मिला टैगोर खिलौना ट्रेन की खिड़की से झाँकती हैं। वो दृश्य दार्जिलिंग की वादियों में ही फिल्माया गया था और तब से यह शहर हिंदी सिनेमा के नक्शे पर एक खास मुकाम बना चुका है। इसके अलावा बरफी‘, ‘मैं हूं ना‘, और परिणीताजैसी फिल्मों ने भी इस शहर की खूबसूरती को बड़े परदे पर जीवंत किया है।

दार्जिलिंग की संस्कृति भी उतनी ही रंगीन और बहुआयामी है। यहाँ नेपाली, भूटानी, तिब्बती और बंगाली परंपराओं का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। स्थानीय बाज़ारों में घूमते हुए मोंगोलियन कलाकृति, तिब्बती प्रार्थना झंडे, और गोरखा संगीत का सम्मिलन होता है। यहाँ की चाय विश्वप्रसिद्ध है और अगर आप एक चाय-प्रेमी हैं, तो दार्जिलिंग की चाय-बागानों में घूमना आपके लिए किसी तीर्थ से कम नहीं। हैप्पी वैली टी एस्टेट में जाकर जब आप खुद पत्तियाँ तोड़ते हैं और वही चाय गरम प्याले में चखते हैं तो ज़िंदगी अचानक बेहद साधारण और बेहद सुंदर लगने लगती है।

दार्जिलिंग में घूमने के लिए आप टाइगर हिल, बाटासिया लूप, घूम मठ, हिमालयन जूलॉजिकल पार्क, और पीस पगोडा जैसे स्थलों की यात्रा कर सकते हैं। और हाँ, नेवदाघाटी और संडे लोकल मार्केट से स्थानीय हस्तशिल्प खरीदना न भूलें। बच्चों और परिवार वालों के लिए भी यह जगह एक परिपूर्ण अवकाश स्थल है और नवविवाहित जोड़ों के लिए तो यह बर्फीली धुंध में लिपटा एक रोमांटिक संसार है।

दार्जिलिंग की यात्रा आपको यह एहसास कराती है कि घूमना केवल स्थलों को देखना नहीं होता, बल्कि खुद को महसूस करना होता है। यहाँ के दृश्य केवल आँखों से नहीं, दिल से याद रहते हैं। चाहे आप ट्रेन में सफर कर रहे हों, पहाड़ियों की गोद में बैठे सूर्यास्त देख रहे हों, या किसी लोकल ढाबे में मोमोज़ खा रहे हों दार्जिलिंग हर अनुभव को कविता बना देता है।

तो अगली बार जब आप सोचें “कहाँ जाएँ?”, तो उत्तरपूर्व के नक्शे पर उँगली रखें और दार्जिलिंग की ओर चल पड़ें। वह सिर्फ एक जगह नहीं, एक फिल्म है जिसमें आप किरदार भी हैं और दर्शक भी।

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