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“सेवा-पानी” के नाम पर भ्रष्टाचार की सेवा! — डीआईजी हरचरण भुल्लर का जलवा फेल, सीबीआई ने रंगे हाथों पकड़ा अफसर

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अमृतसर ब्यूरो 17 अक्टूबर 2025

‘सेवा-पानी’ का घिनौना खेल — कानून के रखवाले ने खुद तोड़ा कानून और गरिमा

यह घटना केवल पंजाब पुलिस के एक उप महानिरीक्षक (DIG) हरचरण सिंह भुल्लर की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस संस्थागत भ्रष्टाचार की भयानक तस्वीर पेश करती है, जिसने कानून के रखवाले को ही कानून का भक्षक बना दिया है। जिस अधिकारी का काम समाज में निष्पक्षता और व्यवस्था स्थापित करना था, उसने खुद रिश्वतखोरी के लिए एक नया और शर्मनाक कोडवर्ड इजाद कर लिया — “सेवा-पानी”। भुल्लर, जो रोपड़ रेंज में तैनात थे, पर आरोप है कि वे विभागीय तबादलों, संवेदनशील पोस्टिंग, मुकदमों को रफा-दफा करने और व्यापारियों के हितों को साधने के लिए मोटी रकम बतौर रिश्वत लिया करते थे। इस घिनौनी सौदेबाजी में ‘रिश्वत’ जैसे सीधे और आपराधिक शब्द का प्रयोग करने की बजाय, उन्होंने बड़ी चालाकी से “थोड़ा सेवा-पानी करा दो” या “सेवा-पानी लगा दो” जैसे वाक्यांशों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। 

यह उनके व्यक्तिगत भ्रष्टाचार मॉडल का हिस्सा था, जो यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार अब केवल क्रियाकलाप तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह हमारी भाषा और सोच तक में घुस चुका है। लेकिन विडंबना देखिए, किस्मत ने ऐसा पलटा मारा कि यही “सेवा-पानी” अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के शिकंजे का ‘पानी’ बन गया, जिसमें वह चाहकर भी तैरकर बाहर नहीं निकल पाए। यह गिरफ्तारी पूरे सिस्टम के मुंह पर एक कालीख है, जो खाकी की गरिमा को तार-तार कर देती है।

व्हाट्सऐप कॉल ने खोला घोटाले का दरवाज़ा और सीबीआई ने बिछाया जाल

डीआईजी भुल्लर का यह भ्रष्ट खेल लंबे समय तक पर्दे के पीछे चला, लेकिन उनकी अति-आत्मविश्वास और डिजिटल साधनों के उपयोग ने ही उन्हें कानून के शिकंजे में कस दिया। केंद्रीय जांच ब्यूरो को सूचना मिली कि डीआईजी भुल्लर अपने अधीनस्थों और खास व्यापारियों से रिश्वत की रकम तय करने के लिए डिजिटल माध्यमों का प्रयोग करते हैं, खासकर व्हाट्सऐप कॉल और वॉयस मैसेज। सीबीआई ने फौरन उनके संवादों की निगरानी शुरू कर दी, और जल्द ही उनके खिलाफ निर्णायक सबूत हाथ लग गया।

 एक व्हाट्सऐप कॉल रिकॉर्ड में भुल्लर को एक कारोबारी से रिश्वत की मांग करते हुए सुना गया, जहाँ उन्होंने कोडवर्ड का इस्तेमाल किया: “आपका काम हो जाएगा, बस थोड़ा सेवा-पानी लगा दो।” यह “सेवा” नहीं, स्पष्ट रूप से “सेवा शुल्क” था – एक ऐसा शुल्क जो कानून के राज को तार-तार कर रहा था। सीबीआई ने इसी वॉयस रिकॉर्डिंग को आधार बनाकर एक अचूक ट्रैप ऑपरेशन तैयार किया। जांच एजेंसी ने वॉयस फॉरेंसिक एनालिसिस के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि कॉल पर बोलने वाला व्यक्ति स्वयं डीआईजी भुल्लर ही था। इस डिजिटल ट्रेल ने उनके सालों के ‘सेवा-पानी’ के खेल को पल भर में ध्वस्त कर दिया और सीबीआई को उन्हें रंगे हाथों पकड़ने का मौका दे दिया।

लाखों की डील, ‘काली डायरी’ की भाषा और सिस्टम की नालायकी का पर्दाफाश

सूत्रों के मुताबिक, भुल्लर का “सेवा-पानी” कारोबार लाखों की डीलों से चलता था। एक स्क्रैप कारोबारी की शिकायत पर सीबीआई ने उन्हें 5 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया, यह रकम कथित तौर पर 8 लाख रुपये की मांग का हिस्सा थी, जो कारोबारी पर दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने के लिए मांगी गई थी। गिरफ्तारी के बाद, भुल्लर के मोहाली स्थित घर और अन्य ठिकानों पर सीबीआई ने व्यापक छापेमारी की। इन छापों में चौंकाने वाली संपत्तियां बरामद हुईं: उनके ठिकाने से करोड़ों रुपये की नकदी (लगभग ₹5 करोड़), 1.5 किलोग्राम सोना, महंगी घड़ियाँ और अन्य लक्जरी सामान जब्त किए गए।

 सबसे महत्वपूर्ण, सीबीआई को उनकी ‘काली डायरी’ भी हाथ लगी है। यह डायरी उनके भ्रष्टाचार के सिंडिकेट का बही-खाता है, जिसमें रिश्वत के रेट दर्ज हैं—जैसे एसएचओ की पोस्टिंग के लिए लाखों रुपये और ट्रांसफर अप्रूवल के लिए लाखों की राशि। इन प्रविष्टियों के आगे “सेवा-पानी” की एंट्री भी दर्ज थी। यह डायरी केवल एक अधिकारी के नहीं, बल्कि उस पूरी अफसरशाही के असली चेहरे को सामने लाती है, जिसने अपने पदों को “कमाई का माध्यम” और “सेवा” को “रिश्वत” का पर्यायवाची बना दिया है।

 सीबीआई का शिकंजा और जनता का सवाल — अब कब खत्म होगा ‘सेवा-पानी राज’?

डीआईजी हरचरण सिंह भुल्लर की रंगे हाथों गिरफ्तारी, उनके ठिकाने से करोड़ों की अवैध संपत्ति की बरामदगी और “काली डायरी” का मिलना यह स्पष्ट करता है कि भ्रष्टाचार किस तरह समाज के शीर्ष संस्थानों में गहरी जड़ें जमा चुका है। एक अधिकारी, जिसे ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल होना चाहिए था, अगर खुद लाखों का सौदा ‘सेवा-पानी’ कहकर निपटा रहा है, तो उस कानून-व्यवस्था पर देश का नागरिक कैसे भरोसा करे? यह केवल एक व्यक्तिगत शर्म नहीं है, बल्कि यह संस्थागत पतन की पराकाष्ठा है। यह घटना भारत की उस दोहरी व्यवस्था को उजागर करती है, जहाँ आम आदमी मामूली चालान पर डरता है, वहीं “खाकी वाले” लाखों के सौदे करके अपनी तिजोरियां भरते हैं।

 आज देश के नागरिकों का सवाल सीधा है: अगर डीआईजी जैसे उच्च पद पर बैठा व्यक्ति भी बिक सकता है, तो इंसाफ किससे और कैसे खरीदा जाए? अब ज़रूरत है कि भुल्लर जैसे अफसरों को केवल निलंबित नहीं किया जाए, बल्कि मिसाल बनाकर सबसे कड़ी सज़ा दी जाए। सीबीआई की यह कार्रवाई एक चेतावनी है कि डिजिटल युग में भ्रष्टाचार को किसी भी कोडवर्ड से छिपाना अब आसान नहीं है। “सेवा-पानी” का अंत अब “सज़ा-पानी” से होना चाहिए, और यही इस देश की कानून-व्यवस्था की वास्तविक ज़रूरत है।

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