नई दिल्ली
23 जुलाई 2025
सरकार ने संसद के मानसून सत्र में ‘राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2025’ (National Sports Governance Bill 2025) को प्रस्तुत किया है, जो भारत के खेल तंत्र में एक बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है। इस विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद धारा वह है जो केंद्र सरकार को “राष्ट्रीय हित” और “असाधारण परिस्थितियों” के आधार पर किसी भी भारतीय खिलाड़ी या टीम की अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार देती है। यह पहल पहली बार किसी कानूनी मसौदे में इस स्तर पर सरकारी हस्तक्षेप को मान्यता देने का प्रयास है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो अगर यह कानून पारित होता है, तो केंद्र सरकार भविष्य में पाकिस्तान जैसी किसी भी देश के साथ द्विपक्षीय खेल मुकाबले में भारत की भागीदारी को रोक सकती है – वह भी पूरी कानूनी वैधता के साथ।
इस बिल का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य खेल संगठनों को जवाबदेह बनाना, वित्तीय पारदर्शिता लाना और एक केंद्रीयकृत निगरानी तंत्र स्थापित करना है। इसके तहत एक नया ‘राष्ट्रीय खेल नियामक बोर्ड’ (National Sports Regulatory Board) गठित किया जाएगा, जो सभी राष्ट्रीय खेल संघों की गतिविधियों की निगरानी करेगा, उन्हें मान्यता देगा, उनके वित्तीय लेन-देन का मूल्यांकन करेगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बनाए रखने के लिए नीति तय करेगा। इसके साथ ही, बिल में कहा गया है कि सभी राष्ट्रीय खेल निकाय, जिनमें BCCI जैसे शक्तिशाली संगठन भी शामिल हैं, अब इस कानूनी दायरे में आएंगे। यह एक बड़ा मोड़ हो सकता है क्योंकि अब तक BCCI खुद को एक “स्वायत्त निजी संस्था” मानता रहा है और सरकार के अधिकांश आदेशों को ‘सलाह’ भर समझता रहा है।
बिल के मसौदे में कहा गया है कि “यदि राष्ट्रीय हित या सार्वजनिक व्यवस्था खतरे में हो, या भारत की विदेश नीति के साथ टकराव हो तो सरकार यह तय कर सकती है कि भारत का कोई खिलाड़ी या टीम किस अंतरराष्ट्रीय आयोजन में भाग ले सकती है और किसमें नहीं।” यह सीधा संकेत है कि पाकिस्तान के साथ खेल संबंधों को लेकर भविष्य में कोई भी निर्णय पूरी तरह केंद्र के नियंत्रण में होगा। वर्तमान में भारत-पाक द्विपक्षीय क्रिकेट संबंध पूरी तरह बंद हैं, लेकिन अब सरकार यह अधिकार विधायी रूप से अपने पास रखना चाहती है, ताकि भविष्य में कोई भी संस्था या खिलाड़ी इस विषय में स्वतंत्र न हो।
खेल मंत्रालय के अनुसार, यह विधेयक केवल नियंत्रण नहीं, बल्कि खेल संस्कृति के सुधार के लिए भी है। इसमें खिलाड़ियों की शिकायतों की सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल की व्यवस्था, महिला प्रतिनिधित्व अनिवार्य करना, और खेल संघों में कार्यकाल की अधिकतम सीमा निर्धारित करने जैसे कई सुधार प्रस्तावित हैं। यही नहीं, हर खेल संगठन को सालाना ऑडिट रिपोर्ट, पारदर्शी चुनाव और खिलाड़ियों के चयन की सार्वजनिक प्रक्रिया सुनिश्चित करनी होगी। इस विधेयक को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC), फीफा और अन्य संगठनों के सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है, ताकि यह वैश्विक मानकों पर खरा उतर सके।
हालांकि इस बिल पर देश के खेल संगठनों और विशेषज्ञों की मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आई है। इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) और कई अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघों ने चिंता जताई है कि इस विधेयक से उनकी स्वायत्तता खत्म हो सकती है और सरकार के अत्यधिक हस्तक्षेप से खेल का आत्मनिर्भर ढांचा प्रभावित हो सकता है। वहीं BCCI ने फिलहाल इस पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने कहा है कि बिल का पूरा अध्ययन करने के बाद ही कोई आधिकारिक राय रखी जाएगी। विपक्ष ने भी इस विधेयक में “राष्ट्रीय हित” की व्याख्या को लेकर सरकार पर निशाना साधा है और पूछा है कि कहीं यह प्रावधान खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर दबाने का माध्यम तो नहीं बन जाएगा।
इस विधेयक की टाइमिंग भी बेहद अहम मानी जा रही है क्योंकि भारत 2036 ओलंपिक की मेज़बानी की तैयारियाँ कर रहा है और सरकार चाहती है कि देश का खेल ढांचा पारदर्शी, आधुनिक और वैश्विक मानकों के अनुकूल हो। इस विधेयक के पारित होने के बाद भारत न केवल खेल संगठनों की निगरानी को कानूनी आधार देगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी स्पष्ट संदेश देगा कि वह अपनी विदेश नीति और राष्ट्रीय गरिमा से कोई समझौता नहीं करेगा।
इस प्रकार, National Sports Governance Bill 2025 न केवल एक प्रशासनिक सुधार है, बल्कि यह भारत की खेल कूटनीति और राष्ट्रीय अस्मिता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। अब सबकी निगाहें संसद पर हैं कि क्या यह विधेयक संशोधनों के साथ पारित होता है या इस पर आगे और बहस की जरूरत महसूस की जाएगी। यह विधेयक भारतीय खेल परिदृश्य को जड़ से बदल सकता है – और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी चुनौती दोनों है।