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छत्तीसगढ़: भाजपा राज में सांस्कृतिक जागरण और आस्था से आत्मनिर्माण की नई धारा

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8 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ केवल जंगल, खनिज और नक्सलवाद की छवि तक सीमित नहीं है। यह श्रद्धा, संस्कृति और सनातन परंपराओं की ज़मीन है — जहाँ एक ओर माँ बमलेश्वरी का ऊँचाई से आशीर्वाद बरसता है, तो दूसरी ओर दंतेश्वरी माता की शक्ति जन-जन के रोम-रोम में बसती है। लेकिन इस सांस्कृतिक और धार्मिक वैभव को दशकों तक राजनीतिक हाशिए पर रखा गया। भाजपा शासन ने इस उपेक्षित आत्मा को फिर से पहचान दी — धार्मिक पर्यटन, तीर्थ विकास और सांस्कृतिक गौरव को पुनर्जीवित कर, उसे राज्य के विकास की धुरी बना दिया।

तीर्थों को मिले नये पंख: आस्था से आत्मनिर्भरता तक

भाजपा सरकार ने स्पष्ट किया कि “जो राज्य अपनी जड़ों से जुड़ा है, वही स्थायित्व और सम्मान के साथ विकास कर सकता है।” इसी सोच से छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थलों को वैश्विक स्तर पर विकसित करने का मिशन शुरू हुआ। डोंगरगढ़ की माँ बमलेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी माता, राजिम का कुंभ, शिवरीनारायण, मल्हार, सिरपुर, और भोरमदेव जैसे पवित्र स्थलों को भव्यता के साथ संरक्षित किया गया।

सरकार ने इन स्थलों को केवल पर्यटन केंद्र नहीं, आर्थिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के केंद्र के रूप में देखा। “राम वनगमन पर्यटन परिपथ योजना” इसका सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसमें भगवान श्रीराम के वनवास मार्ग पर पड़ने वाले 75 स्थलों को चिन्हित कर धार्मिक, ऐतिहासिक और आर्थिक विकास का सूत्रपात किया गया है।

सांस्कृतिक विरासत को पहचान, पर्यटन को प्रोत्साहन

सिरपुर, जो बौद्ध, जैन और वैदिक परंपराओं का त्रिवेणी संगम रहा है, अब विश्व स्तरीय बौद्ध पर्यटक केंद्र बनने की ओर बढ़ चुका है। वहां आयोजित अंतरराष्ट्रीय सिरपुर महोत्सव ने राज्य को “भारत की सांस्कृतिक राजधानी” बनाने की नींव रख दी है। इसी प्रकार राजिम कुंभ को हरिद्वार, उज्जैन और प्रयाग के समकक्ष प्रतिष्ठा दी गई — जहाँ छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, संत परंपरा और आध्यात्मिक शक्ति का संगम होता है।

भाजपा शासन ने यह सिद्ध किया कि संस्कृति कोई “फोल्डर” में बंद नीति नहीं होती, बल्कि जनभावना और आत्मगौरव का जीवंत प्रवाह है। हर जिले में सांस्कृतिक भवन, हाट बाजार, हस्तशिल्प केंद्र, लोक कलाकार सम्मान योजना जैसे प्रयासों ने स्थानीय संस्कृति को प्रोत्साहन ही नहीं, जीवन दिया है।

धार्मिक पर्यटन से जुड़ी आजीविका: आस्था का अर्थशास्त्र

भाजपा सरकार ने धार्मिक स्थलों को सिर्फ़ सौंदर्यीकरण तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें रोज़गार और आजीविका से भी जोड़ा। हर मंदिर के आसपास हस्तशिल्प मेलों, लोकगीत नृत्य उत्सवों, फूड स्ट्रीट, और होम-स्टे योजनाओं का संचालन किया गया जिससे स्थानीय युवाओं, महिलाओं और कारीगरों को आय के अवसर मिले।

अब डोंगरगढ़ या दंतेवाड़ा जाने वाला तीर्थयात्री न केवल दर्शन करता है, बल्कि वहां के लोकनृत्य देखता है, स्थानीय भोजन का स्वाद लेता है, और ग्रामों से बनी वस्तुएं खरीदता है। यह केवल पर्यटन नहीं, “ट्रेड विथ ट्रस्ट” — संस्कृति के साथ वाणिज्य का मेल है।

आस्था और आत्मगौरव: भाजपा की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की छाप

भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ केवल भौगोलिक सीमाओं वाला राज्य नहीं, एक आध्यात्मिक सत्ता है — जहाँ भारत की आत्मा की धड़कन सुनाई देती है। यही कारण है कि पार्टी ने मंदिरों के जीर्णोद्धार, संतों की परंपरा के सम्मान, और लोकधर्म से जुड़े त्योहारों को राजकीय संरक्षण देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

सरकार का यह संदेश स्पष्ट है:

“यदि कोई राज्य अपने मंदिरों को भूल जाए, अपनी लोकभाषा और लोकगाथाओं को किनारे कर दे, तो वह भले ही आधुनिक दिखे — आत्मविहीन हो जाएगा।” भाजपा की नीति इसके उलट है — “आधुनिकता और परंपरा का समन्वय ही असली प्रगति है।”

छत्तीसगढ़ आज भाजपा के नेतृत्व में केवल एक विकसित राज्य नहीं, एक जीवंत सांस्कृतिक भूगोल बन चुका है — जहाँ शिक्षा के साथ संस्कार, तकनीक के साथ परंपरा, और पर्यटन के साथ तीर्थ एक-साथ बढ़ रहे हैं। यह वही छत्तीसगढ़ है जो कभी ‘अज्ञात वन’ कहलाता था — और आज भारत की आत्मा का ज्ञात, जाग्रत और गौरवशाली स्वरूप बन चुका है।

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