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Opinion

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अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति – एक अंतरराष्ट्रीय नैतिक संकट

भूमिका: उपमहाद्वीप में बहुसंख्यकवाद की उग्रता और अल्पसंख्यकों की त्रासदी दक्षिण एशिया — विशेषकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश — एक समय धर्मनिरपेक्ष विविधता का घर हुआ करता था। इन देशों की रचना में अनेक धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों ने भूमिका निभाई थी। परन्तु समय के साथ, इन राष्ट्रों की राजनैतिक दिशा ने धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरता

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भारत में मीडिया की विश्वसनीयता और वैकल्पिक मीडिया का उदय

भूमिका: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन भारत में यह स्तंभ अब खुद डगमगाने लगा है। एक समय था जब अखबार और समाचार चैनल जनमानस की आवाज़ हुआ करते थे, लेकिन आज बड़े मीडिया घराने कार्पोरेट नियंत्रण, राजनीतिक दबाव, टीआरपी की भूख और सनसनी फैलाने

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भारत में जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता

भूमिका: सामाजिक न्याय और एक राष्ट्र की अवधारणा की कसौटी पर भारत एक बहुजातीय, बहुधार्मिक और बहुभाषी राष्ट्र है, जिसकी विविधता इसकी ताकत भी है और चुनौती भी। स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी जब नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों में एकरूपता नहीं है, तो यह संविधान की आत्मा पर एक सवालिया निशान है। समान

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भारत में धार्मिक स्थानों की जमीन पर कब्ज़ा और वक्फ संपत्ति विवाद

भूमिका: वक्फ संपत्ति का मूल उद्देश्य और वर्तमान संकट भारत में वक्फ संपत्तियों का इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है, जो मुस्लिम समाज की धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक और मानवतावादी जरूरतों को पूरा करने के लिए दान में दी गई थीं। इन संपत्तियों का उद्देश्य ज़कात और इबादत से जुड़ा था — यानी इन्हें मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों,

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भौतिकवाद की बेड़ियां: मृगतृष्णा या असली खुशी?

आपने कभी सोचा है कि आजकल हमारे पास बहुत सी चीज़ें हैं, लेकिन क्या हम वाकई खुश हैं? स्मार्टफोन, महंगे कपड़े, लक्जरी गाड़ियां, फर्नीचर से भरा घर, कपड़ों से भरी अलमारियां, जूतों से भरे शू रैक, अनगिनत घड़ियां, सन ग्लासेज, तरह तरह की क्रॉकरी से लैस किचन और न जाने क्या-क्या! हर दिन नए-नए सामान

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सर्व धर्म समभाव: भारत की आत्मा में बसा एकता का संदेश

भारत केवल एक देश नहीं है। यह संस्कृतियों, परंपराओं और आस्थाओं का वह पावन संगम है, जहाँ हर त्योहार किसी एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे समाज का उत्सव बन जाता है। यही वह भूमि है जहाँ दीपावली की रोशनी में ईद की मिठास घुलती है, जहाँ होली के रंगों में क्रिसमस की कैंडल की

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जश्न-ए-जम्हूरियत: एक नज़र भविष्य के भारत की तरफ

भारत, एक विशाल और विविधता से भरपूर राष्ट्र, सदियों से लोकतंत्र की परंपरा को अपना रहा है। हमारी लोकतांत्रिक यात्रा ने हमें न केवल एक मजबूत राजनीतिक ढांचा प्रदान किया है, बल्कि समाज में समानता, स्वतंत्रता और न्याय के मूल्यों को भी बढ़ावा दिया है। ‘जश्न-ए-जम्हूरियत’ यानी लोकतंत्र का उत्सव, भारतीय समाज के सभी हिस्सों