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छत्तीसगढ़: भाजपा के शासन में विकास की नई धारा

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2 जुलाई 2025

2023 के विधानसभा चुनावों में जब भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ की सत्ता पर पुनः क़ब्ज़ा जमाया, तो यह सिर्फ़ एक सत्ता परिवर्तन नहीं था — यह नीति, दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं में एक निर्णायक बदलाव था। भूपेश बघेल सरकार की लोकलुभावन योजनाओं और ‘कर्ज़माफी-आधारित राजनीति’ के मुकाबले भाजपा एक स्पष्ट, सख़्त और दीर्घकालिक विज़न लेकर सामने आई। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, जो स्वयं एक आदिवासी नेता हैं, उनके नेतृत्व में सरकार ने राज्य के सुदूर और उपेक्षित इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने की ठोस पहल शुरू कर दी है।

भाजपा सरकार ने सत्ता संभालते ही जिन तीन क्षेत्रों पर सबसे पहले ध्यान केंद्रित किया — वे थे: सुरक्षा, संरचना और समावेशिता। सबसे पहले, नक्सल प्रभावित जिलों में सड़कों, बिजली, और डिजिटल कनेक्टिविटी को प्राथमिकता दी गई। बस्तर, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जैसे जिलों में अब सड़कें केवल सेना की नहीं, स्कूली बच्चों और एम्बुलेंस की आवाजाही की प्रतीक बन चुकी हैं। PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) के तहत हजारों किलोमीटर नई सड़कें बन रही हैं और गांवों में बिजली 24 घंटे पहुंच रही है।

विकास की दूसरी बड़ी लकीर थी — औद्योगिक निवेश और रोजगार सृजन। भाजपा सरकार ने रायगढ़, कोरबा, और बिलासपुर को औद्योगिक हब के रूप में विकसित करने की योजना तेज की। कोयला, इस्पात और सीमेंट जैसे क्षेत्र अब सिर्फ खनन तक सीमित नहीं रहे, बल्कि स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें इन क्षेत्रों में रोजगार देना अब प्राथमिकता बन चुका है। सरकार का ‘मेक इन छत्तीसगढ़’ अभियान न केवल स्थानीय व्यापारियों को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि स्वदेशी उत्पादों को ग्लोबल बाज़ार में पहुंचाने की दिशा में भी बड़ी कोशिश है।

शिक्षा के क्षेत्र में भाजपा सरकार ने सबसे क्रांतिकारी कदम ‘मॉडल स्कूल और नवोदय विस्तार योजना’ के ज़रिए उठाया है। बस्तर, कांकेर और सरगुजा जैसे आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेज़ी और तकनीकी शिक्षा तक पहुंच के लिए विशेष स्कूल खोले जा रहे हैं। वहीं महिला सुरक्षा, मातृत्व देखभाल और कुपोषण उन्मूलन के लिए ‘सक्षम मातृ शक्ति अभियान’ जैसी योजनाएं लागू की गई हैं। भाजपा सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि “विकास का कोई मतलब नहीं अगर आदिवासी महिला का बच्चा भूखा है या शिक्षित नहीं।”

मुख्यमंत्री जनसेवा केंद्रों और ई-गवर्नेंस हब्स के ज़रिए शासन को आम जनता के दरवाज़े तक ले जाने की मुहिम ने छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक ढांचे को डिजिटल युग से जोड़ दिया है। अब किसी ग्रामीण को प्रमाण पत्र, पेंशन या आवास योजना की जानकारी के लिए तहसील नहीं दौड़ना पड़ता — उसके गांव में ही सेवाएं मिल रही हैं। यही है भाजपा की डिजिटल समावेशिता की राजनीति।

छत्तीसगढ़ में भाजपा के शासन का सबसे बड़ा संदेश यही है कि अब विकास केवल घोषणापत्र का हिस्सा नहीं, बल्कि धरातल पर कार्यरूप में परिणत हो रहा है। नक्सलवाद के गढ़ों में मोबाइल टावर खड़े हो रहे हैं, जहां कल तक बंदूकें थीं वहां अब पुस्तकालय खुल रहे हैं, और जहां नारे थे वहां अब स्वरोज़गार की बुनियाद रखी जा रही है।

राज्य में आज जो माहौल है — वह सुरक्षा और विश्वास का है। सरकार की प्राथमिकता अब सिर्फ चुनावी जीत नहीं, बल्कि एक सशक्त और स्वाभिमानी छत्तीसगढ़ का निर्माण है। आने वाले वर्षों में राज्य की राजनीति सिर्फ मतगणना तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह तय करेगी कि “क्या एक आदिवासी बच्चा आईआईटी में जा सकेगा?” और “क्या बस्तर की बेटी अफसर बन पाएगी?” — और इन सवालों के जवाब में ही छुपा है छत्तीसगढ़ का सच्चा भविष्य।

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