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सेक्स वर्कर को प्रोडक्ट मानना अमानवीय, ग्राहक नहीं अपराधी: केरल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

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कोच्चि 10 सितंबर 2025

केरल हाईकोर्ट ने वेश्यावृत्ति से जुड़े एक अहम मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि सेक्स वर्कर किसी वस्तु या प्रोडक्ट की तरह नहीं है और उसे खरीदी-बेची जाने वाली चीज़ नहीं समझा जा सकता। कोर्ट ने साफ किया कि वेश्यालय में जाने वाला व्यक्ति महज़ “ग्राहक” नहीं, बल्कि अपराध के लिए प्रेरक है और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। यह फैसला न सिर्फ़ कानून की व्याख्या को नया आयाम देता है बल्कि सेक्स वर्करों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिहाज़ से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

मामला और पृष्ठभूमि

यह मामला 2021 का है जब थिरुवनंतपुरम में पुलिस ने एक वेश्यावृत्ति स्थल पर छापा मारा था। उस दौरान एक व्यक्ति को एक सेक्स वर्कर के साथ पकड़ा गया और उसके खिलाफ Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956 (ITPA) की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया। आरोपी पर वेश्यालय संचालन, वेश्यावृत्ति की आय से जीवन यापन, सार्वजनिक स्थल पर वेश्यावृत्ति और किसी को वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करने के आरोप लगाए गए थे। आरोपी ने इन धाराओं को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और यह दलील दी कि वह केवल “ग्राहक” था, इसलिए उसके खिलाफ ये धाराएँ लागू नहीं होनी चाहिएं।

अदालत का फैसला और कानूनी व्याख्या

जस्टिस वी.जी. अरुण की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और स्पष्ट किया कि ITPA की सभी धाराएँ हर स्थिति में लागू नहीं होतीं। कोर्ट ने आरोपी पर लगे धारा 3 (वेश्यालय संचालन), धारा 4 (वेश्यावृत्ति की आय से जीवन यापन) और धारा 7 (सार्वजनिक स्थल पर वेश्यावृत्ति) को खारिज कर दिया। लेकिन अदालत ने धारा 5(1)(d) को बरकरार रखा, जिसके तहत किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करना अपराध की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने माना कि जब कोई व्यक्ति पैसे देकर वेश्यालय में जाता है तो उसका भुगतान सेक्स वर्कर को सेवा का मूल्य देने के लिए नहीं होता, बल्कि यह उस शोषण और तस्करी को बढ़ावा देने वाली प्रेरणा है। इस आधार पर आरोपी पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई।

“ग्राहक” शब्द पर न्यायालय की टिप्पणी

न्यायालय ने बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि “ग्राहक” शब्द का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए होता है जो किसी उत्पाद या सेवा को खरीदता है। लेकिन सेक्स वर्कर कोई वस्तु नहीं है जिसे खरीदा-बेचा जा सके। उसे प्रोडक्ट बताना अमानवीय और अपमानजनक है। कोर्ट ने साफ कहा कि इस तरह के मामलों में भुगतान को व्यापारिक लेन-देन मानना गलत है क्योंकि बड़ी राशि वेश्यालय के संचालकों के पास जाती है और केवल एक हिस्सा ही सेक्स वर्कर तक पहुँचता है। इस स्थिति में पैसा “भुगतान” नहीं बल्कि “प्रेरणा” है, जिसके जरिए व्यक्ति वेश्यावृत्ति को जारी रखने के लिए प्रेरित होता है। इसलिए कानून की दृष्टि में उसे ग्राहक नहीं बल्कि अपराध का भागीदार और अपराधी माना जाएगा।

इस फैसले का सामाजिक महत्व

इस फैसले का सबसे बड़ा महत्व यह है कि अब केवल वेश्यालय के संचालक और दलाल ही नहीं बल्कि सेवाएं लेने वाले व्यक्ति को भी कानून के दायरे में लाया जा सकेगा। यह एक स्पष्ट संदेश है कि यौन शोषण और मानव तस्करी के लिए समाज में मांग पैदा करने वाले भी उतने ही दोषी हैं जितने इसे चलाने वाले। अदालत ने यह भी इशारा दिया कि जब तक इस तथाकथित “ग्राहक वर्ग” पर कठोर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक वेश्यावृत्ति और उससे जुड़े अपराधों को खत्म करना संभव नहीं होगा।

मानवाधिकार और गरिमा पर असर

हाईकोर्ट का यह फैसला केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि मानवाधिकार और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। यह फैसला सेक्स वर्करों की गरिमा और उनकी इंसानियत को पहचान देता है। उन्हें वस्तु मानने की मानसिकता पर प्रहार करता है और समाज को यह सीख देता है कि वे भी इंसान हैं जिनका सम्मान किया जाना चाहिए। साथ ही यह फैसला उन लाखों महिलाओं और युवतियों के लिए उम्मीद की किरण है जो मजबूरी या धोखे से इस धंधे में धकेली जाती हैं।

 

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