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छत्तीसगढ़: भाजपा राज में गांव की आत्मा को मिला सम्मान, किसान बना विकास का आधार

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9 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ की पहचान उसकी मिट्टी से है, और इस मिट्टी की सबसे बड़ी ताक़त है उसका किसान। वह किसान जो पीढ़ियों से जंगलों के किनारे, पहाड़ी ढलानों और नदियों की धाराओं के साथ अपनी फसलें बोता आया है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि राज्य निर्माण के बाद से लंबे समय तक छत्तीसगढ़ के गांव केवल आंकड़ों का विषय बने रहे — कहीं ‘बैकवर्ड’ कहकर उपेक्षित, तो कहीं ‘नक्सल प्रभावित’ मानकर असहाय छोड़ दिए गए। भाजपा शासन ने इस सोच को उलटते हुए गांव को विकास का केंद्र और किसान को नीति का नायक बनाया।

किसान सिर्फ़ अन्नदाता नहीं, अब नीति निर्माता भी

भाजपा शासन ने गांव और किसान को केवल चुनावी वादा नहीं, नीति निर्माण का मूल आधार माना। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में सरकार ने यह सिद्ध किया कि “यदि भारत गांवों में बसता है, तो छत्तीसगढ़ गांवों से आगे बढ़ेगा।” इसी सिद्धांत को केंद्र में रखकर कृषि, सिंचाई, खाद, बीज, और विपणन की दिशा में दूरदर्शी फैसले लिए गए।

“मुख्यमंत्री कृषि प्रोत्साहन योजना”, “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना”, और “डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी समृद्ध ग्राम योजना” जैसे कार्यक्रमों ने किसानों को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया। जहां पहले धान बेचने के लिए किसान को बिचौलियों का शिकार बनना पड़ता था, आज वह समर्थन मूल्य पर सीधे बेचता है और उसका भुगतान सीधे खाते में पहुंचता है।

सिंचाई और जल संरक्षण: हर खेत को पानी, हर बूंद को बचाव

भाजपा सरकार ने जल को केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि “कृषि की जीवनरेखा” माना। यही कारण है कि पूरे राज्य में मिनी रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट्स, बोरी बंधान, पानी रोको योजना, और सोलर सिंचाई पंप वितरण कार्यक्रम के माध्यम से पानी को गाँव तक लाया गया।

“नरवा, गरुवा, घुरुवा, बाड़ी” योजना को पुनर्परिभाषित करते हुए भाजपा ने उसमें तकनीकी दृष्टिकोण, ई-मैपिंग और ड्रोन आधारित निरीक्षण को जोड़ा, जिससे अब जल स्रोतों की निगरानी और संरक्षण वैज्ञानिक तरीके से हो रही है। इससे न केवल भूजल स्तर बढ़ा है, बल्कि खेती की लागत घटी और उत्पादकता में वृद्धि हुई।

 ग्रामीण अर्थव्यवस्था: सिर्फ़ मजदूरी नहीं, अब उद्यमिता की बात

भाजपा शासन में गांवों को केवल मजदूरी आधारित अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं रखा गया। अब ग्राम उद्यमिता केंद्र, महिला स्व-सहायता समूह, और ग्राम स्तर पर उत्पाद प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना की जा रही है। बस्तर, कोंडागांव और रायगढ़ जैसे जिलों में महुआ, इमली, कोसुम, साल बीज जैसे वनोपजों को प्रोसेस कर मूल्यवर्धन किया जा रहा है। यह केवल आजीविका नहीं, गांव की आत्मनिर्भरता का मजबूत स्तंभ बन रहा है।

 गांव में स्मार्ट योजनाएं: विकास वहीं, जहां ज़रूरत है

भाजपा सरकार ने यह मान लिया कि विकास तब तक अधूरा है जब तक आदिवासी टोले, पहाड़ी गांव और दूरस्थ पंचायतों तक यह नहीं पहुंचे। इसी सोच के तहत अब गांवों में ई-गवर्नेंस, पक्की सड़कें, स्वच्छ जल, बायोगैस, और सौर ऊर्जा आधारित स्ट्रीट लाइट्स तक लगाई जा रही हैं।

गांवों में अब सिर्फ़ ‘मनरेगा’ की गड्ढा खुदाई नहीं, बल्कि स्वावलंबन की प्रयोगशाला विकसित हो रही है — जहां ग्रामीण खुद योजना बनाते हैं, क्रियान्वयन करते हैं और लाभार्थी भी होते हैं।

छत्तीसगढ़ का वह गांव, जो कभी विकास के नक्शे में सबसे आख़िर में आता था — आज भाजपा शासन में पहली प्राथमिकता बन चुका है। किसान अब योजनाओं का आंकड़ा नहीं, नीति का आधार बन चुका है। जल अब केवल बारिश का भरोसा नहीं, संचय और सदुपयोग का विज्ञान बन चुका है।

भाजपा शासन ने यह साबित कर दिया कि “विकास तब सार्थक है जब गांव का किसान मुस्कुराए, उसकी धरती उपजाऊ हो, उसकी बेटी स्कूल जाए, और उसका बेटा शहरों की ओर भागे नहीं, बल्कि गांव में ही रोज़गार पाए।” यह वही नवछत्तीसगढ़ है, जो गांव की मिट्टी से उठकर भारत के भविष्य को सींच रहा है।

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