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CPI(M) की ममता को चुनौती: सिर्फ बयानबाजी नहीं, बंगाली मजदूरों की रक्षा करें

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कोलकाता, पश्चिम बंगाल 

18 जुलाई 2025:

देश के विभिन्न हिस्सों में बंगाली भाषी प्रवासी श्रमिकों पर हो रहे कथित हमलों और भेदभाव को लेकर पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। इस बार वामपंथी दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) – CPI(M) ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) को सीधी चुनौती दे दी है। CPI(M) ने ममता से कहा है कि वह केवल भाषणों और सोशल मीडिया बयानों तक सीमित न रहें, बल्कि अपने सांसदों को गुजरात, महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक और पंजाब जैसे राज्यों में भेजें, जहां बंगाली श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार और हिंसा की खबरें सामने आई हैं। CPI(M) नेताओं ने कहा है कि ममता सरकार को इस मुद्दे को केवल बंगाल में वोट बटोरने के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, बल्कि उन श्रमिकों की आवाज़ बनना चाहिए जो घर से दूर रहकर दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

CPI(M) की राज्य सचिवालय ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब पार्टी लगातार तृणमूल कांग्रेस पर “बंगाली गौरव” के नाम पर छल और भावनात्मक राजनीति का आरोप लगा रही है। पार्टी ने कहा कि ममता बनर्जी और उनकी सरकार हर मंच पर “बंगाली अस्मिता” और “बाहरी बनाम बंगाली” की बात तो करती है, लेकिन जब बंगाल के ही गरीब मजदूर अन्य राज्यों में अपमान, शोषण और हमलों का शिकार होते हैं, तो सरकार मूकदर्शक बनी रहती है। CPI(M) का आरोप है कि न तो किसी पीड़ित परिवार से संपर्क किया गया और न ही किसी राज्य सरकार से औपचारिक शिकायत की गई। पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि यदि ममता सरकार अपने सांसदों और विधायकों को उत्तर भारतीय राज्यों में भेजती है और वहाँ की स्थिति का निरीक्षण कर एक रिपोर्ट जारी करती है, तो इससे यह साबित होगा कि वह बंगाली जनता की सच्ची हितैषी है, केवल वोट की भूखी नहीं।

दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस ने CPI(M) के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए वाम दलों को “राजनीतिक दिवालियापन का शिकार” बताया। पार्टी प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि तृणमूल के नेता और कार्यकर्ता हमेशा से बंगाली लोगों के साथ खड़े रहे हैं, चाहे वह बंगाल में हों या भारत के किसी कोने में। उन्होंने यह भी दावा किया कि ममता बनर्जी की पहल पर महाराष्ट्र और गुजरात में फंसे मजदूरों को सहायता पहुंचाई गई थी और स्थानीय प्रशासन से समन्वय कर सुरक्षा सुनिश्चित कराई गई थी। तृणमूल कांग्रेस ने CPI(M) पर पलटवार करते हुए कहा कि जिनके पास अब न जनाधार बचा है, न नीतिगत सोच, वे सिर्फ ममता के नाम पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी ने यह भी कहा कि CPI(M) अपने बचे-खुचे समर्थकों को फिर से संगठित करने के लिए ‘फर्जी चिंता’ का सहारा ले रही है।

इस पूरे घटनाक्रम का एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक पहलू भी है। बंगाल के लाखों श्रमिक देश के विभिन्न औद्योगिक राज्यों में काम करते हैं। वे निर्माण कार्य, फैक्ट्रियों, टेक्सटाइल, कृषि मजदूरी और होटल इंडस्ट्री जैसे क्षेत्रों में अहम भूमिका निभाते हैं। लॉकडाउन के समय प्रवासी मजदूरों की पीड़ा देशभर ने देखी थी, और तब से उनकी सुरक्षा, अधिकार और सामाजिक सम्मान को लेकर चिंता बनी हुई है। CPI(M) इस मुद्दे को एक ‘जन सरोकार’ के रूप में उठा रही है, जबकि तृणमूल इसे ‘सियासी नौटंकी’ बता रही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यदि किसी प्रवासी समुदाय के साथ लगातार घटनाएं होती हैं और उनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं होता, तो यह एक गंभीर प्रशासनिक शून्यता को उजागर करता है।

अब देखना यह होगा कि क्या ममता बनर्जी CPI(M) की चुनौती को स्वीकार कर कोई सक्रिय कदम उठाती हैं या इसे केवल सियासी प्रपंच मानकर नजरअंदाज कर देती हैं। एक बात स्पष्ट है कि 2026 के चुनावों की ओर बढ़ते हुए बंगाल में “बंगाली अस्मिता” बनाम “प्रवासी बंगाली अधिकार” का यह संघर्ष धीरे-धीरे राजनीतिक विमर्श का बड़ा हिस्सा बनने जा रहा है।

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