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छत्तीसगढ़: भाजपा राज में आदिवासी बना नीति का केंद्र, जंगल से निकला स्वाभिमान का सूरज

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12 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ की आत्मा, उसकी मिट्टी की सबसे मूल पहचान — आदिवासी समाज है। यह समाज न केवल राज्य का भौगोलिक हिस्सा है, बल्कि उसकी संस्कृति, परंपरा, लोक चेतना और संघर्षशीलता का प्रतीक भी है। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि वर्षों तक आदिवासी समाज को “विकास का विषय” तो बनाया गया, पर “विकास का भागीदार” नहीं। कांग्रेस शासनों में आदिवासियों को केवल वोट बैंक माना गया। भाजपा शासन ने इस सोच को उलटते हुए उन्हें नीति, सम्मान और शासन का हिस्सा बनाया — हाशिये से उठाकर उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में जगह दी।

वन अधिकार: अब जंगल उनके हैं, और फैसले भी

भाजपा शासन ने वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन को वास्तविकता में बदला। अब आदिवासी परिवारों को पट्टे के नाम पर सिर्फ़ काग़ज़ नहीं, हक, भूमि और स्वामित्व मिला है। सरकार ने रिकॉर्ड संख्या में व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार पत्र (Forest Rights Patta) वितरित किए। साथ ही उन्हें वनोपज संग्रह, प्रसंस्करण, और विपणन का पूर्ण अधिकार भी दिया गया।

अब आदिवासी समाज केवल वान उपज बेचने वाला नहीं, बल्कि वन अर्थव्यवस्था का प्रमुख संचालक है। इससे उनकी आय, आत्मविश्वास और सामाजिक प्रतिष्ठा तीनों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।

आदिवासी गौरव: संस्कृति और परंपरा को राज्य स्तर पर पहचान

भाजपा शासन में आदिवासी समाज को केवल योजनाओं तक सीमित नहीं रखा गया, बल्कि उनकी संस्कृति, देवी-देवता, त्योहार, भाषा, और कला को राजकीय सम्मान दिया गया। भगवान बिरसा मुंडा, वीर नारायण सिंह, गुंडाधुर, और बैलाडीला के क्रांतिकारी वीरों को इतिहास के पन्नों से निकालकर आज के सम्मान स्तंभों में शामिल किया गया। राज्य सरकार ने “जनजातीय गौरव सप्ताह”, आदिवासी संग्रहालय, लोक महोत्सव, और भाषा-संरक्षण योजनाएं शुरू कीं — जिससे छत्तीसगढ़ के लोकनायक अब जनमानस का हिस्सा बन चुके हैं।

शिक्षा और नेतृत्व: अब नीति बन रहे हैं आदिवासी बेटे-बेटियां

भाजपा शासन ने आदिवासी छात्रों के लिए एकलव्य मॉडल स्कूल, शासकीय आदर्श आवासीय विद्यालय, और टॉप क्लास स्कॉलरशिप योजना जैसी योजनाओं का विस्तार किया। अब आदिवासी बच्चे सिर्फ़ माध्यमिक शिक्षा ही नहीं, IIT, मेडिकल, लॉ, प्रशासनिक सेवाओं तक पहुंच रहे हैं। बस्तर, सरगुजा और जशपुर जैसे जिलों में कोचिंग हब, हॉस्टल, और डिजिटल लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं यह संकेत देती हैं कि अब आदिवासी छात्र अभाव का प्रतीक नहीं, अवसर का परिणाम बन चुके हैं।राज्य की पंचायतों, मंडलों, निगमों और प्रशासनिक पदों पर आदिवासी युवक-युवतियों की भागीदारी सांकेतिक नहीं, नेतृत्वकारी बन चुकी है।

आजीविका और सशक्तिकरण: अब जंगल उपज है ब्रांड, महिला है उद्यमी

भाजपा शासन ने आदिवासी बहनों को महज श्रमिक नहीं, उद्यमी और स्वावलंबी बनाया। महुआ, इमली, चिरौंजी, साल बीज जैसे वनोपजों को स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण, पैकेजिंग और ब्रांडिंग के ज़रिए वैश्विक बाज़ार से जोड़ा गया।

सरगुजा की महुआ चाय, बस्तर की इमली कैंडी, कोंडागांव की बांस शिल्प कलाएं अब अमेज़न, फ्लिपकार्ट और GI टैग तक पहुंच चुकी हैं। सखी मंडल, महिला वन समितियां, और स्व-सहायता समूहों के माध्यम से लाखों आदिवासी महिलाएं अब आय सृजन और सामाजिक नेतृत्व की भूमिका में हैं।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व: अब आदिवासी केवल वोट नहीं, निर्णय का चेहरा

भाजपा ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में आदिवासी नेतृत्व को सम्मानपूर्ण स्थान दिया है। विष्णुदेव साय स्वयं एक आदिवासी समाज से आए हुए मुख्यमंत्री हैं — जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भाजपा में प्रतिनिधित्व प्रतीक नहीं, शक्ति है। राज्य मंत्रिमंडल, जिला परिषदों, नगर निकायों और बोर्ड-निगमों में आदिवासी चेहरों को भागीदारी दी गई है — इससे जनविश्वास और राजनीतिक परिपक्वता दोनों में इज़ाफा हुआ है।

भाजपा शासन में छत्तीसगढ़ का आदिवासी समाज ‘वंचित’ से ‘विजेता’ की ओर बढ़ा है। अब वह केवल जंगलों का रक्षक नहीं, संविधान प्रदत्त अधिकारों का स्वाभिमानी स्वामी है। भाजपा ने सिद्ध किया कि “विकास का असली रूप वह है जिसमें परंपरा और प्रगति साथ-साथ चलें।” अब आदिवासी समाज न केवल भाषा, भूमि और वनों के लिए सजग है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का जनजातीय नेतृत्व भी कर रहा है।

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