गुजरात के केवड़िया स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास बने जंगल सफारी पार्क में 18 जनवरी 2025 को एक गंभीर वन्यजीव सुरक्षा उल्लंघन का मामला सामने आया। रिपोर्ट्स के अनुसार, एक डॉल्फ़िन पार्क प्रोजेक्ट के तहत की जा रही “जंगली कॉलिंग” प्रक्रिया के दौरान छह हिरणों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। इस घटना ने न केवल राज्य की वन्यजीव सुरक्षा व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संरक्षण एजेंसियों की चिंता भी बढ़ा दी है।
सूत्रों के मुताबिक, यह घटना जंगल सफारी के उस क्षेत्र में हुई जहां वाटर बॉडी निर्माण और डॉल्फ़िन पार्क के लिए बायो-अकौस्टिक परीक्षण चल रहे थे। वन विभाग की अनुमति से किए गए इस परीक्षण के दौरान तेज़ ध्वनि और अन्य कृत्रिम प्रभावों का उपयोग किया गया, जिसका दुष्प्रभाव आसपास के स्थानीय वन्यजीवों पर पड़ा। प्रत्यक्षदर्शियों और सफारी कर्मचारियों का दावा है कि परीक्षण के तुरंत बाद छह हिरण मृत पाए गए, जिनके शरीर पर किसी स्पष्ट चोट का निशान नहीं था, लेकिन आंतरिक रक्तस्राव के संकेत मिले।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) ने इस घटना को “प्राकृतिक पारिस्थितिकी के साथ गंभीर छेड़छाड़” करार दिया है और गुजरात सरकार से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। WWF के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि ने कहा, “यह मामला सिर्फ छह हिरणों की मृत्यु का नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि किस प्रकार व्यावसायिक और पर्यटन परियोजनाएं वन्यजीवों की कीमत पर आगे बढ़ रही हैं।”
राज्य वन विभाग ने इस मामले में प्रारंभिक जांच के आदेश दे दिए हैं और सफारी के निदेशक सहित कुछ अधिकारियों से पूछताछ की जा रही है। हालांकि, अभी तक किसी को औपचारिक रूप से ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया है।
यह घटना ऐसे समय पर आई है जब सरकार इको-टूरिज्म और पर्यावरण संतुलन के नाम पर कई योजनाओं को आगे बढ़ा रही है, और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के क्षेत्र को एक “ग्रीन टूरिज्म हब” के रूप में विकसित किया जा रहा है। लेकिन हिरणों की इस दुखद मौत ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पर्यटन विकास प्राकृतिक जीवन के संरक्षण की कीमत पर हो रहा है?
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में “इको टूरिज्म” शब्द का अक्सर गलत अर्थ निकाला जाता है। संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाए बिना परियोजनाओं को लागू करना न केवल संवेदनशील प्रजातियों के लिए खतरा है, बल्कि यह भारत की अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण छवि को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
इस प्रकरण ने सरकार, वन्यजीव विभाग और पर्यटन प्राधिकरणों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उम्मीद की जा रही है कि जांच के निष्कर्ष जल्द ही सार्वजनिक किए जाएंगे और दोषियों को सज़ा मिलेगी।
इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि “प्रकृति के नाम पर विकास तभी सार्थक है, जब वह प्रकृति की रक्षा के साथ हो।”