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IMF की ऐसी तैसी! — जब 85 करोड़ लोग 5 किलो मुफ्त राशन पर जिंदा हों, तो विकास का ढोंग किसके लिए?

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नई दिल्ली 16 अक्टूबर 2025

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने फिर वही पुराना राग छेड़ दिया —

“भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ बढ़ रही है… GDP 6.6% तक पहुंच जाएगी… भारत विश्वगुरु बन रहा है।”

वाह, क्या बात है! लेकिन ज़रा आंखें बंद कर IMF के आंकड़ों से बाहर आइए और भारत की सच्ची ज़मीन पर कदम रखिए — जहां आधा देश भूख, महंगाई, बेरोजगारी और असमानता में डूबा हुआ है। फिर पूछिए खुद से — क्या ये वही “विकसित भारत” है जिसका डंका बजाया जा रहा है?

85 करोड़ लोग — 5 किलो राशन पर जिंदा

IMF के महान विश्लेषकों को शायद पता नहीं कि भारत की 85 करोड़ जनता हर महीने सरकार से मुफ्त अनाज लेकर जिंदा है। यह कोई आपदा राहत नहीं, बल्कि स्थायी गरीबी का सरकारी प्रमाणपत्र है। एक ऐसा देश जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है, अगर उसकी आधी आबादी सरकारी राशन पर पेट भर रही हो,तो यह “विकास” नहीं, भूख की स्थायी व्यवस्था है।

जब पेट खाली हो, रसोई में आटा न बचे, और घर की औरतें गैस सिलेंडर की कीमत देखकर आह भरें — तब IMF के “6.6% GDP ग्रोथ” जैसे आंकड़े सिर्फ अमीरों की नींद के तकिए बनते हैं।

GDP के नंबर, भूख के सन्नाटे

IMF और सरकार दोनों मिलकर GDP का गणित ऐसे दिखाते हैं जैसे भारत में खुशहाली की बाढ़ आ गई हो। लेकिन हकीकत यह है कि देश की 90% आबादी के जीवन में कुछ नहीं बदला। किसान अब भी कर्ज़ में डूबा है, मजदूर अब भी पलायन कर रहा है, और युवा नौकरी की लाइन में खड़ा होकर सिस्टम को कोस रहा है।

IMF की रिपोर्ट में कहा गया — “भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत उपभोग से प्रेरित है।” हाँ, उपभोग ज़रूर है, अंबानी- अडानी उपभोग कर रहे हैं, गरीब तो बस भुगत रहा है।

सरकारी स्कूल बंद, अस्पताल खाली

IMF के रिपोर्टर शायद कभी सरकारी स्कूल या डिस्पेंसरी में नहीं गए होंगे। जहां क्लासरूम में दीवारें झड़ रही हैं, टीचर नहीं हैं, बेंच टूटी हैं, बच्चों के पास कॉपी नहीं। जहां अस्पतालों में दवा नहीं, डॉक्टर नहीं, और गरीब इलाज की बजाय भगवान को याद करता है।

IMF की रिपोर्ट में “Human Capital Development” के नाम पर जो पैराग्राफ छपा है, वह सिर्फ झूठे कागज़ी ग्राफ़ों का ढेर है। असल में शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों भारत में नीतिगत उपेक्षा के शिकार हैं।

बेरोजगारी: डिग्रियाँ दीवार पर, सपने कब्र में

देश में करोड़ों डिग्रीधारी युवा बेरोजगार हैं। कुछ Zomato डिलीवरी कर रहे हैं, कुछ सिक्योरिटी गार्ड हैं, तो कुछ “रोजगार मेले” के फर्जी वादों में फंस चुके हैं।

IMF ने शायद ये नहीं देखा कि भारत में आज हर चौथा ग्रेजुएट बेरोजगार है। और जो नौकरी कर रहे हैं, वो इतनी कम तनख्वाह में कि घर चलाना, सपना पूरा करना और ईएमआई देना — तीनों साथ असंभव है।

अमीर और गरीब — दो अलग-अलग भारत

IMF की “Growth” अमीरों की होती है, गरीबों की नहीं।आज भारत में 1% अमीरों के पास देश की 70% संपत्ति है।बाकी 99% लोग रोज़ अपनी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।कहीं कोई “ट्रिकल डाउन इफेक्ट” नहीं हो रहा, “सक्शन इफेक्ट” चल रहा है — ऊपर वाले और ऊपर जा रहे हैं, नीचे वाले पूरी तरह चूसे जा रहे हैं।

IMF का डेटा इस असमानता को छिपा देता है, क्योंकि उनके लिए ग्राफ़ मायने रखता है, हमारे लिए थाली में खाना मायने रखता है।

IMF का भारत दर्शन — दिखावे का विकास

IMF के लिए भारत “रिफॉर्म्स” का चमकता मॉडल है, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, ग्रीन ग्रोथ, न्यू इंडिया। लेकिन IMF की इन चमकीली शब्दावलियों के नीचे छिपी हकीकत यह है कि भारत का आम आदमी आज कर्ज, बेरोजगारी और असुरक्षा के दलदल में धंसा हुआ है।

जब IMF कहता है “India is growing fast,” तो असल में वह यह नहीं देखता कि भारत का गरीब गिर रहा है और अमीर उड़ रहा है।

95% लोग ₹500 उधार नहीं दे सकते

आज अगर आप देश के किसी भी हिस्से में जाकर 10 लोगों से ₹5000 उधार मांगें, तो 95 कहेंगे — “भाई, हमारे पास खुद नहीं है।” यह वही भारत है, जिसे IMF “विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था” कह रहा है। यह आंकड़ों की नहीं, असमानता की अर्थशास्त्र है।

असली विकास किसका?

IMF की रिपोर्टें वाशिंगटन में छपती हैं, और दिल्ली की प्रेस कॉन्फ्रेंसों में उनका जयघोष होता है। लेकिन गांवों में, कस्बों में, और मजदूरों के चेहरों पर विकास की कोई झलक नहीं मिलती। अगर 85 करोड़ लोग हर महीने सरकार से 5 किलो अनाज लेकर जिंदा हैं, तो GDP ग्रोथ दर 6% हो या 60%, वह सिर्फ आंकड़ों का तमाशा है, सच्चाई नहीं।

IMF को भारत की नहीं, अपनी रिपोर्ट की चिंता है

IMF भारत को आंकड़ों से मापता है, हम भारत को इंसानों से मापते हैं। और इंसानों की हालत देखकर यही कहना पड़ता है —

IMF की ऐसी तैसी! जब देश में भूख, बेरोजगारी और असमानता चरम पर हो, तो विकास दर का जश्न मनाना एक क्रूर मज़ाक है। GDP नहीं, भूख के ग्राफ़ देखिए; IMF की रिपोर्ट नहीं, राशन की लाइन देखिए। क्योंकि आज का भारत IMF के ग्राफ़ में नहीं, राशन की थैली और खाली जेब में दिखाई देता है।

IMF कहता है — “India is Rising.”

देश का अन्नदाता आज सबसे बड़ी विडंबना का शिकार है — वही किसान जो पूरे देश का पेट भरता है, खुद खाद और बीज के लिए बारिश में घंटों लाइनों में खड़ा रहता है। खेत में कीचड़, सिर पर आसमान, और जेब में खालीपन — यही उसकी हकीकत है। जब उसकी बारी आती है, तो न अधिकारी सुनते हैं, न प्रशासन को परवाह होती है। क्या गरीब, क्या बूढ़ा, क्या जवान — सबको एक समान सरकारी गालियां और पुलिस के डंडे मिलते हैं। जिस किसान के पसीने से अन्न उपजता है, वह खुद अपने घर का चूल्हा नहीं जला पाता। हालत यह है कि कुछ हजार रुपयों के कर्ज में दबकर वह आत्महत्या कर लेता है, जबकि उन्हीं दिनों में अरबों-खरबों के कर्जदार उद्योगपतियों के 18 लाख करोड़ रुपये माफ कर दिए जाते हैं। यही है इस देश की सच्चाई — जहां अन्नदाता मरता है, और अमीर राहत पाता है। और इन सब के बीच IMF एक आंकड़ा निकाल के खुश होता है जबकि सबसे ज्यादा कर्ज लिए देश भारत की अंतरात्मा कहती है… “हम तो बस बचने की कोशिश कर रहे हैं।”

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