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धन का भविष्य: प्रतिस्पर्धा नहीं, परिवर्तन की दिशा — क्रिप्टोकरेंसी की भूमिका

लेखक: साक्षी जोशी एवं डॉ. शिवानी चौधरी, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली NCR  इतिहास गवाह है कि हर बड़ा परिवर्तन प्रारंभ में संदेह और भय के साथ आया है। चाहे वह राजनीतिक क्रांति रही हो, तकनीकी आविष्कार या सामाजिक सुधार—हर युग में नवाचार का स्वागत पहले विरोध से हुआ। मुद्रा की यात्रा भी इससे अलग नहीं रही।

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विश्लेषण: अमेरिकी टैरिफ और भारत के बैंकिंग सेक्टर पर प्रभाव

लेखक: अग्रिमा त्यागी (अर्थशास्त्र की छात्रा) और डॉ. शिवानी चौधरी (एसोसिएट प्रोफेसर, सामाजिक विज्ञान विभाग), क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली NCR  व्यापार युद्ध से आर्थिक असर तक अगस्त 2025 में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए लगभग सभी आयातों पर 25% टैरिफ (शुल्क) ने भारतीय अर्थव्यवस्था में एक गहरा सदमा पहुँचाया है। इस कदम को मात्र एक

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क्या यह नया भारत है? नफरत की राजनीति का विस्फोट CJI तक पहुंचा; न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर संकट

नई दिल्ली 7 अक्टूबर 2025 न्यायपालिका बनाम नफरत की राजनीति: लोकतंत्र की नींव पर खतरा भारत में, न्यायपालिका को हमेशा संविधान का संरक्षक और लोकतंत्र का तीसरा, सबसे विश्वसनीय स्तंभ माना गया है। यह वह संस्था है जहाँ नागरिकों को अंतिम उम्मीद मिलती है। हालाँकि, 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में हुई घटना ने

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मीडिया का छुपा हुआ हाथ: समाज में भेदभाव की सोच को कैसे आकार देता है मीडिया

निपुणिका शाहिद, असिस्टेंट प्रोफेसर, मीडिया स्ट्डीज, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी दिल्ली NCR  नई दिल्ली 6 अक्टूबर 2025 मीडिया को अक्सर कहते हैं कि वह लोकतंत्र की ऑक्सीजन है, पर अगर यह ऑक्सीजन गंदी हो जाए तो नतीजा खतरनाक होता है। मीडिया सिर्फ़ खबरें नहीं दिखाता — वह हमारी सोच, हमारे डर और हमारी

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राहुल बनाम ‘एंटायर पॉलिटिकल साइंस’ : बाइक से भारी कार नहीं, सत्ता का अहंकार, यही तो है ‘न्यू इंडिया’ का बौद्धिक स्तर

नई दिल्ली 4 अक्टूबर 2025 बीजेपी की राजनीति जिस बौद्धिक धरातल पर खड़ी है, उसका अंदाज़ा उसके शीर्ष नेतृत्व के बयानों से लगाया जा सकता है। वही पार्टी, जिसके नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी गर्व से कहा था कि “बादल रहेगा तो रडार नहीं पकड़ पाएगा।” और एक दिन वह भी आया जब

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अमेरिकी शटडाउन: अंतरराष्ट्रीय छात्रों और प्रवासी समुदाय के लिए बढ़ती अनिश्चितता

डॉ. अखलाक अहमद उस्मानी | नई दिल्ली 3 अक्टूबर 2025 अमेरिका में सरकार का शटडाउन होना कोई नई बात नहीं है। यह अक्सर बजट पर सहमति न बनने या राजनीतिक खींचतान के कारण होता है। लेकिन इसका सबसे बड़ा असर उन पर पड़ता है जिनका जीवन प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर निर्भर है — यानी प्रवासी समुदाय,

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Modi Vs Rahul : मैं तो रास्ते से जा रहा था, भेलपुरी खा रहा था… तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?

नई दिल्ली 3 अक्टूबर 2025 भारतीय राजनीति में एक पुरानी कहावत है—“सच बोला तो चोट लगेगी।” यही आज राहुल गांधी और बीजेपी के बीच की बहस में देखने को मिल रहा है। राहुल गांधी ने कोलंबिया की यूनिवर्सिटी में जाकर कहा कि भारत के लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। यह बात उन्होंने किसी निजी

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भिश्ती बादशाह: जब दिल्ली में चले चमड़े के सिक्के और आज की सच्चाई…”राष्ट्राय स्वाहा!”

बात पुरानी है। मुगल अभी भारत में पैर नहीं जमा पाए थे। बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई जीती, लेकिन चार साल बाद ही चल बसे। गद्दी पर उनका बेटा हुमायूं बैठा। उस समय दिल्ली और पंजाब के कुछ इलाके ही उसके पास थे। चुनौती दे रहा था फरीद खान—उर्फ़ शेरशाह सूरी। वही शेरशाह

जो निडर थे वो जंग में गए, जो कायर थे वो संघ में गए

नई दिल्ली 3 अक्टूबर 2025 आज़ादी की कहानी: जनबल, बलिदान और इतिहास का अलिखित पक्ष भारत का स्वतंत्रता संग्राम दुनिया के सबसे बड़े, सबसे जटिल और सबसे बलिदानी सामूहिक आंदोलनों में से एक था। यह कोई साधारण राजनीतिक मुहिम नहीं थी बल्कि करोड़ों लोगों का रणनीतिक, नैतिक और व्यक्तिगत बलिदान था — किसानों का धरना,

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महात्मा गांधी होना क्या होता है? बापू की विरासत और जीवित आदर्श

लेखक : निपुणिका शाहिद, असिस्टेंट प्रोफेसर, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी  | नई दिल्ली 2 अक्टूबर 2025 गांधी होना एक विचार है, व्यक्ति नहीं महात्मा गांधी होना क्या होता है? यह सवाल हमें केवल इतिहास की गलियों में नहीं, बल्कि हमारे वर्तमान और भविष्य की गहराई में झाँकने को मजबूर करता है। गांधी होना केवल एक व्यक्ति का