पटना/नई दिल्ली
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में चल रही सीट शेयरिंग की गहन खींचतान आखिरकार अब सुलझती दिख रही है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने अपनी शुरुआती और मुखर मांग – 40 विधानसभा सीटों – से एक बड़ा कदम पीछे हटते हुए, अब 35 सीटों के एक व्यावहारिक फॉर्मूले पर सहमति जता दी है। सूत्रों के हवाले से यह खबर आई है कि यह सुलह बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और चिराग पासवान के बीच कई दिनों तक चली एक लंबी, लेकिन निर्णायक बातचीत का नतीजा है। इस सहमति के बदले में, बीजेपी ने उन्हें भविष्य की राजनीति में एक मजबूत आश्वासन दिया है: उन्हें विधान परिषद (MLC) और राज्यसभा में प्रतिनिधित्व की गारंटी दी गई है।
राजनीतिक गलियारों में इस समझौते को बीजेपी की “रणनीतिक जीत” के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि चिराग पासवान लगातार दबाव बनाकर अधिक सीटों की मांग कर रहे थे, जिसे बीजेपी ने “वास्तविकता से परे” बताकर सिरे से खारिज कर दिया था। बीजेपी नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि LJP को NDA में बने रहना है, तो उसे एक “व्यावहारिक रास्ता” अपनाना होगा, जो गठबंधन के व्यापक हितों को ध्यान में रखे।
बीजेपी की तरफ से चिराग पासवान को यह भरोसा दिलाया गया है कि सीटों की संख्या में कटौती के बावजूद, भविष्य में सत्ता और सम्मान दोनों में उन्हें समान भागीदारी दी जाएगी, जिससे उनका राजनीतिक कद कम न हो। इस समझौते के तहत, बीजेपी ने यह वादा किया है कि चुनाव के तुरंत बाद LJP को विधान परिषद की एक सीट और केंद्र में राज्यसभा में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा।
यह प्रस्ताव केवल गठबंधन को तात्कालिक रूप से पक्का करने के लिए ही नहीं दिया गया है, बल्कि यह संकेत देने के लिए भी है कि गठबंधन में LJP के योगदान को राजनीतिक रूप से पुरस्कृत किया जाएगा और उनकी अनदेखी नहीं होगी। दिल्ली में हुई इस उच्च-स्तरीय बातचीत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, और चिराग पासवान के बीच सीटों के अंतिम फॉर्मूले पर मुहर लगी। एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि, “चिराग NDA का अभिन्न हिस्सा बने रहेंगे, और यह हमारे लिए भी आवश्यक है कि हम अपने सहयोगियों की भावनाओं का सम्मान करें और उन्हें उचित हिस्सेदारी दें।”
यह कदम बिहार में गठबंधन को एकजुट और मजबूत दिखाने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
बिहार में बीजेपी पहले से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) की मांगों को लेकर एक जटिल समीकरण को साधने में जुटी हुई है, ऐसे में चिराग पासवान की सीटों पर सहमति का सामने आना बीजेपी के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। हालांकि, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और बीजेपी के बीच अब भी कुछ विशिष्ट इलाकों में उम्मीदवारों के चयन और सीटों की अदला-बदली को लेकर हल्के मतभेद बने हुए हैं, खासकर समस्तीपुर, खगड़िया, जमुई, और मोकामा जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर। बीजेपी की मंशा है कि LJP कुछ सीटें छोड़ दे ताकि गठबंधन के अन्य सहयोगियों जैसे कि जदयू और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) को भी उचित तरीके से समायोजित किया जा सके और कोई भी सहयोगी असंतुष्ट न रहे। इस पर चिराग पासवान ने लचीला रुख दिखाते हुए कहा है कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता “गठबंधन को मजबूत रखना है, लेकिन यह सम्मानजनक हिस्सेदारी और भविष्य की सुरक्षा के साथ ही संभव है।”
राजनीतिक विश्लेषक इस निर्णय को चिराग पासवान का एक कुशल सौदेबाजी समझौता मानते हैं। उन्होंने बेशक सीटों की संख्या कम की है, लेकिन उसके बदले में उन्होंने अपनी और अपनी पार्टी की भविष्य की राजनीतिक सुरक्षा सुनिश्चित कर ली है। MLC और राज्यसभा सीट का आश्वासन उनके लिए एक “सुरक्षा कवच” के रूप में काम करेगा। इसका मतलब यह है कि अगर विधानसभा चुनाव में LJP का प्रदर्शन उम्मीद से कमजोर भी रहा, तो दिल्ली की केंद्रीय राजनीति में और विधानमंडल में उनका राजनीतिक कद और प्रभाव बरकरार रहेगा।
चिराग पासवान अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी पार्टी का वोट शेयर सीमित है, लेकिन उनके पास उनके पिता, स्वर्गीय रामविलास पासवान की विरासत है, जो बिहार के दलित और महादलित समुदाय में गहरी जड़ें रखती है – और बीजेपी इस निर्णायक वोट बैंक को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती। इसीलिए बीजेपी ने एक टकराव से बचते हुए सुलह का रास्ता अपनाया है, ताकि पूरे NDA में एकजुटता की एक स्पष्ट और मजबूत तस्वीर बनी रहे और विरोधी खेमे को कोई राजनीतिक लाभ न मिल सके।
निष्कर्षतः, चिराग पासवान का 35 सीटों पर राज़ी हो जाना बीजेपी के लिए तत्काल एक बड़ी राजनीतिक राहत है, लेकिन गठबंधन के भीतर असंतोष और तनाव की जड़ें अब भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं।
यह सीट डील भले ही तात्कालिक टकराव को टाल दे, लेकिन इसे गठबंधन की चुनौतियों का स्थायी समाधान नहीं कहा जा सकता। LJP के भीतर कई नेता अभी भी दबी ज़ुबान में यह मानते हैं कि पार्टी को “बीजेपी की जूनियर पार्टनर” की भूमिका में धकेल दिया गया है, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं है। वहीं, बीजेपी का मानना है कि चिराग पासवान के साथ समझौता करना राजनीतिक अनिवार्यता थी, क्योंकि बिहार में मजबूत जातीय समीकरणों को साधने के लिए LJP के बिना गठबंधन अधूरा रह जाता। कुल मिलाकर, यह स्पष्ट है कि चिराग ने सीटें छोड़ीं, लेकिन उन्होंने सौदेबाजी में जीत हासिल कर ली, जबकि बीजेपी ने गठबंधन को बचाया और अपनी “सीट डिप्लोमेसी” से एक बार फिर यह साबित कर दिया कि बिहार के इस बड़े चुनावी खेल की बागडोर अंततः उसी के हाथ में है।