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प्यार का सेक्स रोमांच देता है और हवस का सेक्स ग्लानि: एक गहरा मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विश्लेषण

सेक्स: केवल शारीरिक क्रिया नहीं, भावनाओं का दर्पण सेक्स केवल एक जैविक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह हमारी भावनाओं, मानसिकता, और आध्यात्मिकता का भी प्रतिबिंब होता है। जब हम सेक्स को केवल शारीरिक क्रिया के रूप में देखते हैं, तो हम इसके गहरे अर्थों और प्रभावों को नजरअंदाज कर देते हैं। यह क्रिया उस भावनात्मक

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मीडिया और सोशल मीडिया में महिलाओं की छवि: सशक्तिकरण या सीमाओं में कैद?

निपुणिका शाहिद, असिस्टेंट प्रोफेसर, मीडिया स्ट्डीज, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी  नई दिल्ली, 15 अगस्त  विज्ञापन हों या सिनेमा, न्यूज़ चैनल हों या इंस्टाग्राम—आज की दुनिया में महिलाएं हर मंच पर दिखाई देती हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह दृश्यता उन्हें सशक्त बना रही है या सिर्फ “उपयोग की वस्तु” के रूप

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आज़ादी से आत्मनिर्भरता तक: महिला, बाल विकास और जनकल्याण की राष्ट्रीय यात्रा

प्रस्तावना: स्वतंत्र भारत में सामाजिक पुनर्निर्माण का संकल्प 15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब देश की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग—महिलाएं और बच्चे—सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से अत्यंत पिछड़े थे। आज़ादी की सुबह केवल राजनैतिक स्वाधीनता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समता की रोशनी भी लेकर आई। संविधान निर्माताओं ने महिलाओं

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उत्तेजना: यौन जीवन की वह जटिल अवस्था जो शरीर और मन को जोड़ती है

नई दिल्ली 14 अगस्त 2025 उत्तेजना यौनिकता की वह अवस्था है जब शरीर और मस्तिष्क दोनों मिलकर यौन क्रिया के लिए तैयार हो जाते हैं। इसे केवल शारीरिक प्रक्रिया समझना अधूरा होगा, क्योंकि यह एक बहु-आयामी अनुभव है जिसमें भावनाएं, मनोवैज्ञानिक स्थितियां, हार्मोन, और तंत्रिकाएं गहरे स्तर पर परस्पर क्रिया करती हैं। उत्तेजना की शुरुआत

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सेक्स: जीवन की जान

नई दिल्ली 13 अगस्त 2025 सेक्स एक ऐसी शारीरिक क्रिया है जो मनुष्य और कई जीवों के जीवन में प्रजनन के लिए अनिवार्य होती है, लेकिन इसके मायने सिर्फ जैविक स्तर तक सीमित नहीं हैं। यह एक गहरा और जटिल सामाजिक, भावनात्मक, और मानसिक अनुभव भी है जो दो व्यक्तियों के बीच आत्मीयता, विश्वास, और

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छोटे पलों में समाया जीवन का बड़ा सच: रोज़मर्रा से मिली गहन सीख

नई दिल्ली 13 अगस्त 2025 तेज़ ज़िंदगी में ठहरने का महत्व हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां हर दिन सुबह से रात तक एक तेज़ रफ्तार दौड़ जैसा महसूस होता है। मोबाइल का अलार्म बजते ही दिन शुरू हो जाता है और रात में आंख बंद होने तक नोटिफिकेशन, ईमेल और मीटिंग्स

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कहानी, खुशबू और सैंडविच: जब ज़िंदगी ने रसोई में रचा दर्शन

नई दिल्ली, 12 अगस्त 2025 लेखक: निष्ठा त्रिपाठी, छात्रा, मीडिया साइकोलॉजी, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली-एनसीआर परिचय एक खास शख्सियत से राज दरबारी ने अपनी यात्रा मात्र 16 वर्ष की अल्पायु में आरंभ की और फ़िल्म निर्माण, कहानी कहने तथा पत्रकारिता के क्षेत्रों में अपार उत्कृष्टता हासिल की। उन्होंने जनरल ज़िया और यासर अराफ़ात जैसे विश्व के

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मोटापा: एक बढ़ता हुआ वैश्विक संकट

मोटापा अब केवल एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्या नहीं रहा, बल्कि यह दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। आज की तेज़-तर्रार जीवनशैली, जिसमें शारीरिक गतिविधि की कमी और असंतुलित खानपान शामिल है, लोगों को अनजाने में इस समस्या की ओर धकेल रहा है। मोटापा केवल दिखने का मामला नहीं

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शहर में ‘सनसेट योगा’ का नया ट्रेंड: डूबते सूरज के साथ तन और मन का अद्भुत संगम

महानगरों की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी, बढ़ता काम का दबाव और दिनभर की भागदौड़ लोगों को मानसिक और शारीरिक थकान से भर देती है। ऐसे माहौल में, जहां वीकेंड भी आराम के बजाय अधूरे काम पूरे करने और स्क्रीन के सामने बिताने में निकल जाता है, लोग अब एक ऐसे अनुभव की तलाश में हैं जो

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महिला, जलवायु और न्याय: एकजुट संघर्ष, समान समाधान

नई दिल्ली 9 अगस्त 2025 लेखक :  वंश मित्तल – बीएससी अर्थशास्त्र में स्नातक छात्र हैं।  डॉ. शालीनीता चौधरी और डॉ. लक्ष्य शर्मा – क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली एनसीआर कैंपस में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। जब महिलाओं को जलवायु नेता और निर्णय लेने वाली के रूप में सशक्त किया जाता है, तो समाज अधिक गहरी