इंशा रहमान, लॉ स्टूडेंट | 4 अगस्त 2025
भारतीय सिनेमा आज उस मुकाम पर खड़ा है जहां दर्शक पहले से कहीं अधिक जागरूक, संवेदनशील और चयनशील हो चुका है। वह अब केवल ग्लैमर, चेहरों और बड़े बजट की चकाचौंध से प्रभावित नहीं होता, बल्कि वह कहानी में अपने समय, अपने समाज और अपने भीतर की परछाइयों की तलाश करता है। अब ‘हीरो कौन है’ से ज़्यादा बड़ा सवाल यह होता है कि कहानी क्या कहती है, कितनी ईमानदारी से कहती है और उसे कितनी खूबसूरती से परदे पर उतारा गया है। फिल्म का चेहरा आकर्षण तो बन सकता है, लेकिन उसकी आत्मा वह स्क्रिप्ट होती है जो दर्शक को बांधती है, रुलाती है, हंसाती है और बहुत बार भीतर तक झकझोर देती है। और जब उस कहानी में अभिनय की सच्चाई और संगीत की मधुरता मिल जाती है, तो वह फिल्म केवल मनोरंजन नहीं, एक अनुभव बन जाती है।
इसी सिलसिले की कड़ी के रूप में फिल्म सैयारा आज एक मिसाल के रूप में उभरकर सामने आई है। इस फिल्म में न कोई बड़ा सितारा है, न कोई भव्य मार्केटिंग रणनीति, लेकिन इसका जादू हर उम्र, हर वर्ग के दर्शकों पर छा गया है। इसका कारण एकदम स्पष्ट है—कहानी। ऐसी कहानी जो सादगी से शुरू होती है, लेकिन धीरे-धीरे दिल में उतरती चली जाती है। ऐसे संवाद जो लगे जैसे किसी ने आपके मन की बात कह दी हो, और ऐसा संगीत जो न सिर्फ कानों में बजता है, बल्कि दिल में गूंजता रहता है। सैयारा ने यह साबित किया है कि फिल्मी दुनिया में आज भी अगर किसी चीज़ की सबसे ज़्यादा कद्र है, तो वह है ईमानदार कहानी और उसका भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। भारतीय सिनेमा का इतिहास गवाह है कि जब भी कहानियों ने दम दिखाया है, तब नए चेहरों ने भी परदे पर धमाका किया है। कयामत से कयामत तक में आमिर खान और जूही चावला की जोड़ी ने दर्शकों को इसलिए छुआ क्योंकि उनकी कहानी मासूमियत और दर्द की एक सुंदर मिश्रण थी। मैंने प्यार किया में सलमान खान उस समय नए थे, लेकिन एक साधारण प्रेम कहानी ने उन्हें देश का हर दिल अज़ीज़ बना दिया। ऋतिक रोशन की कहो न प्यार है हो या आलिया, वरुण और सिद्धार्थ की स्टूडेंट ऑफ द ईयर—इन फिल्मों में दर्शकों को केवल नए चेहरे नहीं दिखे, उन्हें एक नई ऊर्जा, नई उम्मीद और एक ऐसी कहानी मिली जो उनके दिलों के करीब थी। इसी कड़ी में कुमार गौरव की लव स्टोरी को भी भुलाया नहीं जा सकता, जिसकी नर्म भावनाओं और बेहतरीन गीतों ने एक पूरी पीढ़ी को प्रेम की नई परिभाषा दी।
दूसरी ओर, हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सितारों की सबसे बड़ी सफलताएं भी तभी हुईं जब उन्होंने ऐसी फिल्मों को चुना जिनकी कहानियां अपने समय की धड़कन थीं। दिलीप कुमार की देवदास और मुगल-ए-आज़म न केवल अभिनय का पाठ बन गईं, बल्कि उनके किरदारों ने भारतीय मानस को हमेशा के लिए बदल दिया। राज कपूर की श्री 420, मेरा नाम जोकर और आवारा में समाज, गरीबी और संघर्ष के सवालों को जिस सरलता से उठाया गया, वह आज भी प्रेरणा देता है। देव आनंद की गाइड हो या मनोज कुमार की उपकार, शशि कपूर और ज़ीनत अमान की सत्यम शिवम सुंदरम हो या अमिताभ बच्चन की जंजीर, दीवार, सिलसिला, शोले—इन सभी फिल्मों को कालजयी बनाने वाली उनकी कहानियां थीं, न कि केवल स्टार की चमक। संजय दत्त की वास्तव में मां-बेटे के रिश्ते की जो भावनात्मक परतें दिखाई गईं, वे आज भी दर्शकों को गहराई से छूती हैं। और जब इन कहानियों के साथ संगीत का जादू जुड़ता है—जैसे कयामत से कयामत तक का “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा…” या गाइड के “आज फिर जीने की तमन्ना है”—तो फिल्में केवल हिट नहीं होतीं, वे अमर हो जाती हैं।
ऐसे में यह भी ज़रूरी है कि हम उन अदाकाराओं का ज़िक्र करें जिन्होंने अपनी सशक्त अभिनय कला और दमदार किरदारों के ज़रिये हिंदी सिनेमा को नई दिशा दी। नर्गिस की मदर इंडिया एक मां के बलिदान की गाथा थी तो मीना कुमारी की साहिब बीबी और गुलाम एक स्त्री की घुटन और आत्मसम्मान की गाथा। मधुबाला की अनारकली हो या शर्मिला टैगोर की अराधना, या फिर डिंपल कपाड़िया की बॉबी—इन फिल्मों ने सिर्फ नायिकाओं की सुंदरता नहीं, बल्कि उनकी भावनात्मक जटिलता और सामाजिक संदर्भों को भी परदे पर उतारा। आधुनिक सिनेमा में आलिया भट्ट ने राज़ी जैसी फिल्म में देशभक्ति और संवेदनशीलता की मिसाल पेश की, गंगूबाई काठियावाड़ी में हाशिये की आवाज़ को बुलंद किया, और हाईवे तथा डियर जिंदगी में मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन की जटिलताओं को बेहद सहजता से निभाया। रानी मुखर्जी की ब्लैक हो या ऐश्वर्या राय की हम दिल दे चुके सनम—इन फिल्मों में कहानी और अभिनय का मेल दर्शकों को वर्षों तक याद रहा।
लेकिन कहानी और अभिनय के इस सुंदर संयोग को अगर कोई तीसरा तत्व संपूर्णता देता है, तो वह है संगीत। हिंदी सिनेमा में कभी भी संगीत केवल सजावट नहीं रहा—यह फिल्म की आत्मा का हिस्सा रहा है। मैंने प्यार किया के “दिल दीवाना”, कुछ कुछ होता है के “तुझे देखा तो ये जाना सनम”, मसान के “तू किसी रेल सी गुजरती है”—ये केवल गाने नहीं, भावनाओं के सजीव रूप हैं। और यही वजह है कि सैयारा में जब एक कोमल संवाद के साथ मधुर धुन बजती है, तो दर्शक उस क्षण को जीते हैं, सिर्फ देखते नहीं। कंटेंट जितना मजबूत हो, अगर संगीत उससे मेल खाता हो, तो वह फिल्म केवल कहानी नहीं कहती, वह जज़्बात बन जाती है।
बॉलीवुड में कहानियों और अदाकारी के साथ जो तीसरा सबसे अहम स्तंभ रहा है, वह है संगीत, जो फिल्म को न सिर्फ ज़िंदा बनाता है, बल्कि उसे अमर कर देता है। कई फिल्में अपने मधुर गीतों के चलते लोगों के दिलों में बस गईं। मुगल-ए-आज़म का “प्यार किया तो डरना क्या”, गाइड का “आज फिर जीने की तमन्ना है”, बॉबी का “मैं शायर तो नहीं”, मैंने प्यार किया का “दिल दीवाना”, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे का “हो गया है तुझको तो प्यार सजना”, लगान का “घनन घनन”, थ्री इडियट्स का “अल इज़ वेल”, तारे ज़मीन पर का “मां”, हम दिल दे चुके सनम का “झूले झूले लाल” और ब्लैक का बैकग्राउंड स्कोर—इन सभी ने न सिर्फ फिल्मों को हिट किया, बल्कि उन्हें हर पीढ़ी की भावनाओं में शामिल कर दिया।
इसी क्रम में साजन के “देखा है पहली बार”, “तू शायर है”, “बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम”, आशिकी के “धीरे धीरे से”, “सांसों की ज़रूरत है जैसे”, और स्टूडेंट ऑफ द ईयर के “राधा”, “इश्क वाला लव”, “मैं तेरा हीरो” जैसे गाने आज भी युवाओं की धड़कनों में बसते हैं। इन गानों की खासियत यही रही कि इन्होंने कहानी की आत्मा को सुरों में ढाल दिया और फिल्म को यादों में तब्दील कर दिया।
बॉलीवुड के सुनहरे दौर में राजेश खन्ना वो सितारा थे जिनकी फिल्मों के गीतों ने रोमांस, दर्द और भावनाओं को अमर बना दिया। उनके सुपरहिट फिल्मों के गाने आज भी दिलों में उसी गर्माहट से बसे हुए हैं। खासकर आनंद का “जिंदगी कैसी है पहेली”, आराधना का “मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू”, “रूप तेरा मस्ताना”, अमर प्रेम का “चिंगारी कोई भड़के” और “कुछ तो लोग कहेंगे”, या फिर कटी पतंग का “ये शाम की तन्हाईयां” और “प्यार दीवाना होता है”—इन सभी गानों ने ना सिर्फ फिल्म को सफल बनाया, बल्कि राजेश खन्ना को भारत का पहला सुपरस्टार भी बना दिया।
और अगर इन अमर गीतों की बात हो और मोहम्मद रफी का नाम न आए, तो बात अधूरी रह जाती है। उनकी आवाज़ में गाए गए गाने आज भी हर दिल की धड़कन हैं—प्यासा का “ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है”, चौदहवीं का चांद का टाइटल सॉन्ग, आराधना का “बाहों में चले आओ”, हम किसी से कम नहीं का “क्या हुआ तेरा वादा”, दिल एक मंदिर का “जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात”, और दिलवाले का “तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं”—ये गीत आज भी सुनते ही एक अलग ही सुकून दे जाते हैं। मोहम्मद रफी की आवाज़ में सिर्फ शब्द नहीं होते, भावनाएं होती हैं, संवेदनाएं होती हैं, और यही बात उन्हें अमर बनाती है।
अब समय आ गया है कि हम मान लें—कंटेंट वाकई किंग है। स्क्रिप्ट वह नींव है जिस पर फिल्म की इमारत खड़ी होती है, अभिनेता उसमें जीवन भरते हैं, और संगीत उसे आत्मा प्रदान करता है। चेहरों से फिल्में बिकती हैं, पर कहानियों से याद रखी जाती हैं। और जब ये तीनों मिल जाएं, तब बनती है वह फिल्म—जो देखने के बाद भी दिल से नहीं जाती। सैयारा जैसी फिल्में हमें यही सिखाती हैं कि असली स्टार कोई चेहरा नहीं, सच्ची कहानी होती है—जो जीती भी है, और जीने लायक भी बनाती है।