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चीन के प्रभुत्व को चुनौती: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने की 8.5 अरब डॉलर की ऐतिहासिक ‘रेयर अर्थ मिनरल्स डील’

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वॉशिंगटन और सिडनी से आई यह खबर भू-राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर एक बड़ा बदलाव ला सकती है, जहाँ अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐतिहासिक “रेयर अर्थ मिनरल्स डील” पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता, जिसका मूल्य लगभग 8.5 अरब डॉलर है, सीधे तौर पर चीन के बढ़ते प्रभुत्व और खनिज आपूर्ति श्रृंखला पर उसकी मोनोपॉली को चुनौती देने वाला एक निर्णायक कदम माना जा रहा है। इस विशाल निवेश साझेदारी का प्राथमिक उद्देश्य क्रिटिकल मिनरल्स (Critical Minerals) की खोज, खनन और प्रसंस्करण क्षमता को मज़बूत करना है, ताकि वैश्विक बाज़ारों को एक स्थिर और चीन-मुक्त आपूर्ति श्रृंखला प्रदान की जा सके। यह गठबंधन न केवल चीन पर निर्भरता को कम करने पर केंद्रित है, बल्कि तकनीकी, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों के लिए एक “स्ट्रैटेजिक सेफ्टी नेट” बनाने का काम करेगा। शुरुआती चरण में लगभग 3 अरब डॉलर के निवेश से ऑस्ट्रेलिया में नई खदानें विकसित की जाएंगी और अत्याधुनिक प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए जाएंगे, जो अमेरिका-ऑस्ट्रेलियाई गठबंधन के माध्यम से वैश्विक खनिज आपूर्ति को स्थायी रूप से स्थिर करने का लक्ष्य रखेंगे।

डील की रणनीतिक महत्ता: चीन की ‘खनिज मोनोपॉली’ को तोड़ने की तैयारी

इस साझेदारी की रणनीतिक महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि वर्तमान में दुनिया के लगभग 70% रेयर अर्थ मिनरल्स की प्रोसेसिंग चीन में होती है, जिसने उसे वैश्विक प्रौद्योगिकी और रक्षा उद्योगों पर एक असाधारण नियंत्रण दिया है। चीन ने हाल के महीनों में निर्यात नियंत्रण और कीमतों में हेरफेर जैसे कदम उठाए हैं, जिससे वैश्विक बाज़ारों में गंभीर चिंताएं पैदा हुई हैं और आपूर्ति की अस्थिरता का खतरा बढ़ गया है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की यह महत्वाकांक्षी पहल चीन की इस “खनिज मोनोपॉली” को तोड़ने की दिशा में एक निर्णायक कदम मानी जा रही है। इस समझौते में विशेष रूप से गैलियम (Gallium), नेओडिमियम (Neodymium), डिसप्रोसियम (Dysprosium) जैसे 17 दुर्लभ खनिजों के उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, मिसाइल सिस्टम्स, मोबाइल फ़ोनों और माइक्रोचिप्स जैसे अत्याधुनिक तकनीकी अनुप्रयोगों के लिए अपरिहार्य हैं। विश्लेषकों का आकलन है कि यदि यह साझेदारी सफलतापूर्वक और निर्धारित समय-सीमा के भीतर ज़मीन पर उतरती है, तो अगले 5 वर्षों में चीन की वैश्विक आपूर्ति-चेन पर पकड़ लगभग 30% तक कमजोर हो सकती है, जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन प्रभावित होगा।

आर्थिक और रणनीतिक असर: नए पॉवर-ब्लॉक का उदय

इस ऐतिहासिक समझौते का दोनों देशों और वैश्विक बाज़ार पर गहरा आर्थिक और रणनीतिक असर पड़ना निश्चित है। ऑस्ट्रेलिया को इस डील के ज़रिए एक बड़ा विदेशी निवेश प्राप्त होगा, जिससे वहाँ रोजगार सृजन के बड़े अवसर पैदा होंगे और उसकी खनन अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व मजबूती मिलेगी। वहीं, अमेरिका को अपने अत्यधिक महत्वपूर्ण टेक, रक्षा और ऊर्जा सेक्टर के लिए एक भरोसेमंद और भू-राजनीतिक रूप से सुरक्षित स्रोत मिलेगा, जिससे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होगी। इस साझेदारी का सीधा प्रभाव चीन पर पड़ेगा, जिसे अब वैश्विक खनिज बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी और प्रभुत्व बनाए रखने के लिए नए बाज़ार और वैकल्पिक साझेदार खोजने की बड़ी चुनौती झेलनी पड़ेगी। दीर्घकाल में, यह समझौता वैश्विक खनिज बाज़ार में अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया को एक “नया पॉवर-ब्लॉक” बनकर उभरने का अवसर प्रदान करता है, जो भविष्य की तकनीक और ऊर्जा सुरक्षा की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

विशेषज्ञों की राय और भारत के लिए अवसर

ब्लूमबर्ग और रॉयटर्स जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों की रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की राय के अनुसार, अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया का यह समझौता भविष्य में भारत, जापान और यूरोप जैसे प्रमुख तकनीकी और आर्थिक शक्तियों के लिए भी नए और महत्वपूर्ण अवसर खोल सकता है। भारत के लिए यह डील विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें रेयर अर्थ मिनरल्स की आपूर्ति-चेन में एक वैकल्पिक विनिर्माण (Alternative Manufacturing) और प्रसंस्करण हब बनने की प्राकृतिक और तकनीकी क्षमता मौजूद है। इस साझेदारी के ज़रिए एक ऐसा खुला और विश्वसनीय वैश्विक ढांचा तैयार हो सकता है, जो भारत को अपनी तकनीकी और रक्षा विनिर्माण क्षमता को चीन-मुक्त आपूर्ति श्रृंखला के साथ जोड़ने का अवसर देगा। यह Rare Earth Minerals Deal केवल एक व्यापारिक समझौता नहीं है, बल्कि यह चीन के आर्थिक वर्चस्व के खिलाफ एक सामरिक मोर्चाबंदी है, और अब दुनिया के तकनीकी तथा ऊर्जा भविष्य की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि यह नया गठबंधन कितनी जल्दी और कितनी प्रभावी रूप से चीन की बाज़ार पर पकड़ को ढीला कर पाता है।

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