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‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर कांग्रेस का व्हिप, पारदर्शिता की मांग तेज

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नई दिल्ली, 28 जुलाई 2025 – लोकसभा के मानसून सत्र में बहुप्रतीक्षित ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा से पहले राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतांत्रिक पारदर्शिता से जोड़ते हुए अपने सभी लोकसभा सांसदों के लिए तीन लाइन का व्हिप जारी किया है। पार्टी ने सांसदों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे संसद में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहें और केंद्र सरकार से इस विषय पर जवाबदेही सुनिश्चित कराएं। यह कदम इस बात का संकेत है कि कांग्रेस अब इस मुद्दे को महज़ बहस तक सीमित न रखकर इसे सत्ता पक्ष की नीतिगत पारदर्शिता की परीक्षा में बदलना चाहती है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’, जिस पर अब तक आधिकारिक रूप से कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है, देश की सुरक्षा नीति, कूटनीतिक विकल्पों और सैन्य निर्णयों की जटिलताओं से जुड़ा एक संवेदनशील मामला माना जा रहा है। कांग्रेस का यह रुख कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस बहस में भाग लें और देश को ‘सच्चाई का पूर्ण चित्र’ दिखाएं, संसद में जवाबदेही की पुरानी परंपरा की वापसी की मांग के तौर पर देखा जा रहा है। पार्टी के लोकसभा व्हिप मणिकम टैगोर ने लोकसभा अध्यक्ष को स्थगन प्रस्ताव (adjournment motion) सौंपा है, जिसमें इस मुद्दे पर प्राथमिकता के आधार पर चर्चा की अपील की गई है।

कांग्रेस ने इस मुद्दे पर पार्टी लाइन से ऊपर उठकर पूरे विपक्ष को साथ लेने का प्रयास किया है। विपक्षी एकता इस बार कुछ अधिक मुखर नजर आ रही है, क्योंकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के साथ-साथ पहलगाम आतंकी हमले, ट्रंप के कश्मीर संबंधी बयान, और प्रवासी मतदाताओं के हाशिए पर रहने जैसे मुद्दे संसद में गर्माए हुए हैं। कांग्रेस का दावा है कि देश के सामने “आधा सच” परोसा जा रहा है, जबकि नीतिगत निर्णयों पर संसद की अनुमति और जानकारी जरूरी है। पार्टी ने वाजपेयी सरकार के दौर का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय कारगिल युद्ध के बाद एक रिव्यू कमेटी गठित की गई थी, लेकिन वर्तमान सरकार अपनी नीतियों को लेकर न तो संसद के प्रति जवाबदेह है, न ही पारदर्शी।

सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ बहस के लिए लोकसभा में 16 घंटे और राज्यसभा में 9 घंटे का समय निर्धारित किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस बहस का नेतृत्व करेंगे और गृह मंत्री अमित शाह एवं विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी हिस्सा लेंगे। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी भी अंतिम दिन बहस का उत्तर देने के लिए उपस्थित रह सकते हैं। हालांकि विपक्ष जोर देकर कह रहा है कि बहस की शुरुआत ही प्रधानमंत्री के वक्तव्य से होनी चाहिए, ताकि राष्ट्र को यह स्पष्ट हो सके कि इस ऑपरेशन के पीछे की रणनीति, उसकी वैधानिकता और नतीजे क्या रहे।

संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से ही यह स्पष्ट हो गया था कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ बहस इस सत्र की केंद्रीय धुरी होगी। पहले सप्ताह में संसद का अधिकांश समय हंगामे और स्थगनों की भेंट चढ़ गया, जिससे कोई भी विधायी कार्य नहीं हो सका। विपक्ष ने यह कहते हुए सरकार को घेरा कि जब तक राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस मामले पर खुली बहस नहीं होगी, तब तक सत्र की कार्यवाही चलने देना लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ होगा।

इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि देश की संसद अब सिर्फ विधेयकों की मंज़ूरी का मंच नहीं, बल्कि नीति और जवाबदेही की खुली बहस का भी मंच बन रही है। कांग्रेस का यह व्हिप, जिसमें सांसदों को उपस्थित रहकर सवाल पूछने और सरकार को कठघरे में खड़ा करने की हिदायत दी गई है, भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष की सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता है।

ऑपरेशन सिंदूर’ बहस न केवल सरकार की रणनीतिक सोच और सैन्य निर्णयों की पारदर्शिता की कसौटी बनेगी, बल्कि यह इस बात की भी परीक्षा होगी कि भारतीय संसद अपनी संवैधानिक भूमिका को कितनी गंभीरता से निभा रही है। यदि इस बहस में सार्थक संवाद, प्रधानमंत्री की भागीदारी और विपक्ष की गंभीर आपत्तियों का समुचित उत्तर नहीं आया, तो यह मामला लंबे समय तक राजनीतिक विमर्श का केंद्र बना रहेगा। कांग्रेस का यह साहसिक कदम संसद में एक बार फिर जवाबदेही और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन की मांग को मजबूत करता है।

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